Cowpea varieties: ये हैं लोब‍िया की पांच उन्नत किस्में, पैदावार के साथ देती हैं बंपर कमाई

Cowpea varieties: ये हैं लोब‍िया की पांच उन्नत किस्में, पैदावार के साथ देती हैं बंपर कमाई

खरीफ सीजन चालू है ऐसे में किसान लोब‍िया की सही किस्मों का चयन कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं. जानिए लोब‍िया की ऐसी ही 5 किस्मों के बारे में, जिनकी खेती से किसानों को अच्छा लाभ मिल सकता है.

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Cowpea varieties: ये हैं लोब‍िया की पांच उन्नत किस्में, पैदावार के साथ देती हैं बंपर कमाईजानिए लोब‍िया की kismo के बारे में

लोब‍िया की खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.लोब‍िया एक दलहनी चारा फसल है. इसका इस्तेमाल चारा, सब्जी और हरी खाद के रूप में इस्तेमाल होता है.इसके अलावा इसका उपयोग चारे की कमी पूरा करने में किया जाता हैं. इसके चलते बाजार में इसकी डिमांड हमेशा बनी रहती है.ऐसे में किसानों के लिए इसकी फ़ायदे मंद साबित हो सकती हैं. लोब‍िया की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं.

इसकी खेती गर्म और आर्द्र जलवायु में की जाती है. लोबिया की खेती लगभग सभी तरह की मिट्टी में आसानी से हो सकती है, लेकिन क्षारीय भूमि ज्यादा उपयुक्त मानी जाती है, बस भूमि में पानी निकास का सही प्रबंध होना चाहिए.  किसानों को फायदा हो इसलिए लोब‍िया की कई किस्में विकसित की गई हैं. खरीफ सीजन चालू है. ऐसे में किसान लोब‍िया के सही किस्म का चुनाव कर अच्छा उत्पादन और गुणवत्ता दोनों पा सकते हैं. 

पूसा कोमल

लोबिया की यह किस्म बैक्टीरियल ब्लाईट प्रतिरोधी है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. अगर किसान इस किस्म की बुवाई करता है, तो इससे प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.  

पूसा फाल्गुनी 

 इसके पौधे झाड़ी की तरह होती है और फली गहरे हरे रंग की होती है. फसल लगभग 60 दिन में तैयार हो जाती है. प्रति एकड़ जमीन से 28 से 30 क्विंटल फसल प्राप्त होती है.

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अर्का गरिमा 

यह किस्म खम्भा प्रकार की किस्म कहलाती है, जिसकी ऊंचाई  2 से 3 मी की होती है. इस किस्म को बारिश और बसंत ऋतु में आसानी से बो सकते हैं.  

पूसा दोफसली

इस किस्म को बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.  

सी -152 

इस किस्म की फसलों को तैयार होने में करीब 105 से 110 दिन लगते हैं. इसकी खेती के लिए खरीफ मौसम सर्वोत्तम है. इसकी खेती बिहार , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली के साथ जम्मू कश्मीर में भी की जाती है.

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