देश की प्रमुख तिलहन फसल सोयाबीन के उत्पादन में नंबर वन होने का ताज अब मध्य प्रदेश से छिन गया है. अब सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र नंबर वन बन गया है. लंबे समय से सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक मध्य प्रदेश हुआ करता था. इसके बावजूद प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में महाराष्ट्र ही आगे रहता था. लेकिन अब उत्पादन की कुल हिस्सेदारी और उत्पादकता दोनों में महाराष्ट्र अव्वल हो गया है. कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र की हिस्सेदारी अब 45.35 फीसदी हो गई है जबकि मध्य प्रदेश का योगदान अब सिर्फ 39.83 फीसदी ही रह गया है. यह आंकड़ा 2021-22 का है. जबकि 2017-18 में कुल सोयाबीन उत्पादन में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 53.68 फीसदी थी और महाराष्ट्र सिर्फ 33.51 फीसदी पर ही अटका हुआ था.
सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र आखिर कैसे आगे निकला, इसे समझने की जरूरत है. केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई एमएसपी और क्रॉप डायवर्सिफिकेशन कमेटी के सदस्य गुणवंत पाटिल का कहना है कि महाराष्ट्र के किसान कपास की खेती कम करके अब सोयाबीन को बढ़ा रहे हैं. क्योंकि सोयाबीन में लागत कम है. अभी दाम भी अच्छा मिल रहा है. सोयाबीन 100 दिन में हो जाता है और कपास 150 दिन में होता है. यह कम पानी वाली फसल है इसलिए महाराष्ट्र के लिए मुफीद है. क्योंकि महाराष्ट्र जल संकट का सामना कर रहा है.
मध्य प्रदेश में सोयाबीन की खेती से किसान निराश हैं, वो धीरे-धीरे इसकी खेती छोड़ रहे हैं. क्योंकि वहां कुछ वक्त से कम समय में अधिक बारिश हो जा रही है. जिसकी वजह से फसल का बहुत नुकसान हो रहा है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सोयाबीन उत्पादन करने वाले एमपी के विदिशा, सीहोर, खरगोन, खंडवा, नर्मदापुरम, इंदौर, धार, रतलाम, उज्जैन, हरदा, बैतूल और मंदसौर जिलों में कभी लंबे समय तक सूखा पड़ जाता है तो कभी कम समय में अत्यधिक बारिश हो जाती है. इसलिए किसानों को इसकी खेती से नुकसान हो रहा है और एरिया घट रहा है.
साल | मध्य प्रदेश | महाराष्ट्र |
2021-22 | 39.83 | 45.35 |
2020-21 | 44.20 | 42.73 |
2019-20 | 49.29 | 37.42 |
2018-19 | 52.6 | 35.5 |
2017-18 | 53.68 | 33.51 |
Source: CACP
भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के डायरेक्टर डॉ. कुंवर हरेंद्र सिंह के अनुसार वर्तमान में सोयाबीन देश में कुल तिलहन फसलों का 42 प्रतिशत और कुल खाद्य तेल उत्पादन में 22 प्रतिशत का योगदान दे रहा है. जनसंख्या में वृद्धि के साथ खाद्य तेल की मांग बढ़ रही है और विभिन्न तिलहनी फसलों द्वारा 40 फीसदी मांग को पूरा किया जा रहा है. खाद्य तेलों की बाकी 60 प्रतिशत मांग आयात द्वारा पूरी की जा रही है.
खाद्य तेल के आयात की लागत ने हमारे विदेशी मुद्रा पर भारी असर डाला है. सभी तिलहन फसलों में सोयाबीन ऐसी फसल है जिसमें खाद्य तेल के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने की चुनौती को पूरी करने की क्षमता सबसे अधिक है. डॉ. सिंह के अनुसार सोयाबीन भारत के साथ-साथ विश्व की महत्वपूर्ण तिलहन फसल है. भारत में 60 के दशक से इसकी व्यावसायिक खेती शुरू हुई थी.
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सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के अनुसार साल 2022-23 में भारत में 12.07 मिलियन हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती हुई. जबकि उत्पादन 13.98 मिलियन रहा. औसत उपज 1158 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही. यह खरीफ सीजन की प्रमुख फसल है. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तरी कर्नाटक, गुजरात और उत्तरी तेलंगाना में इसकी खेती हो रही है. सोयाबीन प्रोटीन एवं तेल की भरपूर मात्रा की वजह से दुनिया भर में खाद्य तेल एवं पौष्टिक आहारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत है.
मध्य प्रदेश में प्रति हेक्टेयर उपज 11 से 11.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है. जबकि महाराष्ट्र में यह 14 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. यानी महाराष्ट्र के लोग सोयाबीन की खेती में मध्य प्रदेश के मुकाबले ज्यादा एडवांस हैं. वो कम जमीन में अधिक पैदावार का हुनर जानते हैं.
भारत में सोयाबीन शोधकर्ताओं के सामने फसल की कम उत्पादकता एक बहुत बड़ी चुनौती है. इस बात को खुद सोयाबीन अनुसंधान संस्थान भी स्वीकार करता है. इस चुनौती से निपटने की कोशिश में वो जुटा हुआ है. इस बात की तस्दीक आंकड़ों से हो जाती है. इसकी उत्पादकता में अमेरिका नंबर वन है.
फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (FAO) के अनुसार 2016 में अमेरिका में प्रति हेक्टेयर 3501 किलो सोयाबीन पैदा होता था. जबकि भारत में इसकी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता सिर्फ 1218 किलो ही थी. अर्जेंटीना में सोयाबीन की औसत उत्पादकता 3015 किलो प्रति हेक्टेयर थी. उस वक्त विश्व में सोयाबीन की औसत उत्पादकता 2756 किलो प्रति हेक्टेयर थी. भारत में उत्पादकता के मामले में महाराष्ट्र अन्य राज्यों के मुकाबले अच्छी कंडीशन में है.
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