200 साल पुराना है 'रमचौरा केला' का इतिहास; नेपाल, बिहार और वाराणसी तक रहा मशहूर, अब ऐसे बदलेगी सूरत

200 साल पुराना है 'रमचौरा केला' का इतिहास; नेपाल, बिहार और वाराणसी तक रहा मशहूर, अब ऐसे बदलेगी सूरत

कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के अनुसार दरअसल एकल खेती से यहां की मिट्टी में बिल्ट नामक फंगस आ गया. चूंकि पूर्वांचल की आबादी और जोत छोटे हैं. लिहाजा दूसरे खेत में खेती का विकल्प नहीं था. इसलिए धीरे-धीरे इसका रकबा घटता गया.

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200 साल पुराना है 'रमचौरा केला' का इतिहास; नेपाल, बिहार और वाराणसी तक रहा मशहूर, अब ऐसे बदलेगी सूरतजीआई टैगिंग की रेस में शामिल हुआ रमचौरा का केले (फोटो-किसान तक)

Gorakhpur News: गोरखपुर से करीब 35 किलोमीटर उत्तर सोनौली रोड पर कैंपियरगंज से पहले एक जगह है,"रमचौरा". कभी यहां के कच्चे केले की दूर-दूर तक धूम थी. एक फंगस के कारण यहां की इस स्थानीय प्रजाति का रकबा सिमटता गया था. पर, अब योगी सरकार जीआई टैगिंग (GI Tag) के जरिए इसे पुनर्जीवन देने में लगी है. एक्सपर्ट्स भी इसे जीआई की रेस में बता रहे हैं.करीब तीन दशक पहले पीसी चौधरी गोरखपुर में नाबार्ड के प्रबंधक हुआ करते थे. वह कहते थे कि मेरी दिली इच्छा है कि कोई उद्योगपति इस क्षेत्र में बहुपयोगी केले के प्रसंस्करण का एक प्लांट लगाए. इस क्षेत्र में इसकी बहुत संभावना है. तब गोरखपुर और महराजगंज में केले का पर्याय कैंपियरगंज से लगे रमचौरा का केला ही हुआ करता था.

सब्जी के लिए इस कच्चे केले की खासी मांग थी. यह सटे हुए जिलों के अलावा नेपाल और बिहार तक जाता था. वाराणसी के आढ़ती यहां फसली सीजन के पहले ही डेरा डाल देते थे. फसल देखकर खेत का ही सौदा हो जाता था। खेत से ही माल उठ जाता था.

कभी केले के लिए मीनागंज में लगती थी लाइन...

रमचौरा से ही लगे एक जगह थी मीनागंज. वहां इसी केले की पकौड़ी मिलती थी. साथ में खास चटनी भी. इस चटनी की खासियत यह थी कि यह कुनरू (परवल जैसी दिखने वाली सब्जी), पंचफोरन, बिना छिले लहसुन, हरी मिर्च और सेंधा नमक को कूटकर बनाई जाती थी. इसे खाने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर चार और दो पहिया वाहनों की कतार लगी रहती थी.
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के सब्जी वैज्ञानिक डॉक्टर एसपी सिंह के अनुसार दरअसल एकल खेती से यहां की मिट्टी में बिल्ट नामक फंगस आ गया. चूंकि पूर्वांचल की आबादी और जोत छोटे हैं. लिहाजा दूसरे खेत में खेती का विकल्प नहीं था. इसलिए धीरे-धीरे इसका रकबा घटता गया.

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स्थानीय निवासी 62 वर्षीय अनिरुद्ध लाल बताते हैं कि यहां केले की खेती का रकबा सिमटकर 25 फीसद पर आ गया. अगल-बगल के  कुछ गावों में इसकी खेती होती है. अब जो करते हैं उनको मंडी तक माल खुद पहुंचना पड़ता है. वह बताते हैं को रमचौरा के केले का इतिहास 200 साल पुराना है. मगहर से 1840 में यहां आए कुछ परिवार अपने साथ केले की पुत्ती भी लाए थे. जमीन और जलवायु फसल के अनुकूल निकली. उत्पादन और गुणवत्ता के कारण माल की मांग भी थी. लिहाजा इसकी खेती का विस्तार होता गया पर, रोग इसके लिए ग्रहण बन कर आया और इसकी खेती सिमटती गई.

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जाने माने जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉक्टर रजनीकांत कहते हैं कि अगर किसी उत्पाद का इतिहास पुराना है, लोग उस उत्पाद को उस जगह के नाम से जानते हैं तो उसे जीआई टैगिंग मिलने की संभावना बढ़ जाती है. रमचौरा का केला इन मानकों पर फिट बैठता है. अन्य उत्पादों की तरह यह आने वाले समय का संभावित जीआई उत्पाद है. इस पर काम भी शुरू हो चुका है.

केला खाने के फायदें

हेल्दी और फिट रहने के लिए डॉक्टर हमेशा फलों का सेवन करने की सलाह देते हैं. कुछ फल सेहत को भरपूर लाभ प्रदान करते हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक, केले में फाइबर की मात्रा अधिक और कैलोरी की मात्रा कम होती है. यही वजह है कि वेट लॉस करने की कोशिश में जुटे लोग इसका सेवन बेझिझक कर सकते हैं. फाइबर की मौजूदगी के कारण केला आपका पेट लंबे समय तक भरा रख सकता है. केले में कई जरूरी पोषक तत्व पाए जाते हैं. इनमें कई बायोएक्टिव कंपाउंड्स होते हैं, जैसे- कैरोटीनॉयड, फेनोलिक्स, फाइटोस्टेरॉल और बायोजेनिक एमाइन. इसे खाने से पाचन संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है.

 

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