कश्मीर के मशहूर केसर की खेती पर साही का आतंक, किसानों को बड़ा नुकसान, घट रही है पैदावार 

कश्मीर के मशहूर केसर की खेती पर साही का आतंक, किसानों को बड़ा नुकसान, घट रही है पैदावार 

पंपोर की भूमि को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं. यहां पर दुनिया के सबसे बेहतरीन केसर की पैदावार होती है जिसमें 8.72 प्रतिशत क्रोसिन होता है. क्रोसिन केसर के रंग और एंटी-ऑक्सीडेंट वैल्‍यू को तय करता है. कहते हैं कि केसर में जितना ज्‍यादा एंटी-ऑक्‍सीडेंट होगा, इसकी कीमत उतनी ही ज्‍यादा होगी क्‍योंकि इसकी क्‍वालिटी भी बाकियों से कहीं बेहतर होगी.

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कश्मीर के मशहूर केसर की खेती पर साही का आतंक, किसानों को बड़ा नुकसान, घट रही है पैदावार कश्‍मीर में किसानों के सामने नई चुनौती

दक्षिण कश्‍मीर का पंपोर अपने केसर के लिए दुनियाभर में मशहूर है. यहां पर लगभग हर घर से एक किसान केसर की खेती में लगा हुआ है. लेकिन अब इन किसानों को एक नए आतंक का सामना करना पड़ रहा है. शायद ही कभी किसी किसान ने सोचा होगा कि साही जैसा जानवर भी उनकी फसलों को बर्बाद कर सकता है लेकिन कश्‍मीर के किसान रोज इस खतरे को झेल रहे हैं. आपको बता दें कि पंपोर भारत के केसर उद्योग का केंद्र है. साथ ही ईरान और अफगानिस्तान के बाद यह दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा केसर उत्‍पादक है. 

पंपोर में उगता बेहतरीन केसर 

पंपोर की भूमि को स्थानीय लोग पवित्र मानते हैं. यहां पर दुनिया के सबसे बेहतरीन केसर की पैदावार होती है जिसमें 8.72 प्रतिशत क्रोसिन होता है. क्रोसिन केसर के रंग और एंटी-ऑक्सीडेंट वैल्‍यू को तय करता है. कहते हैं कि केसर में जितना ज्‍यादा एंटी-ऑक्‍सीडेंट होगा, इसकी कीमत उतनी ही ज्‍यादा होगी क्‍योंकि इसकी क्‍वालिटी भी बाकियों से कहीं बेहतर होगी. कश्मीर में पैदा होने वाले केसर का रंग गहरा लाल होता है और इसकी खुशबू बहुत तेज होती है. 

तीन दशक तक जूझे चुनौतियों से 

अल जजीरा की रिपोर्ट के अनुसार पंपोर के किसानों ने कई तरह की चुनौतियों का सामना किया है और हर बार इनसे बाहर आए हैं. जिन चुनौतियों का सामना यहां के किसानों ने किया है उनमें आतंकियों और सुरक्षा बलों के बीच तीन दशक से ज्‍यादा लंबे घातक संघर्ष से लेकर अंतरराष्‍ट्रीय बाजारों में केसर की तस्करी और मिलावट तक अहम रहीं हैं जिससे उत्पादकों के लिए कीमतों पर असर भी पड़ा है. लेकिन अब दुनिया के सबसे महंगे मसाले को कश्मीर में एक नए और हैरान करने वाले खतरे का सामना करना पड़ रहा है और वह है साही. 

अब खेती पर साही का आतंक 

कभी क्षेत्र के जंगलों तक सीमित रहने वाला जानवर साही अब वनों की कटाई, आवास की कमी और जलवायु परिवर्तन के कारण केसर के खेतों में घुस आए हैं. साही  जम्मू और कश्मीर में एक संरक्षित प्रजाति है. बाकी जानवरों से अलग साही अपने भोजन के लिए केसर के बल्बों की तलाश में जमीन को गहराई तक खोद डालते हैं. कश्मीर का केसर उत्पादन पहले से ही संघर्ष कर रहा था. अनियमित बारिश, अपर्याप्त सिंचाई और कृषि भूमि पर शहरी अतिक्रमण के कारण यह 1997-98 में 15.97 मीट्रिक टन से गिरकर 2021-22 में केवल 3.48 मीट्रिक टन रह गया था. 

साही से हुआ विनाशकारी नुकसान 

पिछले पांच से सात सालों में किसानों का कहना है कि साही के कारण होने वाले विनाशकारी नुकसान ने संकट को और बढ़ा दिया है. किसानों का कहना है कि साही की वजह से हर साल उनकी फसल का 30 फीसदी तक का नुकसान हो जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार साल 2024 तक कश्मीर में केसर की पैदावार घटकर 2.6 मीट्रिक टन रह गई है. इससे 45 मिलियन डॉलर की इंडस्‍ट्री खतरे में आ गई है जो पूरे क्षेत्र में 32,000 परिवारों का भरण-पोषण करता है. 

किसानों का अनुमान है कि पिछले दो सालों में साही के कारण उन्हें कम से कम 300,000 रुपयों के केसर का नुकसान हुआ है. किसानों को पहले तो लगा कि यह आवारा जानवर हैं. लेकिन जब फिर उन्‍हें खेतों के आसपास साही के कांटे मिलने लगे और तब जाकर उन्‍हें पता लगा कि यह समस्या बहुत बड़ी है. 

वन विभाग के प्रयास असफल 

वन विभाग ने बढ़ते संक्रमण को देखते हुए पिछले साल जैविक रैपलेंट स्प्रे की कोशिश की थी. किसानों को उम्मीद थी कि इससे साही दूर रहेंगे. क्षेत्र के एक किसान ने बताया कि यह कुछ समय के लिए कारगर रहा लेकिन वो फिर से वापस आ गए. साही इसके बाद से और भी गहराई तक खुदाई करते हैं. वहीं कुछ किसानों ने पारंपरिक तरीकों का सहारा लिया है जैसे वो अपने खेतों के चारों ओर कंटीली झाड़ियां लगा रहे हैं, फ्लडलाइट्स से लेकर रात में गश्त तक कर रहे हैं. लेकिन इनमें से कोई भी तरीका कारगर नहीं रहा है. 

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