आईसीएआर ने रोया बजट का रोना, श‍िवराज स‍िंह चौहान ने क‍िसानों की ओर से द‍िखाया 'आईना'

आईसीएआर ने रोया बजट का रोना, श‍िवराज स‍िंह चौहान ने क‍िसानों की ओर से द‍िखाया 'आईना'

बड़ा सवाल यह है क‍ि क्या स‍िर्फ पेपर काले करने और फाइलों को मोटा करने के ल‍िए र‍िसर्च हो रहे हैं या उसका लक्ष्य क‍िसानों को फायदा पहुंचाना है. आज बड़े-बड़े वैज्ञान‍िक न‍िजी कंपन‍ियों के मंच पर ज्यादा नजर आते हैं, लेक‍िन खेतों में वो नहीं द‍िखाई देते. आज इसील‍िए कृष‍ि मंत्री यह कहने पर मजबूर हुए क‍ि आपको खेतों में क‍िसानों के बीच जाना होगा. 

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आईसीएआर ने रोया बजट का रोना, श‍िवराज स‍िंह चौहान ने क‍िसानों की ओर से द‍िखाया 'आईना'कृष‍ि मंत्री ने आईसीएआर के वैज्ञान‍िकों को सुनाई कड़वी बात.

भारत को भुखमरी से बाहर न‍िकालने में 95 साल पुराने भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) का अहम योगदान है. पूरे व‍िश्व में आईसीएआर कृष‍ि र‍िसर्च का सबसे बड़ा संगठन है. इसमें वैज्ञान‍िकों के मंजूर पद 6586 हैं. लेक‍िन, यह संख्या पूरी नहीं होती. पद खाली रहते ही हैं. यहां स‍िर्फ वैज्ञान‍िकों की संख्या में कमी का ही सवाल नहीं है बल्क‍ि इसके बजट का भी बड़ा मुद्दा है. र‍िसर्च के ल‍िए बजट कम पड़ रहा है. आईसीएआर से जुड़े 113 इंस्टीट्यूट और 151 रीजनल स्टेशन हैं. लेक‍िन इनमें से कई जगहों पर लैब की स्थ‍िति बहुत खराब है. साफ-सफाई तक नहीं द‍िखती. र‍िसर्च पर उतना पैसा नहीं खर्च हो पाता, ज‍ितने की जरूरत है. जबक‍ि, एग्रीकल्चर सेक्टर में र‍िसर्च पर अगर 1 रुपये का न‍िवेश होता है तो 13.85 रुपये का र‍िटर्न म‍िलता है. 

संस्था के स्थापना द‍िवस पर द‍िल्ली में आयोज‍ित एक कार्यक्रम में कृष‍ि मंत्री श‍िवराज स‍िंह चौहान के सामने इसके महान‍िदेशक डॉ. ह‍िमांशु पाठक ने बजट में कमी का मुद्दा उठाया. इस समय यानी 2024-25 में आईसीएआर का बजट 9941 करोड़ रुपये का है. बजट का 99.48 फीसदी तक खर्च हो जाता है. पाठक ने कहा क‍ि हर चीज के ल‍िए बजट चाह‍िए होता है. इस समय आईसीएआर को जो बजट म‍िलता है वो देश के कुल बजट का स‍िर्फ 0.2 फीसदी ही है. जबक‍ि व‍िकस‍ित देशों में एग्री र‍िसर्च पर 0.8 फीसदी तक बजट द‍िया जाता है. यह रकम कृष‍ि बजट का 7.4 फीसदी ही है. यह कृष‍ि प्रधान देश का हाल है. 

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आईसीएआर पर सवाल 

भारत की तरक्की में आईसीएआर के अहम योगदान से कभी भी इंकार नहीं क‍िया जा सकता. लेक‍िन, अब हालात वैसे नहीं हैं, जैसे होने चाह‍िए. इसी कार्यक्रम में 'लैब टू लैंड' के गैप यानी र‍िसर्च और उससे क‍िसानों तक पहुंचने वाले फायदे को लेकर कृष‍ि मंत्री श‍िवराज स‍िंह चौहान ने जो कृष‍ि वैज्ञान‍िकों पर सवाल उठाए हैं वो भी काफी महत्वपूर्ण मुद्दा है. क‍िसानों की नजर से देखा जाए तो बेहद जरूरी सवाल है. मंत्री को यहां तक कहना पड़ा क‍ि मैं कृष‍ि मंत्री की कुर्सी पर बोझ बनने नहीं आया हूं. मैं खुद क‍िसान हूं. इसका मतलब साफ है क‍ि चौहान नए तौर-तरीके से काम चाहते हैं, ज‍िसका फायदा बहुत तेजी से क‍िसानों तक पहुंचे. 

र‍िसर्च का फायदा कौन उठा रहा?  

बहरहाल, बड़ा सवाल यह है क‍ि क्या आईसीएआर के संस्थानों में होने वाला र‍िसर्च आसानी से क‍िसानों के खेतों तक पहुंच पा रहा है. दरअसल, प‍िछले कुछ वर्षों से कृष‍ि क्षेत्र पर जैसे कारपोरेट की नजर लग गई है. क‍िसानों से पहले यहां होने वाले र‍िसर्च का फायदा कंपन‍ियां उठा रही हैं. इसल‍िए क्या र‍िसर्च हुआ, इसे फाइलों में दबाकर रखा जाता है. उसे पब्ल‍िक तक आने नहीं द‍िया जाता. आईसीएआर से जुड़े संस्थानों में खेती-क‍िसानी को आसान बनाने में मदद करने वाले ल‍िट्रेचर सड़ रहे हैं, लेक‍िन वो क‍िसानों तक नहीं पहुंचते.   

कैसे म‍िलेगा क‍िसानों को लाभ? 

बड़ा सवाल यह है क‍ि क्या स‍िर्फ पेपर काले करने और फाइलों को मोटा करने के ल‍िए र‍िसर्च हो रहे हैं या उसका लक्ष्य क‍िसानों को फायदा पहुंचाना है. आज बड़े-बड़े वैज्ञान‍िक न‍िजी कंपन‍ियों के मंच पर ज्यादा नजर आते हैं, लेक‍िन खेतों में वो नहीं द‍िखाई देते. आज इसील‍िए कृष‍ि मंत्री यह कहने पर मजबूर हुए क‍ि आपको खेतों में क‍िसानों के बीच जाना होगा. आईसीएआर के कई संस्थानों में प्राइवेट कंपन‍ियों का बोलबाला है. 

आईसीएआर टेक्नोनॉजी बनाकर उसे न‍िजी कंपन‍ियों को बेच देता है. क्या सरकार इतनी सक्षम नहीं है क‍ि वो अपने वैज्ञान‍िकों की खोज को खेतों तक पहुंचा सके. क्यों पब्ल‍िक सेक्टर के पैसे से र‍िसर्च हो और उसका फायदा कंपन‍ियों को म‍िले और क‍िसान बेचारे बने रहें? अब समय कंपन‍ियों की बजाय क‍िसानों पर फोकस करने का आ चुका है.  

क‍िसानों के नाम पर क‍िसे फायदा?

आज स्थ‍ित‍ि ऐसी है क‍ि आईसीएआर के तमाम डायरेक्टर और वैज्ञान‍िक बड़ी-बड़ी एग्रो कंपन‍ियों के मंच पर म‍िल जाएंगे, लेक‍िन क‍िसानों के बीच जाने से वो परहेज करते हैं. जाह‍िर है क‍ि ये कंपन‍ियां अपना ह‍ित साधने के ल‍िए इनका इस्तेमाल करती हैं. तमाम र‍िसर्च स्टेशनों के वैज्ञान‍िक अपनी खोजों को, नई क‍िस्मों का ब्यौरा मीड‍िया में देने से डरते हैं क‍ि कहीं इसका फायदा क‍िसानों तक न पहुंच जाए. 

आईसीएआर को यह जरूर बताना चाह‍िए क‍ि प‍िछले एक-दो दशक में उसने कौन सी ऐसी क्रांत‍िकारी खोज की है ज‍िससे क‍िसानों की आय बढ़ गई है. क‍िसानों के नाम पर हजारों करोड़ रुपये की पर्ची फाड़ी जा रही है और क‍िसान क्यों दीनहीन बना हुआ है. क्या क‍िसानों के नाम पर कंपन‍ियों को फायदा पहुंचाने का खेला हो रहा है. 

श‍िवराज के सवाल

चौहान ने वैज्ञान‍िकों से पूछा क‍ि जब हम बीज की कोई नई क‍िस्म तैयार करते हैं तो उसे लैंड तक जाने में वक्त क‍ितना लगना चाह‍िए. व्यवहार‍िक अनुभव यह है क‍ि लैब से लैंड तक पहुंचने में समय बहुत लगता है. ब्रिडर सीड, फाउंडेशन सीड, सर्ट‍िफाइड सीड... तब तक जमाना इतना आगे बढ़ जाता है क‍ि दूसरी क‍िस्म आ जाती है. वैज्ञान‍िक काम करते हैं यह सच है, लेक‍िन क‍िसान व्यवहार‍िक काम करता है यह भी सच है. हम आकलन करके देखें क‍ि क्या वैज्ञान‍िकों और क‍िसानों के बीच पूरा तालमेल है? 

कहानी से सीख लेगा आईसीएआर? 

कृष‍ि मंत्री ने आईसीएआर के कृष‍ि वैज्ञान‍िकों को आईना द‍िखाने के ल‍िए एक कहानी सुनाई. देखना यह है क‍ि आईसीएआर के अध‍िकारी और वैज्ञान‍िक इससे सबक लेते हैं या नहीं. चौहान ने कहा, "तीन लोग पढ़ाई पूरी करके अपने घर जा रहे थे. जाने के ल‍िए नदी पार करनी थी. नौका में बैठे तो एक व‍िद्यार्थी ने नाव‍िक से पूछा क‍ि भाई तुमने मैथ की पढ़ाई की है? नाव‍िक ने जवाब द‍िया क‍ि मैं कहां पढ़ा. तब उसने नाव‍िक को बोला क‍ि तेरी एक चौथाई ज‍िंदगी बेकार. थोड़ी देर बाद दूसरे व‍िद्यार्थी ने बोला क‍ि तुमने साइंस पढ़ा. नाव‍िक ने कहा नहीं पढा. तब उसने नाव‍िक से बोला क‍ि तेरी आधी ज‍िंदगी बेकार. 

तीसरे ने कहा क‍ि तुमने ह‍िस्ट्री तो पढ़ी ही होगी. नाव‍िक ने बोला क‍ि वो भी नहीं पढ़ा. तब उसने बोला क‍ि तेरी तीन चौथाई ज‍िंदगी बेकार. अचानक मझधार में गए तो हवा चली. नाव डगमगाने लगी तो नाव‍िक ने पूछा क‍ि तुम तीनों ने तैरना सीखा है. तो तीनों ने बोला नहीं. इस पर नाव‍िक बोला क‍ि तुम्हारी पूरी ज‍िंदगी बेकार. वो कूदकर न‍िकल ल‍िया. बाकी तीनों का क्या हुआ आप समझ सकते हैं." अब आईसीएआर के अध‍िकार‍ियों और वैज्ञान‍िकों को समझना होगा क‍ि श‍िवराज स‍िंह चौहान उनसे कैसा काम चाहते हैं.  

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