Bihar Agriculture News: बिहार के कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने पटना स्थित बामेती सभागार में खरीफ महाअभियान 2025 के तहत राज्य स्तरीय कर्मशाला सह-समीक्षात्मक बैठक का उद्घाटन किया. इस अवसर पर मंत्री ने कहा कि कृषि क्षेत्र में प्रयोग होने वाली हिंदी की भाषा सरल होनी चाहिए ताकि किसान आसानी से उसे समझ सकें. इस दिशा में उन्होंने खरीफ और रबी शब्दों की जगह पर क्रमशः शारदीय और बसंतीय शब्दों को अपनाने की बात कही. इसके अलावा कृषि मंत्री ने मखाना बोर्ड की पहल की सराहना करते हुए कहा कि इसका सकारात्मक प्रभाव दिखाई दे रहा है. इसके तहत आने वाले दिनों में करीब 50 हजार मखाना उत्पादक किसानों को सीधे कर्ज मिलेगा.
कृषि मंत्री विजय सिन्हा के अनुसार कर्मशाला का मकसद खरीफ मौसम के लिए राज्यभर में कृषि योजनाओं और तकनीकी कार्यक्रमों के सफल क्रियान्वयन को सुनिश्चित करना है. खरीफ महाभियान के तहत किसानों तक नई कृषि तकनीकों का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है. उन्होंने यह भी बताया कि राज्य सरकार किसानों की आय वृद्धि और जलवायु-अनुकूल टिकाऊ कृषि व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है. इसके साथ ही कृषि मंत्री ने 'फार्मर रजिस्ट्री' का जिक्र करते हुए कहा कि सभी किसानों के डिजिटल रजिस्ट्रेशन के जरिये उन्हें कई सरकारी योजनाओं से जोड़ा जा रहा है ताकि हर जरूरतमंद किसान को खेती से जुड़े फायदे हासिल हो सकें.
बिहार कृषि विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल ने कहा कि खरीफ मौसम में राज्य के कृषि तंत्र को सशक्त बनाने हेतु सभी संबंधित विभागों और जिला स्तरीय इकाइयों को समन्वय के साथ कार्य करना होगा. उन्होंने कहा कि बिहार को कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तकनीकी ज्ञान, उन्नत बीज, कृषि यंत्र, जैविक विधियां और डिजिटल इनोवेशंस को अपनाना जरूरी है.
खरीफ महाभियान के तहत किसानों को बदलते मौसम के अनुरूप धान की सीधी बुआई, शून्य जुताई (जीरो टिलेज) तकनीक, दलहनी फसलों की वैज्ञानिक खेती, ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई विधियों की जानकारी दी जाएगी. साथ ही जैविक खेती को भी बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रेरित भी किया जाएगा. वहीं, जिन पंचायतों में पहले फसल अवशेष जलाने की घटनाएं हुई हैं, वहां महाभियान रथ के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा तैयार डॉक्यूमेंट्री के जरिए किसानों को जागरूक किया जाएगा कि फसल अवशेष न जलाएं.
पटना में आयोजित एक सेमिनार में कृषि मंत्री ने मखाना को 'मां का खाना' बताते हुए इसके पोषण और आर्थिक महत्व पर प्रकाश डाला. वहीं, उन्होंने बताया कि देश के कुल मखाना उत्पादन का 85 फीसदी और विश्व उत्पादन का 60 फीसदी हिस्सा बिहार से आता है. उन्होंने मखाना-सिंघाड़ा, मखाना-पान और मखाना-मछली की चक्रीय खेती को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल देते हुए यह मांग रखी कि मखाना को न्यूनतम समर्थन मूल्य की बास्केट में शामिल किया जाए.
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