मूंगफली की तरह बहुत कम ही फसलें होती हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसकी खेती साल भर की जा सकती है. बस ध्यान रखना होता है कि इस फसल की सही ढंग से देखभाल हो, ताकि उसमें कोई रोग न लगे. उसमें कोई बीमारी न हो जाए जिससे पौधे के पोषक तत्व खत्म हो सकते हैं. ऐसे में पौधे नहीं बचेंगे, और उपज भी नहीं मिलेगी. ऐसे में किसानों को जानना चाहिए कि किस मौसम में मूंगफली में कौन सी बीमारी होने की आशंका रहती है और उससे बचने के क्या उपाय हैं.
मूंगफली में लगने वाली बीमारियों में टिक्का रोग, गेरुआ रोग, सड़न रोग, विषाणु रोग, एन्थ्रेक्नोज आदि शामिल हैं. सफेद लट्ट, माहू और दीमक भी मूंगफली को प्रभावित करते हैं. इससे बचने का यही उपाय है कि किसान इन रोगों और उसके उपचार के बारे में जानें. मूंगफली तिलहन फसल में आती है जिसमें 55 परसेंट तक तेल होता है. तेल के अलावा और भी कई प्रोसेस्ड फूड आइटम में इसका प्रयोग होता है. प्रमुख मूंगफली उत्पादक राज्यों में गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान शामिल हैं. पश्चिमी राजस्थान में इसकी खेती बहुतायत में होती है.
मूंगफली की पैदावार अधिक चाहिए तो कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है. इसमें सबसे अहम है बीजों का उपचार. यानी बुवाई से पहले मूंगफली के बीज का उपचार कर लेना चाहिए ताकि उसके साथ कोई बीमारी न पनप सके. इसके साथ ही फसल को बचाने के लिए कीटों का नियंत्रण जरूरी होता है जिसके लिए नीम की खली का उपयोग किया जाता है.
मूंगफली की फसल को स्वस्थ रखने या बीमारियों से दूर रखने के लिए उर्वरक का बड़ा रोल होता है. इसके लिए फसल में नाइट्रोजन डाला जाता है. एक हेक्टेयर खेत में 15 किलो नाइट्रोजन और 60 किलो फॉस्फोरस डाला जाता है. खाते में 250 ग्राम जिप्सम डालने की सलाह दी जाती है जो कि मूंगफली में तेल की मात्रा को बढ़ाता है. इससे मूंगफली के दाने भी बड़े होते हैं.
किसान चाहें तो खेत में कंपोस्ट या गोबर खाद भी डाल सकते हैं. लेकिन ध्यान ये रखना होगा कि यह खाद बुवाई से 20-25 दिन पहले खेत में डाली जानी चाहिए. इसकी मात्रा प्रति हेक्टेयर खेत में 5 से 10 टन तक हो सकती है. उपज अधिक चाहिए तो खेत में नीम की खली भी मिला सकते हैं. यह उपज बढ़ाने के साथ कीटों को भी खेत और फसल से दूर रखती है. नीम खली भी पहले ही डाली जाती है और जब खेत की जुताई हो रही हो, तो उसी वक्त मिट्टी में मिलानी चाहिए. एक हेक्टेयर खेत में 400 किलो तक नीम खली डाली जा सकती है.
नीम खली से पौधों में दीमक नहीं लगते और इससे नाइट्रोजन की सप्लाई भी हो जाती है. कहा जाता है कि नीम की खली से मूंगफली में 15 परसेंट से अधिक उपज ली जा सकती है. मूंगफली का दाना भी बड़ा होता है जिससे किसानों को बेहतर मुनाफा मिलता है. अगर ठीक से खेती की जाए तो एक हेक्टेयर में 30-35 कुंटल उपज आराम से ली जा सकती है. सामान्य तौर पर 25-30 कुंटल मूंगफली की उपज एक हेक्टेयर में मिल ही जाती है. जिस वक्त फसल में फल यानी कि गिरी आने लगे, उस समय खेत में पर्याप्त नहीं होनी चाहिए. इसलिए मूंगफली में सिंचाई का खास ध्यान रखना जरूरी होता है.
मूंगफली की उन्नत किस्मों में गिरनार, जीजी 20, एचएनजी 10, एनएनजी 169, एचएनजी 123, आरजी 425, आरजी 120 से 130, एमए 10 125 से 130, एम 548, 120 से 126, टीजी 37ए 120 से 130, जी 201 110 से 120 शामिल हैं. गुजरात और राजस्थान के किसान इन किस्मों से अच्छी पैदावार प्राप्त करते हैं.
मूंगफली में मूल संधि रोग आम बात है जिसमें फफूंद लग जाती है और जड़ें और तनाएं काली पड़ने लगती हैं. इससे बचने के लिए बीज का उपचार जरूरी होता है जिसके लिए किसान थायरम नाम की दवा से बीज का उपचार कर सकते हैं. एक किलो बीज में यह दवा 2 ग्राम की दर से डाली जाती है. थायोफिनेट मिथाइल भी बीज के साथ मिलाकर उसका उपचार किया जा सकता है. मूल संधि रोग खड़ी फसल में भी लग सकती है जिससे बचाव के लिए ऊपर बताई गई दवाओं का घोल बनाकर छिड़काव किया जाना चाहिए. इससे फसल की सुरक्षा होगी और उपज भी बढ़ेगी.
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