Gorakhpur Farmer Story: आत्मबल और हौसला हो तो संसाधन की कमी भी राह नहीं रोक सकती. जी हां गोरखपुर के किसान हरिश्चंद्र इसकी मिसाल हैं. जंगल कौड़िया क्षेत्र के पंचगावां गांव के रहने वाले हरिश्चंद्र ने महज एक एकड़ खेत में 20 से ज्यादा फसल उगकर खुद को तो समृद्ध किया ही है, खेत की कमी से जूझ रहे किसानों को नई राह भी दिखाई है. हरिश्चंद्र अपनी फसल के लिए पौध भी खुद तैयार करते हैं. इसके लिए उन्होंने ग्रीन हाउस और पाली हाउस बना रखा है. इसमें तैयार पौधों को वह आसपास के किसानों को बेचते भी हैं. सबसे खास बात है कि बाजार पर निर्भरता कम करने के लिए हरिश्चंद्र फसलों के लिए जैविक खाद और कीटनाशक खुद बनाते हैं.
ऐसे में वह रासायनिक खाद व कीटनाशक के इस्तेमाल से परहेज करते हैं. वह नाडेप कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट, वर्मी वाश, मटका खाद और हरी खाद बनाते हैं. कीटनाशक के तौर पर खुद द्वारा तैयार नीम आयल और मटका कीटनाशक का प्रयोग करते हैं. हरिश्चंद्र ने बताया कि वो भिंडी, लौकी, चुकंदर, कुंदरू, करेला, प्याज, मटर, लहसुन, मेथी, पालक, मूली, तरोई, धनिया, टमाटर, हरी मिर्च, सरपुतिया, बंडा, प्याज आदि की फसलों की खेती कर रहे हैं. मौसम के अनुसार हम फसलों की खेती करते है.
माडल किसान हरिश्चंद्र बताते हैं कि आप बाहर की सब्जी और मेरी खेत की सब्जियों को खाकर देखिए, अंतर आपको साफ पता चल जाएगा. अगर हमारी सब्जी में कई कमी नजर आए, तो मैं खेती करना छोड़ दूंगा. उन्होंने बताया कि पहले वो 10 हजार रुपये ही कमा पाते थे, लेकिन अब सालाना 2 लाख रुपये के करीब आय हो जाती है. हरिश्चंद्र ने बताया कि वो सब्जियों की खेती में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करते, जिसके कारण उनकी खेत की सब्जियों का टेस्ट बहुत अलग होता है. बहुत से लोग खाने के बाद तारीफ करते है. बारिश के मौसम में वो मचान लगाकर खेती करते है. उन्होंने बताया कि खाद खुद घर में बनाते है जिसमें दही का माटा, नीम का पत्ता, तुलसी का पत्ता, बेहा का पत्ता सब मिलाकर 8 दिन रख देता हूं. जब 8 दिन बाद खाद विकसित हो जाता है तो उसे खेत में छिड़काव कर देते है.
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गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप में माडल किसान के रूप में चयनित होने के बाद हरिश्चंद्र ने न केवल संस्था के मार्गदर्शन में अपनी खेती को आगे बढ़ाया बल्कि इसे लेकर कई फसलों की बुआई का प्रयोग किया. यही वजह है कि आज वह एक एकड़ खेत में 20 से अधिक फसलों की जैविक खेती कर रहे हैं. संस्था उन्हें आज किसानों के लिए मास्टर ट्रेनर के रूप में प्रयोग कर रही है.
बता दें कि साल 2017 तक हरिश्चंद्र उन्हीं सीमांत किसानों में थे, जो खेत कम होने की वजह से योजनाओं को साकार रूप नहीं दे पाते थे. साल 2018 में जब उनका पंचगावां गांव DST (डिपार्टमेंट आफ साइंस एंड टेक्नालाजी) कोर सपोर्ट योजना में आया तो हरिश्चंद्र माडल किसान के तौर पर चयनित हुए. योजना को संचालित करने वाली संस्था गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन ग्रुप की ओर से उन्हें सब्जी की खेती की सलाह मिली तो उन्होंने उसे तत्काल अपनाया.
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साथ ही खाद के लिए बाजार की जगह स्वयं पर भरोसे का हौसला भी संस्था से लिया. ऐसा करते ही उनकी आमदनी बढ़ने लगी. इससे उत्साहित होकर उन्होंने हर साल फसलों की संख्या बढ़ाई, जो आज बढ़कर 20 से ऊपर पहुंच गई हैं. अधिक फसल बोने की वजह से उन्हें अच्छी पैदावार मिल जाती है.
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