भारत में अदरक की कई किस्मों की खेती की जाती हैं वर्तमान में कई क्षेत्रों में अदरक की कई उन्नत किस्में उगाई जा रही है जिसमे से ज्यादार उनका नाम उगाये गये क्षेत्र पर रखा गया है. अदरक की खेती बतौर नकदी फसल के रूप में की जाती है.अदरक का इस्तेमाल चाय और सब्जी के अलावा अचार, मुरब्बा और चटनी बनाने में भी होता है. बाजार में सालभर इसकी मांग बनी रहती है. उत्पादकों को इसकी खेती से अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित और भरपूर उत्पादन देने वाली किस्मों को उगाना चाहिए.
वैसे तो अदरक की बुवाई का उचित समय अप्रैल से मई का होता है. हालांकि जुलाई और अगस्त में भी इसकी बुवाई की जा सकती है. कहा जाता है. ये समय बुवाई का सही समय होता है. ऐसे में किसान शुरू में ही सही किस्मों का चयन कर पैदावार के साथ-साथ अपना मुनाफा भी बढ़ा सकते हैं. वर्तमान में किसानों को अदरक का रेकॉर्ड भाव मिल रहा हैं. ऐसे में इस खरीफ सीजन में किसान अदरक की वैज्ञानिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.
इसके पौधों में कल्ले अधिक निकलते हैं. प्रकंद का छिलका सफेद एवं चमकदार होता है. इस किस्म को तैयार होने में 225 से 230 दिनों का समय लगता है. यह किस्म प्रकंद विगलन रोग के लिए प्रतिरोधक है. प्रति एकड़ भूमि से 80 से 92 क्विंटल तक पैदावार होती है.
ये किस्म हल्के सुनहरे रंग की होती है। 230-240 दिन में तैयार हो जाती है। इस किस्म की उपज क्षमता 175 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। इस किस्म में मृदु विगलन रोग नहीं लगता। मृदु विगलन रोगरोग में पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और पत्तियां सूख जाती है.
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इस किस्म को किसान ज्यादतर इस्तेमाल करते है इसकी अवधि 200 से 218 दिन लगता है यहा किस्म 218 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. इसकी औसतन पैदावार 4.8 टन प्रति एकड़ होती है.
उत्तर भारतीय क्षेत्रों में खेती के लिए यह उपयुक्त किस्म है यह किस्म करीब 8 से 9 महीने में फसल पक कर तैयार हो जाती है. एक एकड़ जमीन से 80 से 100 क्विंटल तक अदरक की पैदावार होती है.
इस किस्म की फसल को तैयार होने में करीब 220 से 240 दिनों का समय लगता है. प्रति एकड़ खेत से 84 से 92 क्विंटल तक अदरक की उपज होती है. इससे करीब 22.6 प्रतिशत सूखी अदरक, 3.4 प्रतिशत कच्चे रेशे एवं 3.1 प्रतिशत तेल की मात्रा प्राप्त होती है. इस किस्म को अच्छी किस्मे के रूप में माना जाता है.
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