केला एक ऐसा फल है, जिसकी मांग पूरे साल बनी रहती है और यह बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक सबके लिए फ़ायदेमंद है, इसलिए केले की खेती हमेशा मुनाफ़ा देने वाली होती है,ऐसे में किसान अगर सही किस्म का केला लगाएं तो उन्हें बढ़िया कमाई हो सकती है. केले की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को उसको सही समय पर खेती और अच्छी किस्मों का चयन करना बेहद जरूरी है, इसकी कुछ ऐसी किस्में हैं, जिसमें न कीट लगते हैं और न ही रोग होता है. इन किस्मों की खेती से किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं. ड्रिप सिंचाई की सुविधा हो, तो पॉली हाउस में टिश्यू कल्चर पद्धति से केले की खेती सालभर की जा सकती है. महाराष्ट्र में इसकी रोपाई के लिए खरीफ सीजन में जून-जुलाई, जबकि रबी सीजन में अक्टूबर-नवम्बर का महीना महत्वपूर्ण माना जाता है.
भारत के अंदर आंध्र प्रदेश राज्य में केले का सबसे अधिक उत्पादन होता है. केले का उत्पादन करने वाले अन्य राज्य जैसे- महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, आंध्र प्रदेश और असम हैं. वहीं इसकी खेती के लिए चिकनी बलुई मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है. इसकी खेती के लिए भूमि का पीएच मान 6-7.5 के बीच होना चाहिए. ज्यादा अम्लीय या क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए उपयुक्त नहीं होती है. ऐसे में अगर आप केले की उन्नत किसानों की आधुनिक तरीके से खेती करते हैं, तो लाखों कमा सकते हैं.
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारे देश में ही केले की 500 से अधिक किस्में उगाई जाती है. जिसमें से रोवेस्टा, बत्तीसा, जी-9 किस्म ,चिनिया चम्पा, बसराई, पूवन, न्याली, रास्थाली जैसी किस्मों को प्रमुख माना जाता है. बत्तीसा किस्म के केले को सबसे अधिक सब्जी और अन्य खाद्य पदार्थों को बनाने के लिए उगाया जाता है. वहीं कुटिया का इस्तेमाल फल और सब्जियों दोनों रूप में किया जाता है.
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केले की जी-9 किस्म में कई विशेषताएं होने से किसान इसकी खेती अधिक करते हैं महाराष्ट्र में किसान जी-9 किस्म की खेती करते हैं. इस किस्म का स्वाद केले की अन्य किस्मों की अपेक्षा ज्यादा मीठा होता है.साधारण केले की अपेक्षा इसे पकने में कम समय लगता है.केले की जी-9 किस्म में रोगों का प्रकोप भी कम देखा गया है. इस किस्म के फल मध्यम आंधी-तूफान में झड़ते नहीं है. इसका तना मजबूत होता है जो इसका सामना करने में समक्ष होता है.
इस किस्म के पौधे की लंबाई ड्वार्फ कैवेंडिश से अधिक होती है. एक घौंद का वज़न 25-30 किलो होता है. इसका फल अधिक मीठा होता है. पकने पर केला चमकीले पीले रंग का हो जाता है. यह किस्म पनामा उकठा के प्रति प्रतिरोधी होती है. हालांकि, लीफ स्पॉट बीमारी से प्रभावित होती है. इसलिए विशेषज्ञों की सलाह पर सही प्रबंधन करें.
केल की उन्नत किस्म ड्वार्फ कैवेंडिश अधिक उपज के लिए जानी जाती है. यह किस्म पनामा उक्ठा नामक रोग से सुरक्षित रहती है. इस किस्म के केले के पौधे लंबाई में कम होते हैं औसतन एक घौंद का वज़न 22-25 किलो होता है, जिसमें 160-170 फलियां आती हैं. एक फली का वजन 150-200 ग्रा. होता है. फल पकने पर पीला और स्वादिष्ट लगता है. यह केला पकने के बाद जल्दी खराब होने लगता है.
इस किस्म को ‘पूवान’ नाम से भी जाना जाता है. इसका पौधा लंबा, लेकिन फल छोटा, सख्त और गूदेदार होता है. फलों का घौंद 20-25 किलो का होता है. यह किस्म बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडू, असम में अधिक उगाई जाती है. प्रति घौंद फलों की संख्या 150-300 होती है.
केले की इस किस्म का उपयोग ख़ासतौर पर सब्जी के लिए किया जाता है. इसके घौंद की लम्बाई अधिक होती है. घेरे में लगने वाली फलियों की लम्बाई और आकार भी बड़ा होता है. एक घौंद में 250 से 300 तक फलियां लगती हैं.
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