चावल निर्यात को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसलों के खिलाफ पांच दिन के 'असहयोग आंदोलन' के बाद बासमती एक्सपोर्टरों और मिल मालिकों ने किसानों से धान की फिर से खरीद शुरू करने का फैसला किया है. ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष के साथ कुछ एक्सपोर्टरों ने बृहस्पतिवार को केंद्रीय खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा से मुलाकात की. एक्सपोर्टरों ने बताया कि गैर बासमती सफेद चावल का एक्सपोर्ट बंद होने और बासमती चावल पर 1200 डॉलर का न्यूनतम निर्यात मूल्य (MEP-Minimum Export Price) फिक्स होने के बाद यह उद्योग परेशानी में है. बासमती का एक्सपोर्ट न के बराबर रह गया है. इसे कम करवाया जाए. अभी सरकार इस मामले को रिव्यू कर रही है.
एसोसिएशन के पूर्व प्रधान विजय सेतिया ने बताया कि चोपड़ा से मिलने के बाद एसोसिएशन की गवर्निंग बॉडी की मीटिंग हुई. इसके बाद यह किया गया कि दोबार खरीद शुरू की जाएगी. क्योंकि बासमती धान की खरीद बंद होने से किसानों को नुकसान हो रहा है. हम अपने सभी सदस्यों से अपील कर रहे हैं कि जो लोग अपनी घरेलू जरूरतों को पूरा करने के लिए धान खरीदना चाहते हैं वो खरीदना शुरू कर दें, ताकि किसानों को पैसा मिले और वो रबी सीजन की खेती की तैयारी कर सकें. खरीद बंद होने की वजह से बासमती धान का दाम 3800 से घटकर 3000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है.
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सेतिया ने बताया कि इस बारे में 27 अक्टूबर को एसोसिएशन की दोबारा बैठक होगी. तब तक सरकार अगर कोई ऐसा फैसला करती है कि हमारा व्यापार बढ़ेगा तो हम उसका स्वागत करेंगे. लेकिन अगर कोई ऐसा फैसला करती है जिससे हमारे व्यापार में दिक्कत आती है तो हम धान खरीद वाला अपना फैसला रिव्यू करेंगे. फिर देखेंगे कि हमें क्या करना है. बासमती का ज्यादा हिस्सा एक्सपोर्ट होता है. इस समय 1200 डॉलर के न्यूनतम निर्यात मूल्य के बैरियर की वजह से एक्सपोर्ट कम हो गया है. ऐसे में हम धान खरीदकर क्या करेंगे.
बासमती चावल पर 1200 डॉलर प्रति टन का मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस लगाने के खिलाफ निर्यातकों और राइस मिल मालिकों ने 14 तारीख से किसानों से बासमती धान खरीदना बंद कर दिया था. इसकी वजह से धान का दाम 500 से 800 रुपये प्रति क्विंटल तक कम हो गया है. बासमती धान की खरीद सरकार नहीं करती, क्योंकि यह महंगा होता है और एमएसपी के दायरे में नहीं आता. ऐसे में इसका बाजार निजी क्षेत्र पर निर्भर करता है. एक्सपोर्टरों का कहना कि अभी पुराना चावल बहुत पड़ा हुआ है, ऐसे में वो धान की खरीद करके कहां रखें और कहां से पैसा लाएं. पुराना चावल इसलिए रखा हुआ है क्योंकि 1200 डॉलर एमईपी लगाने की वजह से एक्सपोर्ट में गिर गया है.
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बासमती चावल के एक्सपोर्ट पर 1200 डॉलर प्रति टन की एमईपी 25 अगस्त को लगाई गई थी. इसके खिलाफ एक्सपोर्टरों ने आवाज उठाई लेकिन सरकार ने उसे नहीं बदला. इस मामले पर 25 सितंबर को एक्सपोर्टर्स के साथ एक वर्चुअल बैठक में वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने एमईपी को कम करवाने का भरोसा दिलाया. लेकिन सरकार ने इसे कम करने की बजाय 14 अक्टूबर को एक बार फिर तय किया कि 1200 डॉलर वाला पुराना फैसला ही आगे भी कायम रहेगा.
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