चुनावी सीजन के बीच सोयाबीन के दाम में लगातार हो रही गिरावट ने केंद्र सरकार की चिंता बढ़ा दी है. वजह यह है कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और सोयाबीन वहां की प्रमुख फसल है. ऐसे में घाटे से नाराज किसान बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों से चुनाव में बदला ले सकते हैं. लोकसभा चुनाव के दौरान प्याज के एक्सपोर्ट पर बैन था, जिससे उसका दाम कम हो गया था. इसलिए नाराज किसानों ने बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों को बड़ा सियासी झटका दिया था. उनकी लोकसभा सीटें कम हो गईं. इसको देखते हुए अब विधानसभा चुनाव के दौरान सोयाबीन के दाम में गिरावट ने राज्य की सत्ताधारी पार्टियों को बेचैन कर दिया है. जिसकी वजह से केंद्र पर खाद्य तेलों का आयात शुल्क बढ़ाने का दबाव बढ़ गया है, ताकि यहां पर सोयाबीन किसानों को उनकी उपज की सही कीमत मिल सके.
बीजेपी महाराष्ट्र की सत्ता में प्रमुख भागीदार है और केंद्र में उसी की अगुवाई वाली सरकार है. अब अगर सोयाबीन का दाम एमएसपी से कम रहा तो विधानसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा नुकसान हो सकता है. बहरहाल, राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-नाम के अनुसार वर्धा जिले के हिंगणघाट मंडी में 28 अगस्त को सोयाबीन का न्यूनतम दाम 2,325, औसत दाम 4,295 और अधिकतम दाम 4,385 रुपये प्रति क्विंटल रहा. इसी तरह वाणी मंडी में न्यूनतम दाम 2,795, औसत 4,335 और अधिकतम 4,335 रुपये रहा. जबकि एमएसपी 4892 रुपये प्रति क्विंटल है. उत्पादन लागत 3261 रुपये प्रति क्विंटल आती है.
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किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट का कहना है कि खाद्य तेलों पर कोविड शुरू होने से पहले आयात शुल्क 45 फीसदी से अधिक था, जिसे अब घटाकर न के बराकर कर दिया गया है. जिसकी वजह से सोयाबीन का इतना कम दाम मिल रहा है. आयात शुल्क कम होने की वजह से दूसरे देशों से भारत में खाद्य तेलों को मंगाना बहुत सस्ता हो गया है. इसकी कीमत किसानों को चुकानी पड़ रही है.
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापारी महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने बताया सरकार खाद्य तेलों पर आयात शुल्क बढ़ाने पर सरकार विचार कर रही है, ताकि स्वदेशी तिलहन उत्पादकों, जिन में खासकर सोयाबीन उत्पादक किसानों के हितों को सुरक्षित किया जा सके. वर्तमान में सोयाबीन तेल, क्रूड पाम तेल और सूरजमुखी तेल पर 5.5% और रिफाइंड तेल पर 13.75% आयात शुल्क लागू है. तिलहन के दाम सुधारने के लिए सरकार आयात शुल्क बढ़ा सकती है. क्योंकि इतने कम आयात शुल्क की वजह से दूसरे देशों से आयात यहां पर एमएसपी के भाव पर खरीद से सस्ता हो गया है.
सोयाबीन की खेती करने वाले किसान घटते दाम से नाराज हैं. दाम घटने के लिए वो केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. ऐसे में इससे होने वाले नुकसान का वो विधानसभा चुनाव में बदला ले सकते हैं. इसलिए खासतौर पर बीजेपी की चिंता बढ़ी हुई है. तिलहन फसलों का दाम कम होगा तो फिर खाद्य तेलों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने का सपना कभी हकीकत में नहीं बदल पाएगा.
भारत हर साल करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये के खाद्य तेलों का आयात कर रहा है. रामपाल जाट के मुताबिक इतनी बड़ी रकम का खाद्य तेल हम इसलिए मंगाने पर मजबूर हैं क्योंकि हमारी पॉलिसी ने किसानों को उचित दाम से वंचित किया. जिससे उन्होंने तिलहन फसलों की खेती छोड़ दी. अगर सोयाबीन की लागत भी किसानों को नहीं मिलेगी तो वो इसकी भी खेती कम कर देंगे. जिससे खाद्य तेलों पर भारत आयात निर्भरता और बढ़ जाएगी.
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