कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में जीआई टैग वाले तुर दाल के किसानों ने सरकार से मांग की है कि इस तरह की दालों की वैरायटी के लिए अलग से न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी कि MSP की घोषणा की जाए. अभी देश में एमएसपी को लेकर कई विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं और इसे कानूनी दर्जा देने की मांग उठी है. इसके लिए कई जगह विरोध प्रदर्शन भी चल रहे हैं. इसी क्रम में कलबुर्गी के किसानों ने कहा है कि जीआई टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन टैग) वाली दालों के लिए सरकार को अलग से एमएसपी की व्यवस्था करनी चाहिए और उसी के मुताबिक दामों की घोषणा की जानी चाहिए.
किसानों की मांग है कि उन्हें सामान्य तुर दाल के लिए एमएसपी पर 20 परसेंट प्रीमियम मूल्य दिया जाए. किसानों का कहना है कि सरकार ऐसा करती है तो उन्हें जीआई टैग वाली उपजों की पहचान बनाए रखने में मदद मिलेगी और वे इसके लिए पूरी मेहनत करेंगे. किसानों का कहना है कि सरकार अगर प्रीमियम मूल्य देती है तो किसानों को जीआई टैग वाली दालों को उगाने के लिए और अधिक प्रेरणा मिलेगी, साथ ही तुर की पहचान बचाए रखने में भी मदद मिलेगी.
अलग से एमएसपी के बंदोबस्त की मांग कर्नाटक प्रदेश रेड ग्राम प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के किसानों ने की है. इस संगठन के किसानों ने एमएसपी फिक्स किए जाने के मामले में प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप करने की मांग उठाई है. इस संगठन ने एमएसपी की बाबत प्रधानमंत्री कार्यालय को एक मेमोरेंडम भेजा है. इसमें लिखा गया है कि सरकार को वैज्ञानिक और व्यावहारिक तरीके से विचार करते हुए जीआई टैग वाली उपजों के लिए अलग से एमएसपी की व्यवस्था करनी चाहिए.
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कर्नाटक प्रदेश रेड ग्राम प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष बासवाराज इंगिन ने 'बिजनेसलाइन' से कहा, तुर दाल की जीआई टैग वैरायटी के लिए अलग से एमएसपी होनी चाहिए. एमएसपी की यह कीमत सामान्य तुर दाल से कम से कम 20 फीसद अधिक होनी चाहिए. यह राशि दाल किसानों के लिए इनसेंटिव की तरह होगी जिससे उन्हें अधिक खेती करने के लिए बढ़ावा मिलेगा. केंद्र सरकार ने मौजूदा खरीफ सीजन में तुर दाल की एमएसपी 7550 रुपये निर्धारित की है.
कर्नाटक के कलबुर्गी जिले में उगाई जाने वाली तुर दाल देश-विदेश में मशहूर है. इसकी क्वालिटी को देखते हुए साल 2019 में जीआई टैग दिया गया था. इस टैग के लगते ही किसी भी प्रोडक्ट की खास पहचान हो जाती है और उसे निर्यात में बड़ी सहूलियतें मिलती हैं. साथ ही कीमतें भी प्रीमिमय हो जाती हैं. कलबुर्गी के उन इलाकों में इस दाल की अधिक खेती होती है जहां वर्षा आधारित सिंचाई की व्यवस्था अच्छी है. जिस इलाके में इस दाल की उपज होती है, वहां की मिट्टी की क्वालिटी भी ऐसी है जो जीआई टैग दिलाने में मददगार है. यहां की मिट्टी ऐसी है कि तुर दाल में कैल्शियम और पोटैशियम की मात्रा अधिक पाई जाती है. यही वजह है कि कलबुर्गी की तुर दाल को प्रीमियम दाल की श्रेणी में रखा जाता है. कलबुर्गी की मिट्टी की खासियत की वजह से तुर दाल का स्वाद और सुगंध बहुत ही खास है. इस दाल में प्रोटीन की मात्रा भी अधिक होती है.
देश के अलग-अलग हिस्सों में उगाई जाने वाली तुर दाल के मुकाबले कलबुर्गी (जिसे गुलबर्गा दाल भी कहते हैं) की तुर दाल कई मायनों में अलग होती है. इसकी खेती के बारे में कहा जाता है कि यह 1445 ईसा पूर्व से बोई जा रही है. यह पूरी तरह से बिना पॉलिश वाली दाल है जिसे प्रीमियम क्वालिटी में पटका दाल भी कहते हैं. यह अपने यूनीक स्वाद और सुगंध के लिए प्रसिद्ध है. साथ ही इसे बनाने पर यह जल्दी पकती है. अन्य दालों के मुकाबले इसकी शेल्फ लाइफ अधिक है. दालें अधिक दिनों तक नहीं चलतीं और उनके खराब होने की संभावना अधिक होती है. लेकिन कलबुर्गी तुर दाल इस मामले में बेहतर है और अन्य दालों के मुकाबले कच्चे में जल्द खराब नहीं होती.
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