सोयाबीन ऑयल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने केंद्र सरकार से सभी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम से कम 20 प्रतिशत बढ़ाने का अनुरोध किया है. सोपा ने घरेलू रिफाइनरों से तेल की सुरक्षा को लेकर इस संबंध में केंद्रीय खाद्य मंत्री पीयूष गोयल को पत्र लिखा है. सोपा के अध्यक्ष देविश जैन ने खाद्य मंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि ग्लोबल मार्केट में खाद्य तेलों के दाम लगातार गिर रहे हैं देश में सितंबर 2022 से लेकर 22 मार्च 2023 के बीच आयातित कच्चे सोयाबीन तेल की कीमतों में 31 फीसदी की गिरावट आई है. जो कि सबसे निचले स्तर पर है।इसी तरह सूरजमुखी और पाम तेल की कीमतों में भी गिरावट आई है. सोयाबीन तेल के गिरावट सीधा असर सोयाबीन मील के निर्यात पर पड़ा है. क्योंकि ग्लोबल मार्केट में सोयाबनी मील की कीमत 20 फीसदी तक गिर गई है. जिससे हम निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धा नही कर पा रहे हैं.
सोपा के अध्यक्ष ने कहा कि विदेशों से कम कीमत पर खाद्य तेलों के आयात के कारण घरेलू खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट आई है. जिसका नतीजा यह हुआ है कि किसान बाजार में सरसों न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत पर बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में किसानों को नुकसान हो रहा है. सोपा के अध्यक्ष का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में सोयाबीन की कीमत 8000 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 6000 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गई है. दुनिया भर में खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट के कारण आयात शुल्क को बहुत कम रखने के कारण देश में खाद्य तेलों की कीमतों में भारी गिरावट आई है. इसलिए वह सरकार से अनुरोध करेंगे कि वह सभी खाद्य तेलों पर आयात शुल्क कम से कम 20 प्रतिशत बढ़ाने पर विचार करे, जिससे खाद्य तेलों के बेलगाम आयात पर अंकुश लग सके और खाद्य तेलों की कीमतों में स्थिरता आए.
सोपा का कहना है कि सरकार को किसान, उपभोक्ता और उद्योग के हितों को ध्यान में रखते हुए, कीमतो के व्यवहार के आधार पर आयातित शुल्क समय समय पर बदलाव करने की जरूरत है. इस समय भारत में आयातित शुल्क कम होने के कारण खाद्य तेल प्रसंस्करण करने वाले देश के लिए वरदान है और हमारे उद्योग और किसानों के लिए नुकसान है.पिछले छह महीनों में यानी 1 सितंबर, 2022 से कच्चे सोयाबीन तेल की वैश्विक कीमतों में अब तक 31.23 फीसदी की कमी आई है, जबकि कच्चे सूरजमुखी के तेल में 32 फीसदी की कमी आई है. कच्चे पाम तेल की कीमतों में 5.71 फीसदी की गिरावटआई है,जबकि अर्जेंटीना के सोयामील की कीमतों में 19.5 फीसदी की गिरावट आई है
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सोफा अध्यक्ष का कहना है कि अगर यही हाल रहा तो सरकार की खाद्य तेल की आयात निर्भरता कम करने वाली सरकार की योजना तिलहन पर पानी फिर सकता है. क्योंकि अगर किसानों को उनकी तिलहन फसल का बेहतर दाम नही मिलेगें तो वह सरसों, सोयाबीन और और अन्य तिलहनी फसलों की खेती नही करेगें. जिससे तिलहन का उत्पादन और एरिया दोनों घट जाएंगे. उन्होंने संभावना व्यक्त की. अगर किसानों को तिलहन की खेती में लाभ नही मिला तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों तिलहन का रकबा घट जाएगा.
हाल ही में, सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्र सरकार से ताड़ के तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने और नेफेड़ जैसी एजेंसियों को समर्थन मूल्य पर सरसों के बीज खरीदने और पर्याप्त बफर स्टॉक बनाने के लिए प्रोत्साहित करने का आग्रह किया था.
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