
Ghaziabad News: आजकल प्राकृतिक जड़ी-बूटियां विलुप्त होती जा रही है. ऐसे में इन दिनों गाजियाबाद के कवि नगर मैदान में चल रहे फेस्टिवल महोत्सव में कर्नाटक स्थित मैसूर जिले के आदिवासी दंपत्ति जड़ी-बूटियों को बढ़ावा देने में जुटे हुए है. यह आदिवासी अपने साथ अपनी सभ्यता से जुड़ा एक तेल लेकर आए हैं. कर्नाटक के मैसूर आदिवासी अक्सर प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से बने सामान को ही इस्तेमाल करते है. यह तेल कुल 108 जड़ी-बूटीयों को मिलाकर हाथों से ही बनाया जाता है. इस तेल से बाल झरना बिल्कुल कम हो जाता है. वहीं इसके इस्तेमाल से बाल लंबे और घने हो जाएंगे, ऐसा दावा आदिवासी दंपत्ति करते है.
किसान तक से बातचीत में कर्नाटक मैसूर गांव के आदिवासी संदीप ने बताया कि इस तेल में 108 आदिवासी जड़ी-बूटियां शामिल होती है. जंगल से जड़ी-बूटी लाने के बाद इसको घर में ही बनाया जाता है फिर पैक करके इस तेल कों बेचा जाता है. लगभग इस औषधि तेल को 40 वर्षो से भी ज्यादा वक़्त हो गया है. इस तेल को हम ऑल ओवर इंडिया बेचते है. अगर बात पुरुषों की करे तो पुरुषों के लिए आधे लीटर तेल की क़ीमत 1500 रूपये और महिलाओं के लिए 2500 रुपये है. जिसमें तीन महीने का कोर्स शामिल होता है. इसमें हम लोग 5 दिन के लिए भी लोगों को ट्राई करने को कहते है अगर तेल पसंद नहीं आता है तो लोग वापिस कर सकते है.
संदीप आगे बताते हैं कि पहले गांव के आदिवासी इन जड़ी-बूटियों को इकट्ठा करते है. इसके बाद इन जड़ी बूटियों की कटाई होती है और फिर इनको धोया जाता है. इसके बाद इन जड़ी बूटियां को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. जब जड़ी-बूटियां सूख जाती है तो फिर उन्हें अलग-अलग प्रकार के तेल में मिलाया जाता है. जैसे नारियल, अरंरन्डी, सरसों आदि में इसको घोल दिया जाता है. इस पूरी प्रक्रिया में 6 से 7 घंटे का समय लग जाता है.
उन्होंने बताया कि इस तेल कों महिला और पुरुष दोनों लगाते है. वर्षो से मैसूर गांव की महिलाए इस तेल को लगा रही है. गांव की ज्यादातर महिलाए अपने बाल बढ़ाकर उन्हें कंपनी में बेच देती है फिर तेल लगाने से तीन महीने में ही लंबे बाल आने लगते है. गांव में लोग इसको एक तेल की तरह नहीं बल्कि दवा के तौर पर इस्तेमाल करते है.
आदिवासी संदीप ने बताया कि भारत के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र का राज्य कर्नाटक भारत के आईटी केंद्र होने के साथ-साथ आयुर्वेदिक उद्योग में भी अपना नाम कमा चुका है. कर्नाटक में कई सारी आयुर्वेदिक दवा निर्माता कंपनियां बस चुकी है. गांव के आदिवासी अक्सर जंगल की जड़ी बूटियों से तेल बनाकर बेचते है. इनमें मुख्य रूप सेमेथी (Fenugreek ), भृंगराज (Bhringraj), आंवला (Amla ) लैवेंडर (levender), एलोवीरा (alovera ), ब्राह्मी (Hydrocotyle ), चिरायता(Andrographis Paniculata ), लाजवंती(Mimosa Pudica ) आदि शामिल होते है.
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तेल के अलावा भी कई प्रकार की औषधीय दवाई कर्नाटक राज्य में बनाई जाती है. उन्होंने कहा कि “इस बिज़नेस के जरिए हम एक उदाहरण लोगों के सामने लाना चाहते हैं कि आदिवासी, जंगलों के भविष्य को खतरे में डाले बिना भी अपने आमदनी के रास्ते तलाश सकते हैं और पर्यावरण संरक्षण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.”
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