देश में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी तर्ज पर बिहार में भी मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़े स्तर पर काम कर रही है. इसके लिए कृषि विभाग ने कवायद शुरू कर दी है. इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना 2024-25 के अंतर्गत जलवायु अनुकूल कृषि के लिए पोषक अनाज अर्थात मिलेट्स की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
कृषि विभाग द्वारा किसानों की आय में वृद्धि के लिए इस योजना को गति देने पर जोर दिया जा रहा है. इस योजना के तहत बिहार के नवादा जिले में कुल 7218 एकड़ में रागी यानी मड़ुआ, ज्वार, बाजरा और चीना की खेती करने का लक्ष्य तय किया गया है. यह खेती कलस्टर के माध्यम से की जानी है.
इस योजना का लाभ किसानों का समूह बनाकर दिया जाएगा. यानी किसानों का समूह बनाकर कलस्टर का निर्माण किया जाएगा. वहीं खरीफ सीजन में इसकी खेती करने के लिए कृषि विभाग द्वारा कार्ययोजना तैयार कर ली गई है. इसके लिए जिले के प्रखंड कृषि पदाधिकारी, कृषि समन्वयक, प्रखंड तकनीकी प्रबंधक और किसान सलाहकार कलस्टर का चयन करेंगे. इसके बाद गांवों में जाकर इच्छुक किसानों को कलस्टर में शामिल करने का अभियान चलाया जाएगा.
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मोटे अनाजों की खेती करने के लिए में पानी की कम आवश्यकता पड़ती है. इस खेती में जहां सिंचाई की कम जरूरत होती है, वही मौसम की मार भी कम पड़ती है. इन फसलों की खेती सूखे क्षेत्र में भी आसानी से की जा सकती है. इसके अलावा इसकी खेती में किसानों की कम मेहनत और लागत कम लगती है. वहीं फसल उत्पादन भी अच्छा प्राप्त हो जाता है. साथ ही मोटे अनाज की कीमत धान और गेहूं की फसलों से दोगुनी तक मिल जाती है.
मोटे अनाजों में कैल्शियम, आयरन, जिंक जैसे पोषक तत्व की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह डायबिटीज, ब्लड प्रेशर आदि की बीमारी में बहुत ही उपयोगी साबित होता है. मोटे अनाज का सेवन करना स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी माना जाता है. इससे कुपोषण से निपटने में काफी सहायता मिल सकती है. मोटे अनाज के उपभोग को भी बढ़ावा देने के लिए इससे तरह-तरह के व्यंजन तैयार किए जा रहे हैं, ताकि लोगों का रुझान इसकी तरफ बढ़ सके. मोटे अनाज की खेती में एक और फायदा यह होता है कि दूसरी फसलों की तुलना में इसमें कम खाद और कम पानी की आवश्यकता होती है. इससे लागत में 20 फीसदी तक की कमी आती है.
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