उत्‍तराखंड में उगता है एक 'जादुई' पौधा, जो पीलिया के मरीजों को देता है आराम, किसानों को होता डबल मुनाफा

उत्‍तराखंड में उगता है एक 'जादुई' पौधा, जो पीलिया के मरीजों को देता है आराम, किसानों को होता डबल मुनाफा

भंगजीरा एक पौधा होता है इसका उपयोग कई तरह से किया जाता है. खासकर, पहाड़ी लोग भंगजीरा के बीजों को अपनी डाइट में जरूर शामिल करते हैं. भंगजीरा के बीजों में करीब 30 से 40 फीसदी तेल होता है. कई लोग भंगजीरा के तेल का भी प्रयोग करते हैं. भंगजीरा एक औषधीय पौधा है जो उत्तराखंड के ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है.

Advertisement
उत्‍तराखंड में उगता है एक 'जादुई' पौधा, जो पीलिया के मरीजों को देता है आराम, किसानों को होता डबल मुनाफा भंगजीरा उत्‍तराखंड में पाया जाता है

भंगजीरा एक ऐसा पौधा है जो उत्‍तराखंड में पाया जाता है जिसके कई औषधीय महत्‍व हैं. इस पौधे का नाम पेरिला फ्रूटसेंस है और इसे चाइनीज बेसिल भी कहते हैं. उत्‍तराखंड के लोग इसका प्रयोग कई स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के इलाज के लिए लिए किया जाता है. साथ ही भंगजीरा में कई तरह के पोषक तत्व भी होते हैं. यह ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी से लैस होता है जिन्‍हें स्वास्थ्य के लिए काफी जरूरी माना जाता है. 

ओमेगा-3 और 6 से लैस

भंगजीरा एक पौधा होता है इसका उपयोग कई तरह से किया जाता है. खासकर, पहाड़ी लोग भंगजीरा के बीजों को अपनी डाइट में जरूर शामिल करते हैं. भंगजीरा के बीजों में करीब 30 से 40 फीसदी तेल होता है. कई लोग भंगजीरा के तेल का भी प्रयोग करते हैं. भंगजीरा एक औषधीय पौधा है जो उत्तराखंड के ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में उगाया जाता है. इसके बीजों से जो तेल निकलता है उसमें ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिड से लैस होता है. यह तेल गठिया, सूजन और कैंसर और हार्ट डिजीज को रोकने में कारगर साबित होती है. 

यह भी पढ़ें-गर्मी में ग्‍वारफली की खेती के लिए बेस्‍ट रहेंगी ये खास किस्‍में, होगा बंपर मुनाफा

पीलिया के रोगी को मिलता आराम 

भुने हुए भंगजीरा का कोदो और प्रोसो श्रीअन्‍न के साथ मिलाकर सेवन करने से पीलिया और चेचक के रोगी को पौष्टिक आहार मिलता है. भंगजीरा के सुगंधित बीज मसाले और स्‍वादिष्‍ट चटनी बनाने में प्रयोग किया जाता है. भंगजीरा की खेती ठंडे और नम क्षेत्रों में अच्‍छे से होती है. इसकी खेती के लिए 15 डिग्री सेल्सियस से 30 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान अच्‍छा माना जाता है. वहीं इसकी फसल के लिए बेहतर जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी को विशेषज्ञों ने सही करार दिया है. 

यह भी पढ़ें-बिहार में गेहूं के लिए बर्बादी तो इन फसलों के लिए राहत बनी बारिश

बहुत कम लागत में होती खेती 

भंगजीरा की बुवाई का समय जून के अंत से जुलाई तक की जाती है. पौधों में फूल आने के 40-50 दिन बाद बीज पकने लगते हैं. पौधे को काटकर सूखा लें और फिर इसके बीज निकालें. करीब प्रति हेक्‍टेयर करीब से चार से छह क्विंटल बीज हासिल होते हैं. इसकी खेती में कम लागत आती है और किसानों की अच्‍छी इनकम होती है. बीजों से जो तेल निकलता है, उसकी कीमत भी बाजार में ज्‍यादा मिलती है. 


 
POST A COMMENT