महाराष्ट्र में इस साल कम बरसात,बेमौसम बारिश,कीमतों में उतार-चढ़ाव,मजदूरों की कमी और अन्य संकटों के बावजूद इस साल साढ़े पांच लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की बुवाई की गई है. हालांकि पिछले सीजन की तुलना में करीब 17 हजार हेक्टेयर में कम बुवाई हुई है.लेकिन अभी तक फसल की खेती की अंतिम रिपोर्ट नहीं आई है. अनुमान जताया जा रहा हैं कि कपास की खेती में और बढ़ोतरी हो सकती है.
पिछले साल खरीफ सीजन में बेमौसम बारिश की मार कपास किसानों पर पड़ी थी. वहीं मौसम विभाग का इस साल अनुमान है कि बारिश औसत से थोड़ी कम होगी. इसकी वजह से किसानों का मानना है कि वैकल्पिक फसलों पर विचार किया जाना चाहिए. लेकिन जिले में कई किसानों ने नकदी फसल के रूप में कपास को प्राथमिकता दी गई है.जिले में खरीप की कुल बुवाई सात लाख 67 हजार हेक्टेयर में हुई है. इसमें अकेले कपास की खेती साढ़े पांच लाख हेक्टेयर है. बारिश में हुई देरी और कीमतों में गिरावट के कारण जिले किसान ने थोड़ा कम खेती की है.
इस साल कई लोगों ने पिछले साल के मुकाबले कपास की खेती कम कर दी है और सोयाबीन को प्राथमिकता दी है. क्योंकि कपास का दाम ठीक नहीं मिला. जलगांव जिले में सोयाबीन का संभावित क्षेत्रफल लगभग 28 हजार हेक्टेयर है. जिले में इतनी बुवाई हो चुकी है. क्योंकि 6 जुलाई के बाद कई इलाकों में संतोषजनक बारिश होने से बुवाई में तेजी आई है. बुवाई के बाद भी बारिश अच्छी हुई. इससे अंकुरण भी बेहतर हुआ है.
जलगांव जिला कपास की खेती में अग्रणी है. जिले में सबसे ज्यादा खेती किसान करते हैं जिले के कुछ किसानों को 2021-22 में कपास का 11,000 से 12,000 रुपये प्रति क्विंटल मिले थे.वहीं 2022-23 में किसानों को 6000 से लेकर 8000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिले हैं.इसके चलते कई किसानों ने कपास की खेती कम की है. किसानों का कहना हैं कि इतना कम भाव मिलने के कारण हम अपनी लागत भी नहीं निकाल पाये. ऐसे में कपास की खेती नुकसान का सौदा है.
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राज्य के किसानों का कहना हैं कि जिले में कपास के अलावा अन्य नकदी फसलों में सूरजमुखी, ज्वार, बाजरी, अरहर, अरंडी शामिल हैं.लेकिन किसान इन फसलों को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं दिख रहे हैं. कुछ किसानों का कहना हैं कि इन फसलों की तुलना में कपास की खेती सस्ती है. तो वहीं किसान सोयाबीन और मकाई की अधिक खेती कर रहे हैं.
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