पंजाब सरकार द्वारा पूसा-44 की खेती पर प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद भी किसान इसकी रोपाई कर रहे हैं. कहा जा रहा है कि पंजाब में किसानों का एक वर्ग अभी भी चालू खरीफ बुवाई सीजन में पूसा-44 धान किस्म का धड़ल्ले से बुवाई कर रहा है. इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने दशकों पहले इस पूसा-44 का उत्पादन किया था. लेकिन अब उसने इसे बंद कर दिया है. यह किस्म 160 दिनों तैयार हो जाती है. इसकी खेती में पानी की अधिक खपत होती है. यही वजह है कि सरकार भूजल के दोहन को कम करने के लिए इसकी खेती पर रोक लगाई है. पर किसान अपनी आदत से बाज नहीं आ रहे हैं.
द हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अन्य किस्मों के मुकाबले पूसा-44 से लगभग 10-15 फीसदी अधिक उपज मिलती है. यह प्रति एकड़ 35-40 क्विंटल उपज देती है. कम अवधि वाली PR126 भी लगभग इतनी ही उपज देती है, लेकिन PR131 जैसी अन्य कम अवधि वाली किस्मों की उपज 5 क्विंटल कम है. खास बात यह है कि पूसा-44 20 फीसदी अधिक पराली भी पैदा करती है, जिसमें सिलिका की मात्रा अधिक होती है, जो जलाने पर घना धुआं पैदा करती है. चावल मिलर्स इस किस्म को पसंद करते हैं, क्योंकि छिलका उतारने पर चावल कम टूटता है.
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भारतीय किसान संघ (दकौंडा) के महासचिव जगमोहन सिंह उप्पल के अनुसार, दक्षिण-पश्चिम पंजाब के किसान अभी भी इस किस्म को पसंद करते हैं, क्योंकि वे साल में केवल दो फसलें बोते हैं और उनके पास इस किस्म की खेती के लिए पर्याप्त समय होता है. उन्होंने कहा कि दोआबा या ऐसे क्षेत्र जहां आलू की फसल बोई जाती है, वहां साल में तीन फसलें लेने वाले किसान देर से और कम अवधि वाली धान की किस्मों की रोपाई करते हैं. कृषि निदेशक जसवंत सिंह ने किसानों से इस किस्म का उपयोग बंद करने का आग्रह करते हुए कहा कि पिछले साल, किस्म (पूसा-44) को कुल धान क्षेत्र के 17 फीसदी से अधिक क्षेत्र में बोया गया था, जो दो साल पहले 40 फीसदी क्षेत्र से अधिक था. हम इसे और कम करेंगे, क्योंकि मुख्य कृषि अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे किसानों को इसे अपनाने से रोकें.
राज्य में चावल मिल मालिकों के एक समूह का नेतृत्व करने वाले रविंदर सिंह चीमा ने कहा कि मिल मालिक पूसा-44 को पसंद करते हैं, क्योंकि यह एक क्विंटल धान से 67.5 किलोग्राम उपज देता है जबकि कम अवधि वाली किस्में केवल 64 किलोग्राम देती हैं. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति एसएस गोसल ने कहा कि मेरी राय में, किसान पूसा-44 से परहेज कर रहे हैं. इसके विकल्प हैं, जैसे कि पीआर 116, 124 और 132, जिनकी अवधि 130 दिन है. पीएयू ने किसानों को 22,000 क्विंटल कम अवधि वाली किस्म के बीज दिए हैं, जो 27.5 लाख एकड़ में बोए जाएंगे.
पंजाब में खरीफ सीजन में 80 लाख एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में धान बोया जाता है. गोसल ने कहा कि कम अवधि वाली किस्मों को जुलाई के पहले हफ्ते (मानसून की शुरुआत के साथ) में भी अच्छे नतीजों के लिए रोपा जा सकता है. उनके मुताबिक, मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसानों से इस किस्म की खेती बंद करने को कहा है, क्योंकि यह पर्यावरण के लिए खतरनाक है. इसमें पानी की बहुत ज्यादा खपत होती है और इससे ज्यादा बायोमास पैदा होता है.
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राज्य सरकार ने 15 मई से सीधी बुवाई विधि (डीएसआर) से धान की बुवाई की सिफारिश की थी. कृषि निदेशक जसवंत सिंह के मुताबिक, किसान इस पद्धति को अपना रहे हैं, क्योंकि इसमें मजदूरों की कमी है और यह लागत प्रभावी भी है. राज्य सरकार के आदेशानुसार छह जिलों में 11 जून से धान की रोपाई शुरू हो गई थी. ये जिले मुक्तसर, फरीदकोट, बठिंडा, मानसा, फाजिल्का और फिरोजपुर थे, जबकि बाकी 17 जिलों में 15 जून से रोपाई शुरू हुई थी.
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