कश्मीर यूं तो इस समय देश के बाकी हिस्सों की तुलना से ठंडा है लेकिन फिर भी यहां के किसान इस समय टेंशन में हैं. वजह है इस बार घाटी में ड्राई विंटर यानी सर्दी के मौसम का शुष्क होना. जनवरी और फरवरी के महीनों में भी बारिश में करीब 80 फीसदी की कमी दर्ज की गई है. साथ ही कश्मीर में बर्फबारी में भी काफी कमी आई है और अब इसके दुष्परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं. जब सर्दियां ऐसी रही हैं तो लाजिमी बात है कि किसान गर्मी के मौसम को लेकर टेंशन में रहेंगे ही. वहीं शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी यानी SKUAST ने भी आने वाली गर्मियों में कश्मीर में पैदा होने वाली स्थितियों से निपटने का एक्शन प्लान तैया कर लिया है.
SKUAST ने बीज वितरण से लेकर फसल कैलेंडर तक को अपने एक्शन प्लान में जगह दी है. विशेषज्ञों ने पहले ही चेतावनी दे दी है कि गर्मियों में सूखे जैसी स्थिति पैदा हो सकती है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया है कि इससे सिंचित कृषि जैसे धान, बागवानी, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स और यहां तक कि पीने के पानी की सप्लाई जैसे क्षेत्रों पर भी गंभीर असर पड़ सकता है. वहीं जंगलों में भी आग लगने का खतरा है और कुछ ऐसी घटनाएं पहले ही सामने आ चुकी हैं.
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स्थितियों को देखते हुए SKUAST के रिसर्चर्स किसानों के लिए बुवाई और अनुकूल रणनीतियों के साथ कमर कस चुके हैं. SKUAST में राष्ट्रीय बीज परियोजना के प्रमुख आसिफ बशीर शिकारी ने कहा कि कश्मीर को पिछले कई सालों वर्षों से अनियमित मौसम का सामना करना पड़ रहा है. इस साल, बिना बर्फबारी के बीती सर्दियों ने क्षेत्र को अनिश्चित स्थिति में डाल दिया है. उन्होंने बताया कि SKUAST ने सूखे जैसी स्थिति को देखते हुए कुलपति नजीर गनई के नेतृत्व में एक 'आकस्मिक फसल योजना' तैयार कर ली है.
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आसिफ बशीर का कहना था कि मौसम उतार-चढ़ावों को देखते हुए एक्शन प्लान दो मोर्चों पर काम करता है. पहला, रसद सहायता पर, जो सूखे जैसी स्थिति में फायदा और मदद के तौर पर किसानों के लिए होता है और दूसरे प्लान कृषि सलाहकार सेवाएं शामिल होती हैं. कृषि इनपुट में बीज की उपलब्धता सबसे महत्वपूर्ण है, खासकर सूखे जैसी स्थितियों में, जहां सही बुवाई सामग्री का होना प्राथमिकता है. बशीर ने बताया, ' हमें सालाना 1.5 लाख क्विंटल बीज की जरूरत होती है और किसान विशेष तौर पर प्रमाणित बीज पर निर्भर होते हैं. इस मांग को पूरा करने के लिए, विश्वविद्यालय खेत और सब्जी फसलों के कम से कम 100 क्विंटल प्रजनक बीज का उत्पादन करता है.'
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वैज्ञानिक ने जोर देकर कहा कि सूखे जैसी स्थिति में, वह और उनके साथी चावल के अलावा बाकी फसलों की खपत की सलाह देते हैं. इसके लिए सूखा-झेलने वाली फसलों जैसे मक्का किस्मों और हाइब्रिड जैसे कि एसएमसी-8 और एसएमएच-5, और दालों की बढ़ी हुई बीज उपलब्धता की सुविधा किसानों को देते हैं. उनका कहना है कि ये ऐसी फसलें हैं जो शुष्क परिस्थितियों के लिए ज्यादा लचीली होती हैं. विशेष तौर पर दालों को कम पानी की जरूरत होती है और फिर भी वे न्यूनतम नुकसान के साथ उचित उपज दे सकती हैं.
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