कश्मीर अपनी खूबसूरती के अलावा दुनिया के महंगे मसालों में शामिल केसर की खेती के लिए भी जाना जाता है. यहां पंपोर में सबसे ज्यादा केसर की खेती की जाती है, जिस वजह से इसे कश्मीर का ‘केसर कटोरा' भी कहा जाता है. अब केसर की प्लकिंग (तुड़ाई) का समय (अक्टूबर-नवंबर) चल रहा है, लेकिन कम बारिश के कारण इसके उत्पादन में भारी गिरावट देखी गई है. हालांकि, पिछले दो साल यहां केसर का संतोषजनक उत्पादन हुआ, लेकिन किसान इस उपज से निराश हैं.
केसर एसोसिएशन कश्मीर के अध्यक्ष अब्दुल मजीद वानी क्षेत्र के 2,500 किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने ‘दि ट्रिब्यून’ से कहा कि केसर की प्लकिंग लगभग पूरी हो चुकी है, लेकिन जो ग्राउंड रिपोर्ट सामने आ रही है उसके मुताबिक कम बारिश के चलते उत्पादन लगभग 50 प्रतिशत तक गिर गया है. अब्दुल मजीद वानी ने कहा कि उनके खुद के खेत में पिछले साल लगभग 70 किलोग्राम केसर की पैदावार हुई थी, जो इस साल घटकर 35-40 किलोग्राम तक रह गई है.
यहीं केसर की खेती करने वाले विशेषज्ञ जीएम पंपोरी कम उत्पादन को लेकर कहते हैं कि इसके पीछे कई कारण हैं. सिंचाई के लिए चालू बोरवेल की कमी भी एक बड़ा कारण है. उन्होंने कहा कि अधिकारी चाहते तो कम बारिश से होने वाले पानी की कमी को बोरवेल से पूरा सकते थे. जीएम पंपोरी ने केसर उत्पादकों की मदद के लिए राष्ट्रीय केसर मिशन (एनएमएस) के अंतर्गत ज्यादा धनराशि की मांग रखी है. कम बारिश के कारण केसर सहित अन्य कृषि उपज पर बुरी असर हुआ है.
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मौसम अधिकारियों ने भी घाटी में हाल के महीनों में बहुत कम बारिश होने की जानकारी दी है. वहीं, कृषि विभाग के एक अफसर ने बयान दिया कि इस सीजन में केसर उत्पादन के लिए डेटा इकट्ठा किया जा रहा है. एक हफ्ते में उत्पादन की पूरी जानकारी मिल जाएगी. बता दें कि केंद्र सरकार ने 2010-11 में राष्ट्रीय केसर मिशन (एनएमएस) की शुरुआत की थी, ताकि केसर उत्पादन में चुनौतियों से निपटा जा सके.
वहीं, साल 2020 में, कश्मीरी केसर को जीआई टैग दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीरी केसर को विश्वस्तरीय ब्रांड बनाने के लिए काम करने की बात कह चुके हैं.
कश्मीर के अलावा अब एरोपोनिक तकनीक से केसर की खेती किसी गर्म राज्य में भी वातानुकूलित कमरे में संभव हो गई है. इस तकनीक से खेती में शुरू में लागत ज्यादा आती है. हालांकि, दूसरे सीजन की पैदावार से मुनाफा होने लगता है.
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