केंद्र सरकार की तरफ से चावल के निर्यात के लिए एक मई से नई टैरिफ लाइन व्यवस्था को लागू किया जाएगा. संसद में वाणिज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने इस बात की जानकारी दी है. प्रसाद ने बताया है कि नई टैरिफ लाइन के लिए चावल आधारित प्रक्रिया जैसे प्री-ब्वॉयल्ड और बाकी, साथ ही किस्म जैसे जीआई टैग हासिल बासमती चावल और बाकी के आधार पर केंद्र सरकार इस व्यवस्था को लागू करेगी.
वाणिज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने एक लिखित जवाब में कहा, 'इस नए फैसले से 20 से ज्यादा जीआई चावल की किस्मों को फायदा होगा जिन्हें जियोग्राफिकल इंडीकेशंस ऑफ गुड्स (रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन) एक्ट 1999 के तहत परिभाषित किया गया है और मान्यता दी गई. ये वो चावल हैं जो भारत के 10 से अधिक राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में उगाए जाते हैं.' उन्होंने बताया कि नए टैरिफ आइटम, को सीमा शुल्क टैरिफ अधिनियम, 1975 में संशोधन करके बनाए गए हैं. यह 29 मार्च, 2025 को पास हुए वित्त अधिनियम 2025 के माध्यम से प्रभावी होंगे.
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जितिन प्रसाद से बासमती और गैर-बासमती चावल के क्लासीफिकेशन से जुड़ा सवाल पूछा गया था. इस पर प्रसाद ने कहा कि इस कदम से बासमती के अलावा चावल की जीआई किस्मों के वाणिज्य और व्यापार के विकास के लिए केंद्रित नीति निर्माण और विशिष्ट हस्तक्षेप संभव हो सकेगा. प्रसाद ने कहा कि बासमती चावल को बाकी चावलों से अलग करने के लिए सरकार ने साल 2008 में मानकों और योग्यताओं को अधिसूचित किया था. उन्होंने बताया कि नीतिगत उद्देश्यों और बासमती चावल के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सही से समझने के लिए सरकार ने एक 8 डिजिट का एचएस कोड के साथ एक अलग टैरिफ रेट अधिसूचित किया.
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वहीं राज्यसभा में एक लिखित जवाब में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री भागीरथ चौधरी ने कहा कि गेहूं की उपज और अनाज की गुणवत्ता पर बढ़ते तापमान और गर्मी के तनाव का आकलन किया जाएगा. उन्होंने बताया कि इसके लिए आईसीएआरआईआईडब्ल्यूबीआर, करनाल की तरफ से स्टडी की गई थी. साल 2021-22 में जब गर्मी का असर ज्यादा था, तो उस दौरान एनडब्ल्यूपीजेड और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र (एनईपीजेड) में की गई स्टडी से कुछ नतीजे हासिल हुए थे. इन अध्ययनों से पता चला है कि साल 2020-21 की तुलना में एनडब्ल्यूपीजेड में अधिकतम तापमान में 5.500 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हुआ और इससे उच्च तापमान तनाव की स्थिति में औसत उपज में 5.6 फीसदी का नुकसान हुआ.
उन्होंने आगे कहा, 'हालांकि तापमान में बढ़ोतरी का गेहूं की फसल के चरण और गर्मी सहन करने वाली किस्मों में भिन्नता के कारण साल 2020-21 की तुलना (3521 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) में 2021-22 (3537 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) के दौरान औसत गेहूं उत्पादकता में कोई कमी नहीं आई. पिछले 10 सालों में देश में 60 फीसदी से ज्यादा गेहूं की खेती गर्मी सहन करने वाली किस्मों से की जाती है.'
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