
देश का सरकारी खाद्यान्न स्टॉक पिछले छह साल में सबसे कम हो गया है. ऊपर से अलनीनो यानी सूखे का संकट सामने खड़ा है.उधर, आटा-चावल की बढ़ती महंगाई के बीच अब केंद्र सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर भी रोक लगा दी है. गेहूं के एक्सपोर्ट पर 13 मई 2022 से ही बैन जारी है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या देश में इस समय अनाज संकट जैसी कोई स्थिति है? क्योंकि, सरकार की तमाम कोशिशों के बीच गेहूं और चावल का दाम बढ़ रहा है. लेकिन, एक्सपर्ट खाद्य संकट जैसी स्थिति से साफ इनकार कर रहे हैं. क्योंकि एक सच यह है कि पिछले छह साल में सरकार के पास सबसे कम खाद्यान्न स्टॉक है तो दूसरा सच यह भी है कि अभी जो स्टॉक है वो बफर नॉर्म्स से 148 लाख टन अधिक है.
दरअसल, सरकार ने देश में बढ़ती महंगाई और अंतरराष्ट्रीय हालातों को देखते हुए एक्सपोर्ट पर बैन लगाया है, ताकि कीमतों पर काबू पाया जा सके. साथ ही अगर अलनीनो का संकट आए तो फिर हमारे पास इतना अनाज हो कि उससे पैदा होने वाली क्राइसिस की चुनौती से पार पाया जा सके. बहरहाल, इस समय न सिर्फ अनाज बफर स्टॉक से ज्यादा है बल्कि खाद्यान्न उत्पादन भी रिकॉर्ड हुआ है. खासतौर पर गेहूं और चावल का उत्पादन पिछले साल से अधिक है. चावल की खरीद अब लगभग पिछले साल के बराबर हो चुकी है. जबकि गेहूं की सरकारी पिछले साल से अधिक हुई है. यह बात अलग है कि सरकार 341.5 लाख टन गेहूं खरीदने का अपना लक्ष्य नहीं पूरा कर पाई है.
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केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने कहा है कि फसल वर्ष 2022-23 के लिए आए तीसरे अग्रिम अनुमानों के मुताबिक देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकॉर्ड 3305.34 लाख टन अनुमानित है, जो कि पिछले साल यानी 2021-22 की तुलना में 149.18 लाख टन अधिक है. ऐसे में खाद्यान्न संकट जैसी कोई स्थिति फिलहाल नहीं है. जहां तक बात करें चावल की तो इसका कुल उत्पादन 1355.42 लाख टन अनुमानित है. यह पिछले वर्ष की तुलना में 60.71 लाख टन ज्यादा है. जबकि गेहूं का प्रोडक्शन 1127.43 लाख टन अनुमानित है, जो पिछले साल के मुकाबले 50.01 लाख टन अधिक है.
कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल का कहना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि खाद्यान्न स्टॉक पहले से कम है लेकिन, गेहूं-चावल के रिकॉर्ड उत्पादन और एक्सपोर्ट पर बैन को देखते हुए संकट जैसी कोई स्थिति नहीं पैदा होगी. उत्पादन बंपर हुआ है और एक्सपोर्ट बैन है फिर घबराने की जरूरत नहीं है. अभी गेहूं आयात जैसी भी कोई स्थिति नहीं है. क्योंकि इंपोर्ट ड्यूटी 40 फीसदी है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी 1900 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव चल रहा है. ऐसे में आयात महंगा पड़ेगा. आयात करने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी पूरी तरह से खत्म करनी पड़ेगी. लेकिन, अगर स्ट्रांग अलनीलो रहा तो संकट बढ़ सकता है. अभी मॉनसून की बारिश बेतरतीब है, जिससे उत्पादन पर बुरा असर पड़ सकता है.
हालांकि, कृषि अर्थशास्त्री और आर्कस पॉलिसी रिसर्च की सह-संस्थापक श्वेता सैनी कहती हैं कि सरकार के एक्शन को देखते हुए तो साफ सिग्नल है कि कहीं न कहीं गैप तो है. सरकार ने पहले गेहूं, आटा और अब गैर बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर बैन लगा दिया है. इसका मतलब ही है कि सरकार खाद्यान्न को लेकर कंफर्टेबल जोन में नहीं दिख रही है. सरकार को चुनाव में जाना है और वो इसलिए किसी भी तरह से गेहूं-चावल के दाम को काबू में रखना चाहती है. उधर, अलनीनो की संभावना की वजह से धान की फसल को लेकर अनिश्चितता है. हालांकि, अभी ज्यादा स्ट्रेस गेहूं की तरफ से आ रहा है.
जुलाई 2023 में गेहूं, चावल और मोटे अनाजों का स्टॉक 559.37 लाख मीट्रिक टन है. भारतीय खाद्य निगम के अनुसार साल 2018 के बाद यह सबसे कम स्टॉक है. यह चिंता वाली बात तो है लेकिन घबराने वाली स्थिति नहीं है. क्योंकि बफर स्टॉक के नॉर्म्स के अनुसार 1 जलाई को 411.20 लाख मीट्रिक अनाज ही चाहिए होता है. यानी अभी भारत का बफर स्टॉक सरप्लस है.
एफसीआई की रिपोर्ट के अनुसार 2016 की जुलाई में तो पिछले एक दशक में सबसे कम सिर्फ 498.49 लाख मीट्रिक खाद्यान्न था. साल 2015 में भी खाद्यान्र स्टॉक वर्तमान से कम 547.18 और 2017 में 534.75 लाख मीट्रिक टन था. कमोडिटी एक्सपर्ट इंद्रजीत पॉल का कहना है कि 2016 में स्टॉक बहुत कम था इसलिए रूस-यूक्रेन और आस्ट्रेलिया से भारत को 5.75 मिलियन टन गेहूं का आयात करना पड़ा था. तब इंपोर्ट ड्यूटी 25 फीसदी से घटाकर शून्य कर दी गई थी. फिलहाल, अब सारा दारोमदार मॉनसून पर है, देखना यह है कि वो मेहरबान होता है या फिर नाराज.
देश के लिहाज से गेहूं-चावल के स्टॉक को समझने के लिए ग्लोबल गणित भी समझना होगा. बेमौसम बारिश के बाद भारत भले ही रिकॉर्ड उत्पादन की बात कर रहा हो, लेकिन ग्लोबली गेहूं के उत्पादन में रिकॉर्ड कमी दर्ज की गई है. यूक्रेन में पिछले साल की तुलना में 12 से 15 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन कम हुआ है. तो वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले साल रिकॉर्ड गेहूं उत्पादित करने वाले ऑस्ट्रेलिया में इस साल 30 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई है. इसी तरह चीन में भी गेहूं के उत्पादन कम हुआ है.
रूस ही ऐसा अकेला बड़ा उत्पादक है जहां गेहूं उत्पादन बेहतर हुआ है. हालांकि यूरोप के कई देश युद्ध के बीच यूक्रेन से गेहूं खरीदना चाहते हैं, लेकिन रूस ने काला सागर समझौता रद्द कर ऑस्ट्रेलिया में उत्पादित गेहूं पर दबाब बना दिया है, जिससे इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं के दाम में बीते एक सप्ताह की तुलना में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
वहीं चावल की बात करें तो ग्लोबल स्तर पर चावल का उत्पादन 20 साल के सबसे निचले स्तर पर है. इसके पीछे वजह ये है कि पाकिस्तान, चीन समेत कई एशियाई देशों में चावल का उत्पादन प्रभावित हुआ है. ये ध्यान देना जरूरी है कि दुनिया के 70 फीसदी से अधिक चावल की आपूर्ति एशियाई देश ही करते हैं.
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