जीनोम एडिटेड धान की दो नई किस्में तैयार, कम पानी...कम समय और ज्यादा उत्पादन है खासियत

जीनोम एडिटेड धान की दो नई किस्में तैयार, कम पानी...कम समय और ज्यादा उत्पादन है खासियत

दशकों के लंबे विवाद के बाद, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) आज आनुवंशिक रूप से संशोधित यानि जीनोम एडिटेड धान की दो नई किस्में जारी करने जा रहा है. ICAR का दावा है कि इन नई किस्मों से धान की उपज में 20 से 30 फीसदी तक की वृद्धि हो जाएगी. यह विकास कृषि क्षेत्र के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकता है. इन नई किस्मों की सफलता और किसानों द्वारा इनकी मंजूरी पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी.

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जीनोम एडिटेड धान की दो नई किस्में तैयार, कम पानी...कम समय और ज्यादा उत्पादन है खासियतआज जारी होंगी GM धान की दो नई किस्में

आनुवंशिक रूप से संशोधित Genome-Edited धान की दो नई किस्में - 'डीआरआर धान 100 (कमला)' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' अब खेतों में उतरने के लिए तैयार हैं. भारत सरकार के सरल नियमों के तहत जैव सुरक्षा की हरी झंडी मिलने के बाद, ये जीनोम-एडिटेड किस्में आज कृषि मंत्री शिवराज सिह चौहान जारी करेगे. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) इन किस्मों से अधिक उपज का दावा कर रहा है. हालांकि जीएम फसलों को लेकर देश में लंबे समय से बहस जारी है. आईसीएआर इन नई किस्मों को कृषि उत्पादन बढ़ाने और किसानों को लाभ पहुंचाने वाला बता रहा है. वहीं माना जा रहा है कि इन किस्मों के जारी होने से देश में जीएम फसलों को लेकर एक नया अध्याय शुरू हो सकता है. यह देखना अहम होगा कि इन किस्मों को किसानों और उपभोक्ताओं की तरफ से किस तरह से स्वीकार किया जाता है.

प्रति एकड़ 36 क्विंटल पैदावार   

हैदराबाद स्थित आईसीएआर का -भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान  आईआईपीआप के वैज्ञानिकों ने 'सांबा मसूरी' की लोकप्रिय किस्म में जीनोम एडिटेड तकनीक का उपयोग करके एक नई किस्म विकसित की है जिसे 'डीआरआर धान 100 को कमला नाम दिया गया है. वैज्ञानिकों ने साइटोकिनिन ऑक्सीडेज 2 (CKX2) जीन में बदलाव करके हर बाली में दानों की संख्या में खासी वृद्धि की है. साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) तकनीक का उपयोग करते हुए, इस प्रक्रिया में किसी भी बाहरी डीएनए का इस्तेमाल नहीं किया गया है, जिससे यह किस्म पारंपरिक तौर पर विकसित किस्मों के समान ही सुरक्षित है.

परीक्षणों में 'कमला' ने अपनी जनक किस्म 'सांबा मसूरी' की तुलना में 19 फीसदी अधिक उपज दी है, जिसकी औसत उपज 21.48 किवंटल प्रति एकड दर्ज की गई है, जबकि अनुकूल परिस्थितियों में यह 36  कुंतल प्रति एकड़ तक उपज दे सकती है. सबसे खास बात यह है कि यह किस्म लगभग 130 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो 'सांबा मसूरी' से लगभग 20 दिन कम है. इसके अलावा, 'कमला' सूखा के प्रति सहनशील अधिक नाइट्रोजन उपयोग दक्षता और मजबूत तने जैसी विशेषताओं से भी लैस है, जबकि इसने 'सांबा मसूरी' जैसी बेहतर चावल अनाज और खाना पकाने की गुणवत्ता को भी बरकरार रखा है.

पूसा डीएसटी राइस-1 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा( IARI) के वैज्ञानिकों ने 'एमटीयू1010' नामक एक और लोकप्रिय और महीन अनाज वाली किस्म में जीनोम एडिटेड के माध्यम से सुधार कर 'पूसा डीएसटी राइस 1' नामक एक नई किस्म विकसित की है. यह सूखा और मिट्टी की लवणता के प्रति ज्‍यादा सहनशील है. साइट डायरेक्टेड न्यूक्लीज 1 (SDN1) तकनीक का उपयोग करके विकसित की गई इस किस्म में सूखा और नमक सहिष्णुता (DST) जीन को डाला गया है.

इस प्रक्रिया में भी किसी बाहरी डीएनए का उपयोग नहीं किया गया है.फील्ड ट्रायल्‍स में 'पूसा डीएसटी राइस 1' ने अलग-अलग तनावपूर्ण परिस्थितियों में भी बेहतर उपज दी है. इसने न केवल 'एमटीयू1010' की खास अनाज गुणवत्ता को बनाए रखा, बल्कि सूखा और लवणता के प्रति इसकी प्रतिरोधक क्षमता में भी काफी वृद्धि हुई है. यह विकास उन क्षेत्रों के किसानों के लिए विशेष रूप से अहम है जहां मिट्टी खारी और क्षारीय मिट्टी के कारण पारंपरिक किस्में बैहतर उपज नहीं कर पाती हैं

ICAR ने कहा सरकार का मजबूत कदम 

इन दोनों किस्मों का विकास जीनोमएडिटेडजैसी आधुनिक तकनीक इसे प्रमाण है. CRISPR-Cas जैसी तकनीकों ने वैज्ञानिकों को बिना किसी बाहरी डीएनए को डाले, पौधों के मूल जीनों में सटीक बदलाव करने की क्षमता प्रदान की है, जिससे नई और वांछनीय विशेषताओं वाली किस्में विकसित करना संभव हो गया है. ICAR ने इस दिशा में 2018 में ही 'राष्ट्रीय कृषि विज्ञान कोष' के तहत अनुसंधान शुरू कर दिया था, और केंद्र सरकार ने भी बजट 2023-24 में कृषि फसलों में जीनोमएडिटेडके लिए 500 करोड़ रुपये आवंटित करके इस तकनीक के महत्व को स्वीकार किया है. वर्तमान में ICAR में तिलहन और दालों जैसी अन्य महत्वपूर्ण फसलों में भी जीनोम एडिटेड पर रिसर्च जारी है.  

कम पानी और कम समय 

जैसे-जैसे दुनिया बढ़ती आबादी, क्‍लाइमेट चेंज और कई जैविक और अजैविक तनावों से जूझ रही है, कृषि में तेजी से और ज्‍यादा नए विचारों की जरूरत बढ़ती जा रही है. 'कमला' और 'पूसा डीएसटी राइस 1' जैसी जीनोम-एडिटेड किस्में इस दिशा में एक अहम कदम हैं, जो न केवल भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करेंगी बल्कि टिकाऊ कृषि के एक नए युग की शुरुआत भी करेंगी. माना जा रहा है कि करीब 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इन नई किस्मों की खेती से देश को 45 लाख टन ज्‍यादा धान की उपज मिलेगी. यह न सिर्फ देश की बढ़ती आबादी की खाद्य जरूरतों को पूरा करने में मददगार होगी बल्कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी इससे करीब 20 फीसदी तक कम किया जा सकेगा. 'कमला' वह किस्‍म है जो जल्‍दी पक जाएगी और इससे तीन सिंचाई की जरूरत कम होगी और करीब 7,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बचाया जा सकेगा. आईसीएआऱ की मानें तो इन दो किस्मों को बहुत परिश्रम के बाद इन दो चावल की किस्मों को विकसित किया है. ये किस्‍में न सिर्फ ज्‍यादा  उपज देंगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी झेल सकेंगी.  

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