Animal husbandry:खरीफ का ज्वार भले ही पशुओं का बेहतरीन व न्यूटीशियस चारा है, लेकिन इसमें पाया जाने वाला धूरिन साइनाइड पशुओं के पेट में जहर पैदा कर देता है.बारिश से पहले अगर पशुओं ने इसे खा लिया तो उनकी मौत सुनिश्चित है. इसलिए दो-तीन बारिश से पहले इस चारे को पशुओं को बिलकुल भी न खिलाएं. इसके अंदर एक साइनोजेनिक ग्लूकोसाइड पाया जाता है. इसका नाम है धूरिन. यह धूरिन ही समस्या की जड़ है. इसे खाने से पशुओं की मौत हो जाती है. कृषि विज्ञान केंद्र लेदौरा आजमगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को हर हाल में सतर्कता बरतने को कहा है.
कृषि विज्ञान केन्द्र लेदौरा आजमगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एलसी वर्मा की मानें तो यह धूरिन कुछ नहीं करता मगर यह साइनाइड का बाप है पशु के रुमेन में मौजूद माइक्रोआर्गेनिज्म इस कम्पाउंड का हाइड्रोलिसिस करके पशु के पेट में साइनाइड नामक जहर पैदा करते हैं और बस कहानी यहीं से एक नया मोड़ लेती है. यह साइनाइड कोशिकाओं में मौजूद साइटोक्रोम आक्सीडेज नामक एंजाइम को काम करने से रोकता है. इसके कारण हीमोग्लोबिन से ऑक्सीजन रिलीज नहीं हो पाती और पशुओं का दम घुटने लग जाता है.दम घुटने से पशु मर जाता है. यह काम इतनी तेजी से होता है कि न तो पशु कुछ समझ पाता है और न उसका मालिक. जानवर खुला छूट गया और ज्वार के खेत को चर लिया तो उसकी मौत सुनिश्चित है. कृषि विज्ञान केंद्र, लेदौरा के वैज्ञानिक डा.एलसी वर्मा ने बताया कि ज्वार में धूरिन की मात्रा एक दो बारिश होने के बाद घटने लगती है. इसलिए धूरिन तभी तक हानि पहुंचाता है जब तक कि बारिश नहीं हुई हो बारिश होने पर धूरिन का प्रभाव खत्म हो जाता है और फिर सभी पशुओं को ज्वार खिलाई जा सकती है.
ज्वार बहुत ही न्यूट्रीशियस है.इसमें 8 से 10 प्रतिशत तक क्रूड प्रोटीन पाई जाती है. सिंगल कट वैराइटी में 200 से 300 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर और मल्टी कट वैराइटी में 600 से 900 क्विंटल हरा चारा प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है.फसल की सिंचाई की व्यवस्था हो तो फसल को एक-दो बार सिंचाई के बाद ही काटकर खिलाएं. ज्वार को काटकर खिलाने की सबसे बेहतरीन अवस्था है जब उसमें 50 प्रतिशत फूल आ जाए. इस अवस्था में भी धूरिन की एक्टिविटी कम हो जाती है.इसके अलावा ज्वार को काटकर धूप में सूखाकर खिलाया जा सकता है. इससे हाइड्रोजन साइनाइड की मात्रा कम हो जाती है.अगर जानवर ने बारिश से पहले ज्वार खा ली तो पशु की मृत्यु हो जाएगी.
बारिश से पहले तमाम पशुओं की मौत इसी कारण से होती है. ऐसे में तमाम पशुपालकों को यह लगता है कि उनके पशु को पड़ोसी ने जहर दे दिया है. इसकी वजह से उसकी मौत हुई है.जबकि ऐसा नहीं है. अधिक मात्रा में हाइड्रोसाइएनिक एसिड या साइनोजेनेटिक पौधे खा लेने से ऐंठन उत्पन्न होने औऱ स्वसन क्रिया के बंद हो जाने से पशुओ की मौत हो जाती है .इसके लक्षण पशुओं में ज्यादा उत्तेजना औऱ चकराना.आंख की पुतलियों का फैल जाना/चौड़ा हो जाना. अत्याधिक लार का बहना, गर्दन को एक और मोड़ कर पेट की तरफ रखना, अनैच्छिक मूत्र तथा मल विसर्जन, मांसपेशियों का कंपन और पशुओं के लड़खड़ाने जैसे लक्षण सामने आते हैं.
अगर इस तरह के लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो उपचार के लिए निकटतम पशुचिकित्सक से तत्काल परामर्श करें. अगर संभव हो तो उल्टी और गैस्ट्रिक पानी से जहर को बाहर निकालना चाहिए. डॉ. राजपाल दिवाकर बताते हैं कि सोडियम नाइट्राइट 20 ग्राम, सोडियम थायोसल्फेट 30 ग्राम, आसुत जल 500 मिली, 20 मिली प्रति 50 किलोग्राम शरीर के वजन के हिसाब से मिलाएं .इसे धीरे-धीरे देना चाहिए और अगर जरूरी हो तो एक बार दोहराया जाना चाहिए. सोडियम थायोसल्फेट 20% घोल,10 मिली प्रति 50 किलोग्राम शरीर के वजन के अनुसार अंतःशिरा में दिया जाना चाहिए और अगर जूरूरी हो तो दोहराया जाना चाहिए.
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