खरीफ सीजन (kharif season) के अंतर्गत धान की फसल की तैयारी के लिए मौसम का अनुकूल होना भी जरूरी होता है. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा मौसम आधारित कृषि सलाह भी जारी की जाती है. उत्तर भारत में हो रही मई में बारिश को देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से वैज्ञानिक अब खरीफ की सीजन की फसलों की तैयारी के लिए किसानों को सलाह भी दे रहे हैं. लखनऊ स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अखिलेश दुबे ने किसानों के लिए समय पूर्व धान की नर्सरी लगाने की सलाह दी है. उन्होंने किसान तक को बताया की बेमौसम बारिश की वजह से इन दिनों जमीन में पर्याप्त नमी है और तापमान में भी कमी है. ऐसे में किसान इस मौसम का उपयोग करके अपनी धान की नर्सरी को 10 मई तक लगा सकते हैं जिसका फायदा उन्हें रबी की सीजन की फसल में मिलेगा.
1 मई से 5 मई तक पूरे उत्तर प्रदेश में कहीं बारिश तो कहीं ओले पड़ रहे हैं. ऐसे में खेतों में पर्याप्त नमी पहुंच गई है,जिसको देखते हुए लखनऊ के कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अखिलेश दुबे ने किसानों के लिए इस मौसम में खरीफ सीजन की तैयारी करने की सलाह दी है. उन्होंने किसान तक को बताया कि मैनपुरी से लेकर आगरा के बेल्ट में मक्के की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इन दिनों जमीन में पर्याप्त नमी है, जिसको देखते हुए किसानों को अपने खेतों की जुताई करानी चाहिए, जिससे खरपतवार भी नष्ट होंगे और कीट भी. जिसका फायदा मक्के की खेती में किसानों को मिलेगा. वहीं धान की खेती के लिए समय पूर्व नर्सरी लगाने की सलाह दी है.
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उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में सबसे ज्यादा धान की खेती खरीफ सीजन के अंतर्गत होती है. ज्यादातर किसान जून महीने में धान की नर्सरी लगाते हैं, लेकिन इस बार मई में बेमौसम बारिश के चलते अधिकतम तापमान में गिरावट देखी गई है. जिसका फायदा किसान भरपूर उठा सकते हैं. डॉ.अखिलेश दुबे ने बताया कि जो किसान 10 मई तक धान की नर्सरी डाल देंगे. वे समय से अपनी धान की फसल के चक्र को पूरा कर लेंगे, जिसका फायदा रबी सीजन में उनको मिलेगा. सितंबर महीने में ही धान की फसल कटने को तैयार हो जाएंगी. वहीं अक्टूबर महीने से गेहूं, आलू और सब्जियों की खेती रबी की सीजन में की जा सकती है. ऐसे में किसानों को इसका पूरा फायदा भी मिलेगा. वहीं उन्होंने किसानों से 120 दिन में पैदा होने वाली धान की फसल लगाने के सुझाव भी दिए हैं.
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