देश में दिनोंदिन खाद्य तेलों का आयात बढ़ रहा है. इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने के साथ देश में तिलहन के उत्पादन पर असर देखा जा रहा है. इसे लेकर सॉलवेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन (SEA) ने चिंता जताई है और सरकार के समक्ष अपनी बात रखी है. एसईए ने कहा है कि खाद्य तेलों का बढ़ता आयात देश में खाद्य तेलों की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं है. इस पर तुरंत लगाम लगाए जाने की जरूरत है. सरकार देश में खाद्य तेलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है, उसके बावजूद तेलों के आयात में तेजी देखी जा रही है. सरकार ने देश में तिलहन की खेती बढ़ाने के लिए मिशन मोड में अभियान चलाया है. आने वाले समय में इससे तिलहन का उत्पादन बढ़ने की संभावना जताई जा रही है.
एसईए के अध्यक्ष अजय झुनझुनवाला ने एक पत्र लिखकर सरकार से खाद्य तेलों के आयात पर चिंता जाहिर की है. इस संगठन को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत के विजन पर देश में 'नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स' की लॉन्चिंग की घोषणा होगी. लेकिन केंद्रीय बजट में ऐसा नहीं हुआ. एसईए ने इस पर भी अपनी बात रखी है.
एसईए ने अपने पत्र में लिखा है, ऑयल ईयर (नवंबर-अक्टूबर) 2022-23 के पहले तीन महीनों में आरबीडी पामोलीन तेल के आयात में बड़ी तेजी देखी गई है. देश में कुल तेल आयात में आरबीडी पामोलीन की हिस्सेदारी 20 परसेंट तक चली गई. इस आयात के बढ़ने से देश में तिलहन उत्पादन की क्षमता पर असर देखा जा रहा है. देश में पाम रिफाइनिंग इंडस्ट्री की क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. 'बिजनेसलाइन' ने एक रिपोर्ट में इस बात की जानकारी दी है.
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एसईए ने इस बात पर भी चिंता जाहिर की है कि अगला मॉनसून भी अच्छा नहीं रहने का अनुमान है. कई अलग-अलग रिपोर्ट में मौसम विभाग ने कहा है कि भारत में अल-नीनो का असर देखा जाएगा. इससे आने वाले मॉनसून में बारिश प्रभावित होगी. अगर अल नीनो अधिक सक्रिय रहता है तो बारिश कम होगी या असामान्य रहेगी. पिछले साल भी यही स्थिति देखी गई. मौजूदा साल में यही स्थिति देखने को मिल सकती है.
भारत पूरी तरह से कृषि प्रधान देश है जहां मॉनसून की स्थिति अच्छी रहनी चाहिए. लेकिन उस पर अल नीनो का असर पड़ जाए तो बारिश कम हो जाती है या असामान्य रहती है. दक्षिण-पश्चिम मॉनसून पर अल नीनो का असर खतरनाक देखा जा सकता है, जिसके बारे में मौसम विज्ञानी चिंता जाहिर कर रहे हैं. हालांकि अभी मॉनसून को लेकर बहुत जल्दी इतनी बड़ी आशंका जाहिर करना ठीक नहीं है, लेकिन किसान और उत्पादक चिंता में पड़े हुए हैं. इनकी चिंता इस बात को लेकर है कि कहीं पिछले साल की तरह इस बार भी बारिश गड़बड़ हुई तो पूरी खेती चौपट हो जाएगी.
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