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Mustard Procurement: हर‍ियाणा को छोड़ सरसों की सरकारी खरीद में बाकी सब फ‍िसड्डी

Mustard Procurement: हर‍ियाणा को छोड़ सरसों की सरकारी खरीद में बाकी सब फ‍िसड्डी

सरसों की सरकारी खरीद में हर‍ियाणा को छोड़ क‍िसी भी राज्य ने पूरा नहीं क‍िया एक लाख मीट्र‍िक टन की खरीद का आंकड़ा. गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में एमएसपी खरीदा जा रहा है सरसों. सबसे बड़े उत्पादक राजस्थान में 15 लाख मीट्र‍िक टन की जगह अब तक स‍िर्फ 55 हजार मीट्र‍िक टन की खरीद.  

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क‍िस राज्य में क‍ितनी हुई सरसों की खरीद (Photo-Nafed).   क‍िस राज्य में क‍ितनी हुई सरसों की खरीद (Photo-Nafed).  

आधा मई बीत गया लेक‍िन, सरसों की सरकारी खरीद अभी काफी पीछे चल रही है. देश के पांच राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीद जारी है लेक‍िन हर‍ियाणा को छोड़ दें तो और एक भी राज्य में एक लाख मीट्र‍िक टन का आंकड़ा पार नहीं हुआ है. सबसे बुरा हाल है राजस्थान को जो सरसों का सबसे बड़ा उत्पादक है इसके बावजूद खरीद के मामले में वहां तेजी नहीं द‍िख रही है. जबक‍ि वहां के क‍िसान एमएसपी पर खरीद के ल‍िए द‍िल्ली तक आंदोलन कर चुके हैं. दूसरी ओर देश के कुल सरसों उत्पादन में 10.4 फीसदी की ह‍िस्सेदारी रखने वाले उत्तर प्रदेश का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है. यहां तो अब तक महज 570.05 मीट्र‍िक टन की ही खरीद हो पाई है. 

कम सरकारी खरीद से क‍िसानों को नुकसान हो रहा है. क्योंक‍ि ओपन मार्केट में इसका दाम एमएसपी से करीब 1000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक कम है. ऐसे में क‍िसान व्यापार‍ियों को औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेचने के ल‍िए मजबूर हैं. राजस्थान देश का सबसे बड़ा सरसों उत्पादक सूबा है. कुल उत्पादन में इसकी ह‍िस्सेदारी 48.2 फीसदी है, इसके बावजूद अब तक यहां पर महज 55258.41 मीट्र‍िक टन की ही खरीद हो सकी है. जबक‍ि यहां 15 लाख मीट्र‍िक टन से अध‍िक खरीद का लक्ष्य है. जब सरकारी खरीद नहीं होगी तो क‍िसान व्यापार‍ियों को बेचने के ल‍िए मजबूर होंगे ही. व्यापारी इस साल क‍िसानों को एमएसपी से कम भाव ही दे रहे हैं. 

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कुल क‍ितनी हुई खरीद?

देश में अब तक 5,28,450.76 मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद हो चुकी है. पांच राज्यों में कुल 2,49,165 क‍िसानों ने एमएसपी पर सरसों बेचा है. यह 2019-20 में कुल 8,03,844 मीट्रिक टन की खरीद से काफी कम है. उसके बाद के वर्षों में ओपन मार्केट में सरसों का भाव 8000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक पहुंच गया था. इसल‍िए सरकारी खरीद नहीं हो पाई. लेक‍िन रबी मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 में हालात बदल गए और सरसों का दाम एमएसपी से भी नीचे आ गया. क‍िसानों को हुए इस नुकसान की एक बड़ी वजह इंपोर्ट पॉल‍िसी को बताया जा रहा है. रबी मार्केट‍िंग सीजन 2023-24 में सरसों का एमएसपी 5450 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तय की गई है. जबक‍ि ओपन मार्केट में 4000 से 4500 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक का दाम म‍िल रहा है. ज्यादातर बाजारों में यही रेट चल रहा है.

क‍िस राज्य में क‍ितनी हुई खरीद 

  • हर‍ियाणा में एमएसपी पर 3,47,105 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है. 
  • मध्य प्रदेश में 98526.88 मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद हो चुकी है. 
  • राजस्थान में अब तक सिर्फ 55258.41 मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद हुई है. 
  • गुजरात में 26990.42 मीट्र‍िक टन सरसों की खरीद हुई है. 
  • उत्तर प्रदेश में स‍िर्फ 570.05 मीट्र‍िक टन सरसों खरीदा गया है. 

इंपोर्ट पॉल‍िसी से बढ़ी द‍िक्कत

क‍िसान नेता रामपाल जाट का आरोप है क‍ि एक ही साल में सरसों के दाम में करीब 3000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल तक की ग‍िरावट दर्ज की गई है. इसकी वजह स‍िर्फ इंपोर्ट पॉल‍िसी है. केंद्र सरकार ने खाद्य तेल आयात को प्रमोट करने वाली पॉल‍िसी बनाई हुई है. साल 2020 तक खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी 45 फीसदी थी. पाम आयल पर अतिरिक्त 5 फीसदी सुरक्षा शुल्क भी लगा हुआ था, ज‍िसे अक्टूबर 2021 को जीरो कर द‍िया गया. इसल‍िए आयात बहुत सस्ता हो गया. खासतौर पर ऐसी आयात पॉल‍िसी की वजह से सरसों का दाम धड़ाम हो गया. हमने प्रधानमंत्री को पत्र ल‍िखा है ताक‍ि खाद्य तेलों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़े और भारतीय क‍िसानों को राहत म‍िले. 

एमएसपी खरीद नीत‍ि पर सवाल

जाट का कहना है क‍ि एक और वजह से क‍िसानों को नुकसान हो रहा है. यह न‍ियम भी केंद्र द्वारा बनाया हुआ है. केंद्र सरकार की खरीद पॉल‍िसी के अनुसार कुल सरसों उत्पादन में से 75 फीसदी उपज एमएसपी की खरीद परिधि से बाहर हो जाती है. यानी त‍िलहन फसलों की अध‍िकतम सरकारी खरीद कुल उत्पादन की स‍िर्फ 25 फीसदी ही हो सकती है. एक दिन में एक किसान से 25 क्विंटल से अधिक ब‍िक्री नहीं कर सकता. इसकी वजह से ओपन मार्केट पर दबाव नहीं पड़ता और क‍िसानों को कम दाम पर अपनी फसल व्यापार‍ियों को बेचने के ल‍िए मजबूर होना पड़ता है. 

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