हरियाणा में धान की रोपाई का सीजन पूरा होने के करीब है. लेकिन एक बड़ी चिंता किसानों को खाए जा रही है. राज्य में इस बार प्रवासी मजदूरों की कमी ने इस सीजन में हर हिस्से में धान की रोपाई पर असर डाला है. ऐसे समय में जब पूरे हरियाणा में धान की रोपाई पूरी हो जानी चाहिए थी, कई किसान अभी भी काम पूरा करने के लिए मजदूरों की तलाश में संघर्ष कर रहे हैं. आपको बता दें कि पंजाब की ही तरह इससे सटा हरियाणा भी धान की खेती और चावल उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य है.
अखबार ट्रिब्यून ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि राज्य में पिछले तीन वर्षों में 16.67 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती हुई है. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने इस सीजन में धान की खेती के लिए 13.97 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य रखा है. अब तक लगभग 80 प्रतिशत क्षेत्र में इसकी खेती हो चुकी है. किसानों और कृषि विशेषज्ञों का दावा है कि राज्य में कृषि बड़े पैमाने पर बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मजदूरों पर ही निर्भर है. हर साल, बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर हरियाणा आते हैं, खासकर धान की रोपाई और धान और गेहूं दोनों की कटाई के दौरान इन मजदूरों की जरूरत होती है.
एक अनुमान के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत मजदूर ऐसे हैं जो खेती से जुड़े हैं और दूसरे राज्यों से आते हैं. ये मजदूर लगातार किसानों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए हरियाणा आते हैं. राज्य में 15 जून से धान की रोपाई का सीजन शुरू हुआ था. राज्य के किसानों को इस बार मजदूरों की भारी कमी का सामना करना पड़ा है. इससे धान की बुवाई पर असर पड़ा है. किसानों का कहना है कि इसका एक बड़ा कारण पंजाब में धान की रोपाई का समय पहले हो जाना है. यूं तो पंजाब में भी हरियाणा की तरह ही धान की बुवाई जून के मध्य से शुरू होती थी लेकिन इस बार यह 15 जून यानी 1 जून से ही शुरू हो गई थी.
एक किसान राजिंदर सिंह ने बताया, 'पंजाब में धान की रोपाई का मौसम पहले ही शुरू हो जाने के कारण हमें मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ा. पंजाब में समय से पहले बुवाई के चलते कई प्रवासी मजदूर पहले पंजाब चले गए और हमें समय पर मजदूर नहीं मिल पाए जिससे हमारी अपनी रोपाई में देरी हो गई.' किसानों का यह भी मानना है कि कई सरकारी योजनाओं का फायदा इस मौसम में प्रवासी मजदूरों के कम आने का कारण हो सकता है. उनका कहना था कि इस बार बिहार से मजदूर समूह पूरी संख्या में नहीं आए. कई मजदूर अब अपने गृह राज्यों में सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रहे हैं. बिहार में कुछ कारखाने और चावल मिलें भी खुल गई हैं, इसलिए मजदूर पूरी संख्या में नहीं आ पा रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनावों के चलते भी मजदूरों की कमी हो रही है क्योंकि राज्य में मतदाता सूचियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है.
किसानों ने जोर देकर कहा कि किसानों को सीधी बुवाई वाली धान (डीएसआर) पद्धति अपनानी चाहिए. इसमें कम मजदूरों की जरूरत होती है. वहीं कुछ किसानों को अनुभवहीन स्थानीय मजदूरों को काम पर रखना पड़ रहा है या प्रक्रिया में देरी हो रही है. ऐसे में फसल की पैदावार प्रभावित हो सकती है. इस सीजन में, स्थानीय मजदूरों ने 4,500-5,500 रुपये प्रति एकड़ की मांग की तो प्रवासी मजदूर सिर्फ तीन से चार हजार रुपये प्रति एकड़ ही चार्ज करते हैं. कुछ किसान 10 जुलाई तक रोपाई पूरी कर लेते हैं लेकिन अभी तक उनके आधे खेत में ही रोपाई हो सकी है. कृषि विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर बाकी बची हुई रोपाई कुछ दिनों के भीतर पूरी नहीं हुई, तो इससे उत्पादकता पर गंभीर असर पड़ सकता है.
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