Sheep Farming: भेड़ की एक और नस्ल को मिली पहचान, खासियत देख पशुपालक कर रहे तारीफ

Sheep Farming: भेड़ की एक और नस्ल को मिली पहचान, खासियत देख पशुपालक कर रहे तारीफ

खेरी नस्ल की मान्यता ने राजस्थान के भेड़ पालकों को नई दिशा दी है. यह नस्ल न केवल एक विशेष पशु संसाधन के रूप में उभरी है, बल्कि इसे वैज्ञानिक मान्यता मिलना भेड़ पालन क्षेत्र के लिए एक बड़ी उपलब्धि है. खेरी नस्ल को अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पंजीकरण में भी शामिल कर लिया गया है, जिससे इसके पालन और प्रजनन में और अधिक मदद मिलेगी.

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भेड़ की एक और नस्ल को मिली पहचान, खासियत देख पशुपालक कर रहे तारीफखेरी नस्ल की भैंस

राजस्थान में अब भेड़ों की कुल 9 नस्लें हो गई हैं, और हाल ही में खेरी नस्ल को 9वीं नस्ल के रूप में पहचान दी गई है. खेरी नस्ल की खासियत और पहचान को आधिकारिक मान्यता मिल चुकी है. हालांकि, इसे मान्यता दिलाने के लिए कोई वैज्ञानिक अनुसंधान नहीं हुआ है, बल्कि यह नस्ल भेड़ पालकों द्वारा खुद विकसित की गई है.

खेरी नस्ल की उत्पत्ति

खेरी नस्ल की भेड़ें राजस्थान के कई इलाकों में पाई जाती हैं, खास तौर पर टोंक, अजमेर, भीलवाड़ा, जयपुर, नागौर, पाली, बीकानेर और जोधपुर जिलों में. इन भेड़ों का विकास मध्य प्रदेश और गुजरात में किए गए एक खास क्रॉस ब्रीडिंग के कारण हुआ है. दरअसल, राजस्थान के भेड़ पालक अपने मवेशियों को इन राज्यों में ले जाते थे और इन भेड़ों की संतानें पैदा की जाती थीं, जिनमें दोनों नस्लों के गुण होते थे. इस संतान को अब खेरी नस्ल के नाम से जाना जाता है.

खेरी नस्ल की विशेषताएं

खेरी नस्ल की भेड़ों की कुछ खास विशेषताएं हैं, जो इसे अन्य नस्लों से अलग करती हैं:

पहचान: ये भेड़ें देखने में बहुत सुंदर होती हैं, और इनका कद लंबा होता है, जिससे ये आसानी से पहचानी जाती हैं.
   
माइग्रेशन क्षमता: इन भेड़ों की एक महत्वपूर्ण खासियत यह है कि ये लंबी दूरी तक चलने की क्षमता रखती हैं, इस कारण किसानों द्वारा इन्हें खासतौर पर पसंद किया जाता है.

अनुकूलता: खेरी नस्ल की भेड़ें कठोर जलवायु परिस्थितियों में भी जीवित रह सकती हैं, जो इन्हें हर तरह के मौसम में सक्षम बनाती है.

जीवित रहना: इन भेड़ों को चारे और पानी की कमी को सहन करने की क्षमता होती है, जो इन्हें कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रखता है.

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खेरी नस्ल का महत्व

खेरी नस्ल के भेड़ों की यह लंबी यात्रा 30-35 सालों से लगातार जारी थी, लेकिन इस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया था. जब वैज्ञानिकों ने इस नस्ल को पहचाना और इसकी पूरी प्रक्रिया का सर्वे किया, तब जाकर इसे मान्यता मिली. यह नस्ल अब न केवल राजस्थान में, बल्कि पूरे भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है. 

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