बेहतर लाभ देने वाली है पपीते की खेतीबाग–बगीचा: गांव-देहात हो या शहर की चकाचौंध, पपीता हर जगह अपनी धमक बनाए हुए है. मीठे रस और टेस्टी गूदे से भरे पपीते के दीवानेहज़ारोंहैं. ऊपर से इसका मेडिसिनल यूज इसे और ख़ास बनाता है. लीवर की बीमारी हो या पेट-हृदय की कोई और समस्या, पपीता बेहद लाभकारी है और यही कारण है कि ये सलाद के अलावा, फलों की लिस्ट में भी डिमांड के मामले में प्राथमिकता में रहता है. इससे सब्जी और कोफ्ते भी बनाएं जाते हैं. जैम और अचार में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. यानी कुल मिलाकर पपीते की मांग सदाबहार है. दुनिया में भारत पपीता उत्पादक में अव्वल देश है. पिछले दशक में पपीते का उत्पादन तीन गुना बढ़ गया है. इस बाग–बगीचा सीरीज में जानेंगे पपीते की खेती, उसकी बेहतर किस्में और उसकी खेती की तकनीक के बारे में.
IARI PUSA के हॉर्टिकल्चर विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डॉ कन्हैया सिंह ने किसान तक से बातचित के दौरान कहा कि पपीते की खेती की बात करें तो इसके लिए कम पानी और कम मेंटेनेंस की ज़रूरत होने के कारण इसकी खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफ़ा देने वाली होती है. पपीते की कुछ बेहतरीन किस्में हैं जिनकी खेती कर बेहतर लाभ कमाया जा सकता है.
पूसा ड्वार्फ किस्म IARI द्वारा 1986 में विकसित डायोसियस किस्म है. इसमें नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर मिलते हैं. इस किस्म का पौधा बहुत छोटे कद होता है. तने की केवल एक फुट ऊंचाई से फल लगने शुरू हो जाते हैं. फल मध्यम आकार के और अच्छे स्वाद वाले होते हैं जिनका औसत वजन 1.0 से 2.0 किलोग्राम होता है. यह प्रजाति सघन बागवानी के लिए बहुत उपयुक्त है. इसकी उपज 40 से 50 किलोग्राम प्रति पौधा होती है. फल पकने पर गूदे का रंग पीला होता है.
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सूर्या प्रमुख संकर किस्मों में से एक है. भारतीय बागवानी अनुस्थान बैंगलोर द्वारा निकाली गई किस्म है. एक फल का वजन 500 से 700 ग्राम होता है. पकने के बाद फल का रंग एक समान से पीला होता है. इसके फलों का आकार मध्यम और वजन लगभग 600 से 800 ग्राम है. इसकी प्रति पौधे की उपज लगभग 55 से 65 किलोग्राम होती है. फलों की भंडारण क्षमता अच्छी होती है.
रेड लेडी 786 भी एक संकर किस्म है. ताइवान द्वारा विकसित इस किस्म की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें नर और मादा फूल एक ही पौधे में लगते हैं. इससे प्रत्येक पौधे से फल प्राप्त होता है. रोपण के सात से आठ महीने बाद ही पौधे फल देना शुरू कर देते हैं. अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म के फलों की भंडारण क्षमता अधिक होती है. इस प्रजाति की खेती पूरे भारत में सफलतापूर्वक की जा रही है.
यह किस्म IARI ने बनाई है. यह डायोसियस किस्म 1986 में विकसित की गई है. यह पपीते की बहुत बौनी किस्म है, जिसमें फलन जमीन की सतह से 15 से 20 सेमी ऊपर शुरू होता है. इस पौधे को बगीचे और छत पर गमलों में भी लगाया जा सकता है. यह एक द्विगुणित किस्म है, जो तीन साल तक फल देती है. यह किस्म प्रति पौधा 30 किलोग्राम फल देती है.
यह एक संकर किस्म है जिसे वर्ष 1997 में पूसा डेलिसियस, को. 3, सीपी-75 और कूर्ग हनी ड्यू के संकरण द्वारा तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयम्वटूर में विकसित किया गया है. यह एक गाइनोडायोसियस प्रजाति है जिसका फल जमीन से 52.2 सेमी. ऊंचाई पर लगता है. इसके फल लंबे, अंडाकार और लाल गूदे वाले होते हैं. यह प्रजाति प्रति पौधे 112.7 किलो फल देती है जो कि 340.9 टन प्रति हेक्टेयर है.
सिंटा किस्म फिलीपींस में विकसित की गई है. इसके पौधे छोटे और उभयलिंगी फल मध्यम आकार के गोल होते हैं. इसका गूदा पीले रंग का होता है. फल लगभग एक आकार और एक रंग के होते हैं. इसके आलावा को-2 को-6 , पंत पपीता इत्यादि किस्मों को अपने सुविधा अनुसार चयन कर खेती कर सकते हैं.
डॉ कन्हैया सिंह के अनुसार पपीते के पौधे की पहले नर्सरी तैयार की जाती है. फिर इसकी रोपाई होती है. पपीते के पौधे से पहले नर्सरी लगाते हैं. इसके लिए पॉलीथीन की थैली में भी नर्सरी तैयार की जा सकती है. पौधों को जून- जुलाई में लगाना चाहिए. जहां सिंचाई की सही व्यवस्था हो, वहां सितंबर से अक्टूबर या फिर फरवरी से मार्च तक पपीते के पौधे लगाए जा सकते हैं. जब पौधे 8-10 सेंटीमीटर लंबे हो गए हों, तो उन्हें क्यारी से पॉलिथिन में स्थानांतरित कर दिया गया जाता है और एक एकड़ के लिए लगभग 200 ग्राम बीज की जरूरत होती है.
बागवानी विशेषज्ञ ने बताया कि पपीते के पौधे को रोपण से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार और समतल कर लेना चाहिए. पपीता की खेती के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जहां बरसात में पानी नहीं ठहरता हो. फिर पपीते के लिए 1.5x1.5 मीटर की दूरी पर 50 x 50 x 50 सेमी के गड्ढे खोदने चाहिए और अधिक बढ़ने वाली किस्मों के लिए 1.8*1.8 मीटर की दूरी रखनी चाहिए. इसके बाद खेत को 15 दिनों के लिए छोड़ दें ताकि गड्ढों को अच्छी धूप मिले और 20 ग्राम फ्यूराडान देना चाहिए ताकि हानिकारक कीड़े-मकोड़े और कीटाणु आदि नष्ट हो जाएं. इसके बाद पौधे का रोपण करना चाहिए.
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रोपण के बाद गड्ढे को दो फीसदी फोरोलीन ग्रार गोबर की खाद में मिलाकर भर देना चाहिए ताकि वह जमीन से 10-15 सेमी ऊपर रहे. गड्ढे भरने के बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए. रोपण करते समय इस बात का ध्यान रखें कि गड्ढे को ढंक दिया जाए ताकि तने से पानी न रिसने पाए.
पपीता जल्दी फल देने लगता है. इसलिए इसे अधिक उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. हर साल प्रति पौधा 20-25 किलोग्राम गोबर खाद, यूरिया 450 ग्राम, सिंगल सुपरफाॅस्फेट 1200 से 1500 ग्राम, 600 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश की जरूरत होती है. इन उर्वरकों को छह भागों में बांटकर रोपण के दो महीने बाद हर दूसरे महीने में डालना चाहिए.
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