जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है, जिसका सीधा असर मानव जीवन से लेकर कृषि, पशु सभी पर सीधे तौर पर देखने को मिल रहा है. वहीं कृषि वैज्ञानिक मौसम में हो रहे बदलाव के बीच किसानों को खेती के तौर-तरीकों में बदलाव करने की सलाह दे रहे हैं. साथ ही कम अवधि वाले उन्नत और मौसम अनुकूल बीज से खेती करने की बात कर रहे हैं. अगर बिहार के परिदृश्य को देखें तो हर साल तापमान का मिजाज बदल रहा है.
भोजपुर कृषि विज्ञान केंद्र के हेड डॉ. प्रवीण कुमार द्विवेदी मौसम के बदलते मिजाज को देख चिंता जाहीर करते हुए किसान तक को बताते हैं कि अगर तापमान में इसी तरह से बदलाव होते रहे तो रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं के लिए खतरे की घंटी है. इस साल पिछले साल की तुलना में ठंडी का न्यूनतम तापमान में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है. जिसका सीधा असर गेहूं के साथ रबी सीजन की अन्य फसलों पर देखने को मिल सकता है. तापमान के बढ़ते-घटते मिजाज को देखते हुए किसानों को जलवायु परिवर्तन के दौर में मिश्रित कृषि के बारे में सोचना होगा.
बता दें जलवायु परिवर्तन के असर को देखते हुए राज्य और केंद्र की सरकार किसानों को आधुनिक विधि से खेती करने की सलाह दे रही है. इसी कड़ी में बिहार में जलवायु अनुकूल खेती सूबे के कई जिलों में की जा रही है. इस विधि से खेती को कृषि वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के दौर में एक सफल प्रयोग के तौर पर भी देख रहे हैं. वहीं राज्य के कई किसान मौसम की मार के बीच उत्पादन बढ़ाने के लिए आधुनिक खेती के साथ जलवायु अनुकूल खेती करना शुरू कर चुके हैं.
कृषि वैज्ञानिक डॉ द्विवेदी कहते हैं कि अभी नहरी क्षेत्र वाले कई जिलों के कुछ स्थानों पर अब जाकर धान की फसल की कटाई हुई है. अगर वैसे किसान अब गेहूं की बुआई करते हैं. तो उनके लिए गेहूं घाटे के अलावा कुछ देने वाला नहीं है. अब वैसे किसानों के लिए मक्का, मेंथा या गरमा सीजन वाली सब्जी की खेती करना सही होगा. वहीं जलवायु परिवर्तन के दौर में कभी अधिक ठंड तो कभी अधिक गर्मी ने खेती पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है. अगर किसानों को समय से गेहूं और धान की खेती करनी है. तो उन्हें आधुनिक खेती की ओर कदम बढ़ाना होगा. जिसमें अब खरीफ में कम अवधि वाले धान की खेती करनी होगी. तब जाकर किसान नवंबर के महीने में समय से गेहूं की खेती कर सकते हैं. वहीं जलवायु परिवर्तन के बीच मिश्रित खेती के प्रति किसानों को सोचना होगा. तब जाकर वह खेती से कमाई कर सकते हैं. कई किसान पारंपरिक खेती के पैटर्न में बदलाव कर मिश्रित खेती कर रहे हैं.
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भोजपुर कृषि विज्ञान केंद्र के हेड डॉ द्विवेदी कहते हैं कि राज्य के कई ऐसे किसान है जो मिश्रित खेती से कम लागत में अधिक कमाई कर रहे हैं. सूबे में आधुनिक खेती के साथ मशीन आधारित खेती कर रहे हैं. वहीं अब किसान खेत में मछली पालन के साथ मखाना की खेती कर रहे हैं. साथ ही उन्नत और मौसम अनुकूल बीज का सलेक्शन कर रहे है. इसके साथ ही पशुपालन कुक्कुट पालन से कमाई कर रहे हैं. वहीं जलवायु परिवर्तन को देखते हुए सरकार जलवायु अनुकूल खेती पर जोर दे रही है. जिसका बेहतर रिजल्ट मिल रहा है. अब किसानों को अपनी पुरानी सोच को बदलना होगा. तभी वह कम लागत में अधिक कमाई कर सकते हैं.
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