हल्दी की खेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार का फोकस है. केंद्र सरकार ने हल्दी बोर्ड का गठन भी कर दिया है. भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) की स्टडी में कहा गया है कि किसान हल्दी की खेती से दूर जा रहे हैं. इसकी वजह कीमत में उतार-चढ़ाव और मौसम से फसल को नुकसान प्रमुख है. इसकी वजह से हल्दी की खेती का रकबा बढ़ नहीं रहा है और किसानों की रुचि कम होती जा रही है.
भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध अनुसंधान परिषद (ICRIER) की स्टडी के अनुसार भारत को हल्दी खरीदने वाले देशों की ओर से मसालों को अस्वीकार करने, अधिक कीमत, कीमत में उतार-चढ़ाव और रकबे में कटौती जैसी चुनौतियां परेशानी बन रही हैं. इससे वैश्विक व्यापार में 62 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी के बावजूद हल्दी के विकास में बाधा आ रही है. स्टडी में कहा गया है कि सरकार को हल्दी उत्पादन को स्थिर करने और किसानों को सशक्त बनाने के लिए टारगेट तय करने के साथ ही हस्तक्षेप करने की जरूरत है. इससे अगले 5 साल में यानी 2030 तक हल्दी निर्यात में 1 बिलियन डॉलर का टारगेट हासिल किया जा सके.
ICRIER के निदेशक डॉ. दीपक मिश्रा ने कहा कि इस स्टडी में वैश्विक हल्दी उत्पादक और राष्ट्रीय निर्यातक के रूप में भारत की स्थिति को मजबूत करने की रणनीतियों की रूपरेखा दी गई है. हल्दी बोर्ड क्वालिटी स्टैंडर्ड, पता लगाने की क्षमता पक्की कर सकता है. इसके अलावा सर्टिफिकेशन और ट्रेनिंग प्रॉसेस को व्यवस्थित कर सकता है. एमवे इंडिया के प्रबंध निदेशक राजेश चोपड़ा ने कहा कि खाद्य सुरक्षा को पोषण सुरक्षा से जोड़ने तथा हल्दी को न्यूट्रास्युटिकल के रूप में बढ़ावा देने की रिपोर्ट से भारत को वैश्विक हल्दी केंद्र बनाने के सरकार के सपने को पूरा करने में मदद मिल सकती है.
हल्दी किसानों के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि पिछले तीन वर्षों में खेती में गिरावट आई है. इसके लिए गिरती कीमतें, अपर्याप्त बुनियादी ढांचा, प्रतिकूल मौसम, कीटों का प्रकोप, खरीदारों से खराब संपर्क और मिट्टी की उर्वरता में कमी जैसे फैक्टर्स जिम्मेदार हैं. देश में 2023-24 में 1,041,730 मीट्रिक टन उत्पादन के साथ 297,460 हेक्टेयर में हल्दी की खेती करने के बावजूद उत्पादन को मजबूत करने और किसानों को सशक्त बनाने के लिए सुधार की जरूरत है.
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