इन दिनों देश में हर तरफ सब्जियों की महंगाई की चर्चा है. खाने-पीने की चीजें काफी महंगी हो चुकी हैं. टमाटर, हरी मिर्च, अदरक, धनिया और दूसरी सब्जियों के दाम आसमान पर हैं. इस बीच त्योहारी सीजन से पहले ही काली मिर्च की कीमत भी बढ़ने लगी है. क्योंकि त्योहारों के कारण काली मिर्च की मांग बढ़ गई है. कोच्चि टर्मिनल बाजार में कीमतें अब 490-500 प्रति किलोग्राम पर चल रही हैं, जबकि वायनाड और कोडागु के बोल्डर बेरी को 520 और 525 के बीच प्रीमियम मिल रहा है. यानी जनता को अब काली मिर्च की महंगाई से भी जूझना पड़ेगा.
कोच्चि में काली मिर्च के व्यापारी किशोर शामजी ने कहा कि बाजार जल्द ही त्योहारी सीजन से पहले गतिविधियों के साथ शुरू होंगे, जो जुलाई के मध्य में करकटका वावु से शुरू होता है, उसके बाद मुहर्रम और गणेश चतुर्थी का असर भी दिखेगा. मसाला निर्माताओं से भी काली मिर्च की मांग की गई. डीलर्स के होल्डिंग की खबरें आ रही हैं.
व्यापारियों ने बताया कि इस साल आम के मौसम की देरी से शुरुआत ने अचार उद्योग में काली मिर्च की मांग को भी बढ़ा दिया है. यह उद्योग अपनी आवश्यकताओं के लिए अच्छी मात्रा में काली मिर्च खरीदता है. त्योहारों से पहले देश के बाजारों में काली मिर्च की कीमतों में तेजी इसीलिए आई है.
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केरल में लगातार हो रही बारिश को लेकर किसान समुदाय में चिंता बढ़ गई है क्योंकि इससे कई हिस्सों में काली मिर्च की बेलों को नुकसान पहुंचना शुरू हो गया है. इसका असर इस साल की फसल पर पड़ सकता है, जिसकी कटाई दिसंबर तक होने की उम्मीद है. इससे काली मिर्च की महंगाई और बढ़ जाएगी. पिछले साल काली मिर्च का उत्पादन 65,000 टन था.
काली मिर्च एक मसाला फसल है. इसका उत्पादन देश के कई हिस्सों में होता है. त्रावणकोर और मालाबार के जंगलों में यह बड़े पैमाने पर पैदा होता है. इसके अलावा कोचीन, मलाबार, मैसूर, कुर्ग में भी इसकी खेती होती है. महाराष्ट्र में भी काली मिर्च की खेती होती है. दुर्लभ काली मिर्च की खेती महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में होती है. इस फसल की खेती के लिए कोंकण तट की जलवायु अनुकूल है. यह बेल यानी लता वाली फसल है. असम के सिलहट में भी इसके खेत हैं. मेघलाय की खासी हिल्स इलाके में बड़े पैमाने पर इसका उत्पादन होता है. लेकिन केरल इसका सबसे बड़ा उत्पादक है.
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