बच्चा हो या जवान, महिला हो या बुजुर्ग, डॉक्टरों के मुताबिक किसी में प्रोटीन की कमी है तो किसी में प्रोटीन और आयरन-जिंक दोनों की ही कमी है. यही वजह है कि न्यूट्रीशन एक्सपर्ट रोजाने के खाने में ज्यादा से ज्यादा प्रोटीन वाली चीजें खाने की सलाह देते हैं. महिलाओं को खासतौर पर आयरन की कमी पूरा करने की सलाह दी जाती है. लेकिन अब इस परेशानी को दूर करने के लिए बाजार में खास तरह के चावल आने वाले हैं. देश के राइस साइंटिस्ट ने बड़ा कमाल किया है.
चावल की चार ऐसी नई वैराइटी तैयार की गई हैं जिसमे प्रोटीन की मात्रा ज्यादा है. इतना ही नहीं आयरन और जिंक की मात्रा भी बढ़ाई गई है. कुछ और खास काम करने के बाद जल्द ही चावल की ये नई वैराइटी बाजार में आ जाएगी. ये जानकारी डॉ. हिमांशु पाठक, सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग, भारत सरकार एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने दी है.
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डॉ. हिमांशु पाठक ने किसान तक को बताया कि अभी तक बाजार में चावल की जो वैराइटी पैदा हो रही है उसके एक प्लेट चावल में पांच ग्राम प्रोटीन है. अब अगर कोई दिनभर में तीन प्लेट चावल खाता है तो उसे 15 ग्राम प्रोटीन मिलता है. लेकिन हमारे साइंटिस्ट ने चावल की चार ऐसी वैराइटी तैयार की हैं जिसके एक प्लेट चावल में 10 ग्राम प्रोटीन है. ये सभी चार वैराइटी पूरी तरह से तैयार हैं. खेतों में इसका उत्पादन भी हो रहा है.
लेकिन हमारी कोशिश है कि इस खास चार वैराइटी के गुण चावल की उन वैराइटी में डाल दिए जाएं तो सबसे ज्यादा बिकती है और खाई भी जाती है. इतना ही नहीं इन वैराइटी में सिर्फ प्रोटीन की मात्रा ही ज्यादा नहीं है, बल्कि जिंक और आयरन भी है. अभी टेस्ट और दूसरी तरह के कुछ काम बाकी रह गए हैं. इसके बाद जल्द ही ये वैराइटी बाजार में आ जाएंगी. वहीं दूसरी ओर उन्होंने एक और जानकारी देते हुए बताया कि ऐसा नहीं है कि एक किलो चावल उगाने के लिए सभी जगह चार से पांच हजार लीटर पानी खर्च करना पड़ता है. बहुत सारी ऐसी भी जगह हैं जहां एक किलो चावल 15 सौ लीटर पानी में हो जाता है. ये वो जगह हैं जहां बारिश खूब होती है.
डॉ. एके सिंह, डायरेक्टर आईसीएआर ने बताया कि दो साल में बासमती की तीन नई किस्म तैयार की गई हैं. इनका नाम पूसा बासमती 1847, 1885 और 1886 हैं. तीनों ही वैराइटी पत्ती के झुलसा और झोंका रोग रोधी क्षमता से लैस हैं. इन पर दवाई छिड़कने की जरूरत नहीं पड़ेगी. जिन दो नई किस्म 1979 और 1985 पर काम चल रहा है उसमे धान की सीधी बिजाई हो सकेगी. पानी कम लगेगा, ग्रीन गैस का उत्सर्जन कम होगा और चार हजार रुपये प्रति हेक्टेयर तक की बचत होगी.
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डॉ. सुंदरम ने समारोह को आयोजित करते हुए बताया कि हम लोग जीनोम ब्रीडिंग तकनीक पर काम कर रहे हैं. हाल ही में हमने सांभा मसूरी वैराइटी को इस तकनीक की मदद से एडिट किया है. अभी तक सांभा मसूरी से चार से पांच टन तक पैदावार हो रही थी. लेकिन इस कोशिश के बाद से अब पैदाइवार 35 से 40 फीसद तक बढ़ गई है. साथ ही सिंचाई के वक्त. को 20 से 25 दिन तक कम कर दिया गया है.
आईसीएआर के सहयोग से चावल पर तीन दिन की 59वीं वार्षिक चावल समूह बैठक (एआरजीएम) का आयोजन किया गया है. ये 24 अप्रैल से 26 अप्रैल, 2024 तक चलेगी. तीन दिवसीय कार्यक्रम में राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय, सरकारी और निजी क्षेत्रों के 350 से अधिक प्रतिनिधि चावल के अनुसंधान और विकास में प्रगति पर चर्चा करने के लिए जमा हुए हैं. गौरतलब रहे सन् 1965 में स्थापित एआईसीआरपीआर ने भारत को एक चावल आयातक से विश्व के सबसे बड़े निर्यातक में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. 45 वित्त पोषित केंद्रों और लगभग 100 स्वैच्छिक केंद्रों को आच्छादित करने और अधिकतम 400 वैज्ञानिकों द्वारा समर्थित एक नेटवर्क के साथ, एआईसीआरपीआर चावल उत्पादकता को बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सहयोगी अनुसंधान पहलों के आधार में एक पिलर के रूप में खड़ा है.
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