हरियाणा सरकार राज्य में धान की सीधी बुवाई करने के लिए किसानों को प्रेरित कर रही है. इसके लिए वह किसानों को डीएसआर तकनीक अपनाने की अपील कर रही है. राज्य सरकार का मानना है कि इस विधि से धान की सीधी बुवाई करने पर पानी की बहुत अधिक बचत होती है. खास बात यह है कि इस बार राज्य सरकार का कुरुक्षेत्र के ऊपर कुछ ज्यादा ही फोकस है. लेकिन अधिक खरपतवार और कम उपज किसानों व कृषि विभाग के अधिकारियों के लिए चिंता के विषय बने हुए हैं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जिले में घटते भूजल स्तर को देखते हुए डीएसआर को बेहतर तकनीक माना जा रहा है. कुरुक्षेत्र के लिए कृषि विभाग ने सीजन के लिए डीएसआर के तहत 22,000 एकड़ का लक्ष्य रखा है. पिछले साल भी 22,000 एकड़ का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन बाढ़ के कारण फसल के नुकसान के कारण केवल 5,969 एकड़ ही हासिल हो पाया था. डीएसआर के लिए अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए 20 मई से 15 जून तक का समय सबसे उपयुक्त है. किसानों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से डीएसआर तकनीक चुनने पर प्रति एकड़ 4,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि मिलती है.
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धान की खेती करने वाले किसान कुलदीप सिंह ने कहा कि डीएसआर में अत्यधिक खरपतवार मुख्य चिंता का विषय है और इससे उपज प्रभावित होती है. यदि पैदावार अधिक होगी तो किसान इस तकनीक को अपनाएंगे, लेकिन यदि पैदावार में कोई कमी आएगी तो किसान इसे नहीं अपनाएंगे. इस तकनीक में गहन योजना और वैज्ञानिक तरीकों की आवश्यकता है. भारतीय किसान संघ (चरुणी) के प्रवक्ता प्रिंस वड़ैच ने कहा कि इसमें पानी, संसाधन और श्रम का कम उपयोग होता है और घटते भूजल स्तर को देखते हुए इसे बेहतर तकनीक माना जाता है.
हालांकि, किसान घटते भूजल को लेकर भी चिंतित हैं, लेकिन पारंपरिक रोपाई विधि की तुलना में डीएसआर में प्रति एकड़ दो-चार क्विंटल की गिरावट किसानों को हतोत्साहित करती है. इसके अलावा, किसानों को लगातार नुकसान का सामना करना पड़ रहा है और वे पारंपरिक तरीकों को छोड़कर अपनी फसल के साथ पैदावार के मामले में कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं. कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के उपमंडल अधिकारी जितेंद्र मेहता ने कहा, इस सीजन के लिए डीएसआर योजना के बारे में पूछताछ करने के लिए किसान विभाग से संपर्क कर रहे हैं और यह दर्शाता है कि डीएसआर धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है. खरपतवार प्रबंधन के माध्यम से खरपतवार की समस्या का प्रबंधन किया जा सकता है.
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उन्होंने कहा कि कई बीज निर्माता कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं और उन्होंने अपने पैकेज भी लॉन्च किए हैं, जिनमें पूरी गाइडलाइन दी गई है, जिसका पालन करके किसान बेहतर परिणाम प्राप्त कर सकते हैं. विभाग के अधिकारी किसानों को डीएसआर अपनाने में मदद करने के लिए फील्ड में काम कर रहे हैं. जितेंद्र मेहता ने कहा कि हमें उम्मीद है कि किसान नई तकनीक अपनाएंगे और लक्ष्य हासिल करेंगे.
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