Himachal: सेब उत्पादन पर मंडराए संकट के बादल, बागवानों की बढ़ी चिंता, जानें कारण

Himachal: सेब उत्पादन पर मंडराए संकट के बादल, बागवानों की बढ़ी चिंता, जानें कारण

हिमाचल प्रदेश में सेब की खेती के तहत क्षेत्र में हुई बढ़ोतरी के वावजूद सेब उत्पादन में भारी कमी हुई है. बीते 10 वर्षों से प्रदेश में सेब का उत्पादन काफी प्रभावित हुआ है. सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों के अनुसार सेब का उत्पादन घटने के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है.

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Himachal: सेब उत्पादन पर मंडराए संकट के बादल, बागवानों की बढ़ी चिंता, जानें कारण सेब उत्पादन पर मंडराए संकट के बादल

बीते कुछ वर्षों से हिमाचल प्रदेश की प्रमुख नकदी फसल सेब का कुल उत्पादन राज्य में गिर रहा है. साल 2022-23 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, जहां हिमाचल में सेब की खेती के तहत क्षेत्र में वृद्धि हुई है, तो वहीं पिछले एक दशक में वार्षिक उपज में गिरावट आई है. 2010-11 में 8.92 लाख मीट्रिक टन से अधिक की उच्चतम वार्षिक उपज दर्ज की गई थी, लेकिन तब से हिमाचल इस आंकड़े को पार नहीं कर पाया है. जबकि कुल उपज 2011-12 में घटकर 2.75 लाख मीट्रिक टन और 2018-19 में 3.68 लाख मीट्रिक टन रह गई, जबकि पिछले साल सेब का उत्पादन 6.11 लाख मीट्रिक टन था.

सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, पहाड़ी राज्य हिमाचल में इस साल 6.74 लाख मीट्रिक टन से अधिक सेब की कुल उपज दर्ज करने की उम्मीद है, जो पिछले साल की तुलना में अधिक है. राज्य के कुल फल उत्पादन में सेब का हिस्सा लगभग 85% है. सेब की फसल भी राज्य में फलों की खेती के तहत कुल भूमि क्षेत्र का लगभग आधा हिस्सा है. 

हिमाचल में सेब की खेती का रकबा 

राज्य में सेब की खेती का रकबा 1950-51 में 400 हेक्टेयर से बढ़कर 2021-22 में 1,15,016 हेक्टेयर हो गया है. 2007-08 से सेब की खेती के तहत क्षेत्र में 21.4% की वृद्धि दर्ज की गई. बावजूद इसके प्रदेश में सेब के उत्पादन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हुई.

जलवायु परिवर्तन की वजह से घटा सेब का उत्पादन 

सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों के अनुसार सेब का उत्पादन घटने के पीछे मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. मौसम में आये बदलाव के कारण हिमाचल प्रदेश में सेब बेल्ट लगभग 1,000 फीट तक ट्रांसफर हो गयी है. पहले समुद्र तल से 4000 से 5000 फीट की ऊंचाई पर अच्छी गुणवत्ता वाले सेब मिलते थे, लेकिन इतनी ऊंचाई पर गुणवत्ता के साथ-साथ मात्रा भी प्रभावित हुई है. अब, अच्छी गुणवत्ता वाला सेब केवल 6,000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित पेड़ों पर ही उगता है. तापमान में हो रही बढ़ोतरी के कारण यह सेब पट्टी हिमालय के अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों तक सिमट रही है. 

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बरसात के चक्र और इसके स्वरूप में बदलाव के साथ तापमान में बढ़ोतरी से फल उत्पादन पट्टी ऊपर की ओर खिसक रही है. इससे सेब के उत्पादन में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है. सर्दियों में भी गर्म तापमान जैसे प्रतिकूल जलवायु परिवर्तनों के कारण हिमाचल प्रदेश में सेब की उत्पादकता में काफी गिरावट हुई है.

बर्फबारी की कमी से सेब की गुणवत्ता पर भी पड़ा असर

गौरतलब है कि सर्दियों के दौरान ठंड कम होने से कुल उत्पादन के साथ-साथ सेब की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है. सर्दियों के दौरान असामान्य रूप से गर्म मौसम, बेमौसम बारिश या बिल्कुल भी बारिश नहीं देख रहे हैं. सेब के घटते उत्पादन में ये सभी जलवायु गड़बड़ी एक प्रमुख कारक रहे हैं. रॉयल डिलीशियस जैसी पुरानी सेब किस्मों को 7 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान के 1200-1400 चिलिंग घंटों की आवश्यकता होती है, वहीं नई किस्मों को ठीक से फूलने और फल देने के लिए 300-500 चिलिंग ऑवर्स की आवश्यकता होती है.

सेब उत्पादकों के अनुसार, एक अन्य प्रमुख कारण सेब की पुरानी किस्मों का उखड़ना था. जाहिर है हिमाचल प्रदेश में अभी भी सेब की पुरानी किस्में लगी हुई हैं. जिन पर सेब का उत्पादन पूरी तरह से मौसम पर निर्भर करता है. सेब के उत्पादन का कम होने का एक और कारण पुराने पेड़ों की जगह नई किस्मों के सेब के पेड़ लगाना भी है.

‘वैज्ञानिक तरीके से सेब की खेती करने की जरूरत’

बागवान टीकम ठाकुर का कहना है कि सेब का घटता उत्पादन परेशानी का विषय है. प्रदेश में सेब की खेती रकबा  तो बढ़ा है, लेकिन उत्पादन में भारी कमी आई है.  उत्पादन कम होने का कारण प्रदेश में अभी भी रेड डिलीशियस वैरायटी के पेड़ लगाए गए हैं. जो पूरी तरह मौसम पर निर्भर है. मौसम जब खराब होता है तो पोलिनेशन सही न होने से सेब के उत्पादन में कमी आ रही है. दूसरा मुख्या कारण न्यूट्रिशन मैनेजमेंट भी अच्छा नही है. बागवानों को अब वैज्ञानिक तरीके से सेब की खेती करने की जरूरत है. वहीं दूसरी तरफ सेब को सही मौसम की ज़रूरत है. 

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इस साल प्रदेश में मौसम के बिगड़े मिजाज़ के चलते सेब का उत्पादन प्रभावित होगा. मई के महीने में उपरी इलाकों में बर्फ़बारी हो रही है जो सेब की फसल के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं. अब सेब में नई किस्में आ चुकी हैं जिनसे 3 से 4 हजार फीट पर अच्छा सेब उत्पादन हो रहा है.

कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से सेब का उत्पादन हो रहा है कम

वही फ्रूट ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष महेंद्र का कहना है कि प्रदेश में सेब के उत्पादन में कमी होने का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है. वही दूसरा कारण कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग भी है. जिसकी वजह से पोलिनेटर और पोलिनेशन में कमी आई है. बागवानों द्वारा जंगलों में आग लगाना भी एक प्रमुख कारण है जिसके चलते जंगली मक्खियां व जंगली तितिलियां अब बागों में नहीं आती हैं, जिससे सेब का उत्पादन प्रभावित हुआ है. सेब के ट्रेडिशनल पेड़ के लिए 1200 से 140 घंटे चिलिंग हावर्स चाहिए होते हैं जिसमें 60 डिग्री से कम तापमान होना चाहिए, लेकिन अब चिलिंग हावर्स उतने नही मिल पा रहे हैं जिनके चलते सेब का उत्पादन कम हो रहा है. अब सेब 6000 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर ही हो रहा है जोकि पहले निचले इलाकों में भी हुआ करता था.

‘जलवायु परिवर्तन बागवानी के लिए अच्छा संकेत नहीं’ 

उपनिदेश उद्यान विभाग कुल्लू बीएम् चौहान के अनुसार उत्पादन कम होने का कारण मौसम में आया बदलाव और प्रदेश के बगीचों के सेब की पुरानी किस्म है. रॉयल सेब की वैरायटी उपरी इलाकों की तरफ जा रही है. सर्दियों में बर्फ पर्याप्त मात्रा में नहीं पड़ रही है. मौसम में बदलाव के चलते सेब के पौधों को चिलिंग हावर्स नहीं मिल पाए हैं. सेब के पेड़ अब काफी पुराने हो चुके हैं. अब बागवान इन्हें उखाड़ कर नए पेड़ भी लगा रहे हैं. अब निचले इलाकों में सेब के पेड़ की जगह अन्य फलों के पेड़ लगा रहे हैं. अगर भविष्य में जलवायु में इस तरह के परिवर्तन होते रहे तो यह खासकर बागवानी के लिए अच्छे संकेत नहीं होंगे.

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सेब की पैदावार बढ़ाने का ये है उपाय

हिमाचल में करीब 10 लाख परिवार खेती से जुड़े हुए हैं.  इनमें से 2 लाख परिवार ऐसे हैं जो सेब की खेती करते हैं. राज्य की जीडीपी में भी इसका 13 फीसदी से ज्यादा का योगदान रहता है. ऐसे में सेब का घटता उत्पादन बागवानों और राज्य सरकार दोनों के लिए अच्छे संकेत नहीं दे रहा है. बहरहाल सेब उत्पादकों और विशेषज्ञों का मानना है कि अब प्रदेश के बागवानों को सेब की पुरानी किस्मों के पेड़ों के स्थान पर नई किस्म के पेड़ लगाने शुरू करने चाहिए जिन पर मौसम का खासा प्रभाव नहीं पड़ता है. ऐसे में प्रदेश में सेब के उत्पादन को बल मिलेगा.
 

 

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