खरीफ सीजन खत्म होने को है, लेकिन सरकी (कपास बीज) की कीमतों में उछाल आने से कपास की कीमतों में भी सुधार हुआ है. पिछले सप्ताह सरकी की कीमतों में 300 से 400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हुई, जिससे कपास के बाजार भाव में भी उछाल आया है. फिलहाल कपास के भाव 7400 से 7500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए हैं. हालांकि, ज्यादातर किसान अपना कपास बेच चुके हैं, जिससे उनके पास सिर्फ 10 फीसदी कपास ही बचा है.
राज्य में अब तक करीब 74 लाख गांठ कपास की खरीद हो चुकी है. नवंबर-दिसंबर में ही किसानों ने बड़ी मात्रा में कपास बेच दिया था, तब कीमतें कम थीं. अब सरकी की बढ़ी कीमतों का सीधा असर कपास की कीमतों पर पड़ रहा है, लेकिन इसका फायदा कुछ ही किसानों को मिल पाएगा, क्योंकि अब उनके पास बहुत कम मात्रा में कपास बचा है.
सरकार ने इस खरीफ सीजन में मध्यम धागे वाली कपास के लिए 7121 रुपए प्रति क्विंटल और लंबे धागे वाली कपास के लिए 7521 रुपए प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय किया था. लेकिन, कई किसानों को यह अनुकूल कीमत भी नहीं मिली. अक्टूबर-नवंबर में जब किसानों ने अपनी कपास बेची थी, तब बाजार में कीमत अपेक्षाकृत कम थी. अब जब सरकी के दाम बढ़ने से कपास के दाम भी बढ़ गए हैं, तो ज्यादातर किसानों के पास बेचने के लिए कपास ही नहीं बचा है.
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अब तक देशभर में 260 से 270 लाख गांठें खरीदी जा चुकी हैं. इसमें कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (CCI) ने करीब 1 करोड़ गांठें खरीदी हैं. बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि CCI की इस आक्रामक खरीदारी के कारण खुले बाजार में कपास की उपलब्धता कम हो गई है, जिससे कीमतों में तेजी आई है.
कृषि विशेषज्ञ राजकुमार रुगंथा का कहना है कि सरकी के दाम में यह बढ़ोतरी आमतौर पर अप्रैल-मई में होती है, लेकिन इस बार सीसीआई द्वारा बड़ी मात्रा में कपास की खरीद के कारण बाजार में कपास की आवक कम हो गई. कपास की कम उपलब्धता के कारण सरकी की आपूर्ति भी कम हो गई, जिसके कारण इसके दाम 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ गए. रुगंथा का मानना है कि किसानों के पास बचा 10 फीसदी कपास अब बेहतर दामों पर बेचा जा सकता है, क्योंकि बाजार में कीमतों में और तेजी आने की संभावना है.
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अकोला जिले के किशन गोपाल पोहरे कहते हैं कि जब किसानों के पास कपास की बड़ी मात्रा थी, तब कीमतें नहीं बढ़ीं. उन्होंने कहा, "अब जब किसानों के पास सिर्फ़ 10-15% कपास बचा है, तब कीमतें बढ़ गई हैं. हालांकि, मौजूदा कीमतें भी किसानों के लिए पर्याप्त नहीं हैं. कपास की कीमत 8000 से 9000 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए थी, ताकि किसानों को वास्तविक लाभ मिल सके."
जानकारों के मुताबिक, जिन किसानों के पास अभी कपास बचा हुआ है, उन्हें इसका सीधा फायदा मिल सकता है. कपास की कीमतों में उछाल से कपास की कीमतों में और उछाल आ सकता है. हालांकि, ज्यादातर किसान पहले ही कपास बेच चुके हैं, इसलिए बची हुई 10 फीसदी कपास ही बढ़ी हुई कीमत का फायदा उठा पाएगी.
कुल मिलाकर, सरकी की कीमतों में वृद्धि से कपास के बाजार मूल्य में सुधार हुआ है, लेकिन इसका लाभ बहुत कम किसानों को मिलेगा क्योंकि अधिकांश किसानों ने पहले ही अपनी उपज कम कीमतों पर बेच दी थी.
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