यवतमाल में गिरी कपास की कीमत, 7000 रुपये प्रति एकड़ के घाटे पर फसल बेचने को मजबूर हैं किसान

यवतमाल में गिरी कपास की कीमत, 7000 रुपये प्रति एकड़ के घाटे पर फसल बेचने को मजबूर हैं किसान

गावंडे का कहना है कि वो पिछले एक साल से कपास की उपज का भंडारण कर रहे हैं. लंबे सूत के कपास की कीमत 7,000 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि छोटे सूत के लिए यह 6000 रुपये है. मेरी उपज दोनों का मिश्रण है. कीमत कम से कम 10,000 होनी चाहिए. पूरे खेत के लिए  2.5 लाख रुपये मूल्य के बीज और उर्वरक और उस पर 18% जीएसटी का भुगतान किया. 

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यवतमाल में गिरी कपास की कीमत, 7000 रुपये प्रति एकड़ के घाटे पर फसल बेचने को मजबूर हैं किसानकपास की कीमतों में आई गिरावट

महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में कपास की कीमतों में भारी गिरावट हुई है. बाभुलगांव तालुका के किसानों ने गिरती दरों के कारण पिछले साल से अपना कपास नहीं बेचा है. अब इस साल भी दाम गिर गया है. जिसकी वजह से उनके ऊपर कर्ज बढ़ रहा है. वे चिंतित हैं कि क्या आगे भी कपास को स्टोर करके रखा जाए या घाटे में ही बेचा जाए. इसे लेकर वो असमंजस में हैं. एक तरफ दाम प्रभावित हुआ है तो दूसरी ओर इस साल असंतुलित बारिश के कारण कपास का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है. इस तरह कपास की खेती करने वाले किसानों को दोहरा नुकसान हो रहा है.

किसान प्रकाश मधुकर गावंडे बाभुलगांव तालुका के नयागांव गांव में 15 एकड़ जमीन पर कपास की खेती करते हैं. उनका कहना है कि प्रति एकड़ कपास की खेती के पीछे उन्होंने 30-35 हजार रुपये खर्च किए. इस पर लगभग 70 क्विंटल कपास का उत्पादन हुआ.  यदि वह इस उपज को 6000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचेंगे तो 7000 रुपये एकड़ का घाटा होगा. बाजार में 6000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से ही कपास बिक रहा है. 

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किसान ने बताया नुकसान का गणित

गावंडे का कहना है कि वो पिछले एक साल से कपास की उपज का भंडारण कर रहे हैं. लंबे सूत के कपास की कीमत 7,000 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि छोटे सूत के लिए यह 6000 रुपये है. मेरी उपज दोनों का मिश्रण है. कीमत कम से कम 10,000 होनी चाहिए. पूरे खेत के लिए  2.5 लाख रुपये मूल्य के बीज और उर्वरक और उस पर 18% जीएसटी का भुगतान किया. हमें बेमौसम बारिश से पीड़ित होना पड़ा. सरकारी योजनाएं हमारे नुकसान को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. हम एलर्जी का जोखिम उठा रहे हैं और इस उपज को बारिश और हवाओं से बचा रहे हैं. क्योंकि हमें बेहतर कीमत की उम्मीद थी.  लेकिन हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया.

सीसीआई का खरीद केंद्र न होने से दिक्कत

यवतमाल को कपास जिले के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह राज्य में सबसे अधिक कपास की पैदावार में योगदान देता है. पिछले साल जिले में लगभग 4.71 लाख एकड़ में कपास लगाया गया था. यह एक ऐसा जिला भी है जो सबसे ज्यादा किसान आत्महत्याओं के लिए जाना जाता है. यहां के बाभुलगांव में एपीएमसी के निदेशक अमोल कापसे ने कहा, भारतीय कपास निगम (सीसीआई) का हमारे तालुका में कोई केंद्र नहीं है. जबकि यही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत कपास खरीद कार्य करने के लिए भारत सरकार की केंद्रीय नोडल एजेंसी हैं. ऐसा न होने की वजह से किसान सस्ते दर पर निजी खिलाड़ियों को कपास बेच रहे हैं. इस बीच कर्जदार किसानों से बैंकों ने वसूली शुरू कर दी है. अगर किसान घाटे में बेचेंगे तो वे कैसे जीवित रहेंगे? 

 कपास का दिसंबर-जनवरी रेट

 वर्ष---औसत कीमतें
 2022---10 हजार तक
 2023---8200 से 8300 रुपये
 2024---6500 से 7500

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