पोल्ट्री एक्सपो 2025 में एनआर हरीश का कार्टून बना चर्चा का विषय स्पेंसर जॉनसन ने करीब ढाई दशक पहले एक किताब लिखी थी जिसका नाम था 'हू मूव्ड माई चीज़'. इस किताब में जिंदगी के नजरिये को एक अलग ही अंदाज में दिखाया गया है. अब आप सोचेंगे कि भला हम इस मोटीवेशनल बुक की बात क्यों कर रहे हैं. दरअसल पिछले दिनों एक कार्टून सामने आया और अपने आप इस किताब का जिक्र छिड़ गया. हालांकि किताब की कहानी और इस कार्टून की कहानी थोड़ी सी जुदा-जुदा है लेकिन हां दोनों में ही कहीं न कहीं किसी का कुछ न कुछ तो जा ही रहा है. तो दरअसल किस्सा कुछ ऐसा है कि पिछले दिनों हैदराबाद में आयोजित पोल्ट्री इंडिया के पोल्ट्री एक्सपो 2025 में एनआर हरीश की तरफ से बनाया गया एक कार्टून सोशल मीडिया पर खासी चर्चा का विषय बना हुआ है. तो चलिए आपको इसकी कहानी बताते हैं.
कार्टून के बारे में कार्टून गैलरी में यह दिखाया गया है कि पोल्ट्री फीड में 50 फीसदी में मक्का का प्रयोग हो रहा है. अब मक्का से इथेनॉल बनाया जा रहा है और इसकी वजह से पोल्ट्री में मक्का महंगी हो गई है और उसकी कमी भी हो रही है. कार्टून के एक फ्रेम में छिपी हल्की-सी हंसी कभी-कभी बड़े-बड़े सच खोल देती है. कुछ यही कहानी इस फनी लेकिन इमोशनल कार्टून की है. सामने मासूम-सा चूजा मुंह फाड़कर पूछ रहा है, 'Mommy, where’s my feed?' और वहीं उसके सामने रखा एक बड़ा सा कटोरा गर्व से चमक रहा है. इस पर इथेनॉल मानों जैसे उस नन्हे से चूजे़ को बताया जा रहा हो कि 'बेटा, जो अब तक तेरा था, वो अब मेरा है.' यानी फीड गायब हो चुकी है और अब एथेनॉल हाजिर है.
इस कार्टून को देखकर पहला रिएक्शन यही आता है कि अब तो चूजे भी समझ रहे हैं कि उनका फीड यानी मक्का कहां गायब हो रहा है. ठीक उसी तरह से जिस तरह से स्पेंसर जॉनसन की किताब में चारों कैरेक्टर्स बस जीवन में वही खुशी तलाश रहे होते हैं जो होती तो उनके सामने है, लेकिन जद्दोजहद में उसे हासिल नहीं कर पाते हैं. मक्का और अनाज की कहानी किस दिशा में जा रही है, यह कार्टून इसकी एक तस्वीर बयां करता है. जब हर दूसरा बोरा एथेनॉल प्लांट की ओर चल पड़ेगा तो बेचारे पोल्ट्री वालों के कटोरे में क्या बचेगा? यही सवाल यह कार्टून बड़े प्यारे, लेकिन चुटीले अंदाज में पटखनी देता है.
भारत में एथेनॉल मिशन की रफ्तार ऐसी बढ़ी है कि मानों सरकार ने मक्का के हर दाने से कहा हो—'चल भाई, पेट्रोल में घुल जा!' लेकिन समस्या ये है कि पोल्ट्री का पेट भी तो इन्हीं दानों से भरता है! ऐसे में चूजा पूछेगा नहीं तो क्या गूगल मैप लगाकर फीड ढूंढेगा? कार्टून में जो बड़ा-सा एथेनॉल का ड्रम दिख रहा है, वह बिल्कुल वैसा ही है जैसे कोई पड़ोसी आपकी LPG लेकर जाता रहे और आप अंदाजा लगाते रहें कि रोटी बनेगी कैसे. चूज़े की मां कब तक खैर मनाएगी और वह भी इसी कन्फ्यूजन में है कि अनाज तो ईंधन में जा रहा है और अब वह अपने जमीन पर पैर पटकते हुए बच्चे को क्या खिलाए?
चूज़े का यह सवाल असल में पूरे सेक्टर की चिंता है. अगर अनाज की बड़ी खेप ईंधन के नाम पर खिंचती रही तो फीड की कीमतें ऐसे बढ़ेंगी जैसे परीक्षाओं में बच्चे का टेंशन. और चारा मिलेगा वही जो फिल्मी हीरो की तरह—कम, महंगा और कभी-कभार! आखिर में इस बात को जरूर समझिए कि यह कार्टून सिर्फ हंसाने के लिए नहीं है. बल्कि यह चेतावनी है कि अगर अनाज का रुख ज्यादा एथेनॉल की तरफ मुड़ गया तो आने वाले समय में चूजों की आवाज गूंजेगी,'Feed कहां है?' और जवाब में ड्रम टन-टन करेगा, 'यहां तो सिर्फ एथेनॉल है.'
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