सक्रिय मॉनसून के साथ देश में खरीफ सीजन की बुवाई जारी है. इस बीच, केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 18 जुलाई तक खरीफ बुवाई के ताजा आंकड़े जारी किए हैं. कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, खरीफ सीजन 2025-26 में देशभर में बुवाई की रफ्तार पिछले खरीफ सीजन से तेज है. आंकड़ों के अनुसार, इस सीजन अब तक कुल 1096.65 लाख हेक्टेयर बुवाई क्षेत्र के मुकाबले 708.31 लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी है, जबकि पिछले सीजन में इस समय तक 680.38 लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जो 4 प्रतिशत से ज्यादा की बढ़त दिखाता है. वहीं, 176.68 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की बुवाई हुई है, जो पिछले साल इसी समय की तुलना में 12.38 प्रतिशत ज्यादा है.
धान देश की प्रमुख खरीफ फसल है और इस साल बुआई का क्षेत्र 157.21 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 176.68 लाख हेक्टेयर हो गया है. वहीं मोटे अनाज (कोर्स सीरियल्स) की बात करें तो इसमें भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है. पिछले साल की तुलना में इस बार 133.65 लाख हेक्टेयर में इनकी बुआई हुई है, जो कि 13.59 फीसदी की बढ़ोतरी है. खासतौर पर मोंठ (Moth Bean) की बुवाई 52.66 प्रतिशत बढ़ी है.
दालों की खेती में इस बार कुल 81.98 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुवाई की गई है, जो पिछले साल के मुकाबले 2.3 प्रतिशत ज्यादा है. हालांकि, अरहर (तुअर) की बुआई में 5.08 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. यह गिरावट चिंताजनक मानी जा रही है, क्योंकि अरहर दाल की घरेलू मांग बहुत ज्यादा है. इसके उलट मूंग की बुआई में 11.39 प्रतिशत और कुल्थी में 11.32 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है. इसके अलावा उड़द की बुवाई में 12.48 फीसदी की गिरावट आई है. तुअर और उड़द जैसी जरूरी दालों की बुवाई में आई गिरावट आने वाले महीनों में बाजार में दालों की कीमतों पर असर डाल सकती हैं. हालांकि, आने वाले समय में अंतिम बुवाई आंकड़ें ही मायने रखेंगे.
कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक, तिलहन फसलों की कुल बुआई में 3.71 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. सबसे ज्यादा गिरावट सोयाबीन (6.13 प्रतिशत) और नाइजरसीड (90 प्रतिशत) में देखने को मिली. हालांकि, मूंगफली की बुवाई में 2.31 फीसदी और तिल (सेसमम) में 8.22 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई है.
वहीं, कैस्टर सीड ने 53.89 प्रतिशत की छलांग लगाई है. वहीं, कपास की बुआई में भी 3.42 फीसदी की गिरावट देखी गई, जबकि गन्ने में 0.52 प्रतिशत की मामूली बढ़त दर्ज की गई है. जूट और मेस्ता की बुआई में भी हल्की कमी दर्ज हुई है. तिलहनों की घटती बुवाई खाद्य तेल आयात को बढ़ा सकती है.
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