महाराष्ट्र के कपास उत्पादक किसानों की उम्मीदों पर इस साल बाजार ने पानी फेर दिया है. इससे वो निराश हैं. उन्हें इस साल पिछले वर्ष जैसा दाम नहीं मिल रहा था इसलिए और अच्छे भाव की उम्मीद में उन्होंने कॉटन को अपने घरों और छतों पर स्टोर करके रखा था. लंबे इंतजार के बाद भी जब किसानों को अच्छा दाम नहीं मिला तो उन्होंने फसल को बेचना शुरू कर दिया. पिछले साल कॉटन का भाव 12000 से 14000 रुपये प्रति क्विंटल था जो अब घटकर सिर्फ 7000 रुपये रह गया है. कई मंडियों में दाम उससे भी कम रह गया है. गिरती कीमतों से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. वो पिछले साल के मुकाबले आधे दाम पर फसल बेच रहे हैं. अगर सरकार टेक्सटाइल इंडस्ट्री की बात मान लेती तो किसानों की स्थिति आज और खराब हो चुकी होती.
जलगांव जिले के चोपड़ा तालुका स्थित मचला गांव के रहने वाले किसान भानुदास अप्पा कपास की खेती करते हैं. 'किसान तक'
से बातचीत में उन्होंने कहा कि पिछले साल उन्होंने कपास 13 हज़ार रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बेचा था. इसी उम्मीद पर इस साल कपास की खेती बढ़ा दी. लेकिन इस साल किसानों को सिर्फ 6 से 8 हज़ार रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा था. इसके चलते किसानों ने कपास का स्टॉक किया था. लेकिन अब किसान घरों में रखे कपास को धीरे-धीरे कम भाव में ही बेचने के लिए मजबूर हैं. क्योंकि दाम नहीं बढ़ा. जिले में किसान बड़े पैमाने पर कपास की खेती करते हैं और सभी कम दाम से निराश हैं.
भानुदास बताते हैं कि इस साल उन्होंने अपने 5 एकड़ में कपास की खेती थी. जिसमें से 40 क्विंटल कपास का उत्पादन मिला था. जब मंडी में बेचने गए तो दाम पिछले साल के मुकाबले कम था. इसलिए अच्छे भाव की उम्मीद में पिछले छह महीने से कपास को घर में स्टोर करके रखा था, लेकिन लंबा इंतज़ार करने के बाद भी दाम में बढ़ोतरी नहीं हुई. इसलिए मजबूरन 7000 रुपये प्रति क्विंटल दाम पर बेचना पड़ा. ज्यादातर किसान अब नुकसान झेलकर कपास बेच रहे हैं क्योंकि अब उसे खराब होने का खतरा है.
किसान भानुदास अप्पा का कहना है कि पिछले साल से मौसम में बदलाव के कारण किसानों को फसल का उत्पादन भी कम
मिल रहा है. जहां पहले एक एकड़ कपास की खेती में 10 क्विंटल तक उत्पादन मिलता था, वहीं अब सिर्फ 7 क्विंटल तक का
उत्पादन मिल रहा है. ऐसे में किसान डबल नुकसान झेल रहे हैं. पिछले साल से उत्पादन भी कम हो गया है और दाम भी. जबकि कपास की खेती में प्रति एकड़ 30 हज़ार रुपये से ज्यादा का खर्च आता है. मजदूरी और कीटनाशकों पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. बाजार में जो भाव मिल रहा है उससे किसानों को सिर्फ और सिर्फ घाटा ही हो रहा है.
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चोपड़ा तालुका में अधिकांश किसानों ने अच्छे भाव की उम्मीद में कपास को घर में स्टॉक करके रखा था. लेकिन किसान लंबे समय तक कपास को स्टॉक करके नहीं रख सकते. क्योंकि कपास की क्वालिटी खराब हो जाती है. यही नहीं किसानों को दूसरी फसल की खेती के लिए पैसों की जरूरत भी होती है. इसलिए भी अब मजबूरी में कम दाम में लोग कपास मंडी में बेच रहे हैं. इससे एक और नुकसान हो रहा है. आवक अचानक बढ़ गई है. जिससे दाम और कम होने का खतरा उत्पन्न हो गया है. अप्पा का कहना है कि सरकार को कपास के आयात और निर्यात की पॉलिसी ऐसी बनानी चाहिए ताकि उससे किसानों को नुकसान न हो. अगर ऐसे ही किसान घाटा झेलते रहेंगे तो कपास की खेती बंद कर देंगे.
कॉटन की खेती करने वाले किसान परेशानी से जूझ रहे हैं. लेकिन, टेक्सटाइल इंडस्ट्री को सिर्फ अपने हितों से मतलब है. उन्हें बस सस्ता कॉटन चाहिए. भले ही किसान इससे बर्बाद हो जाएं. वो लगातार केंद्र सरकार पर कॉटन पर लगी इंपोर्ट ड्यूटी कम करने की मांग कर रहे हैं. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) वाणिज्य और कपड़ा मंत्री से कॉटन पर लगी हुई 11 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी खत्म करने की मांग कर चुका है. इंडस्ट्री का तर्क है कि वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में भारत में कॉटन का भाव काफी ज्यादा है. हालांकि, सरकार ने किसानों के हितों को देखते हुए इंपोर्ट ड्यूटी नहीं हटाई है. वरना दाम और कम हो जाता. बता दें कि सरकार ने 2 फरवरी 2021 से कपास पर 11 फीसदी इंपोर्ट ड्यूटी लगाई हुई है.
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