सफेद सोना कहे जाने वाले कपास की खेती इस साल कम हो गई है. पिछले साल के मुकाबले कपास के रकबे में करीब 11 लाख हेक्टेयर की गिरावट दर्ज की गई है. इसलिए अगले वर्ष कॉटन महंगा होने का अनुमान लगाया जा रहा है. ऐसे में जो भी किसान कपास की खेती कर रहे हैं वो कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर ध्यान जरूर दें ताकि उनकी खेती में नुकसान न हो. उपज अच्छी मिले और उससे बंपई कमाई हो. इसके लिए खाद, पानी और रोगों के मैनेजमेंट पर खास ध्यान देने की जरूरत है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर अत्यधिक और असामयिक बारिश के कारण सामान्य तौर पर पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है तो उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. ऐसे में इससे अधिक ऊंचाई वाली मुख्य तने की ऊपर वाली सभी शाखाओं की कैंची से छंटाई कर दें. छंटाई से कीटनाशकों के छिड़काव में आसानी होगी.
कपास में फूल आने के समय नाइट्रोजन की बाकी आधी मात्रा दें, जो कि संकर कपास में 1/2 बैग, अमेरिकन कपास में 2/3 बैग होती है. नाइट्रोजन देने से पहले खेत में नमी होनी चाहिए, लेकिन पानी खड़ा नहीं होना चाहिए. बारिश के बाद अतिरिक्त जल का निकास तुरंत होना चाहिए. यदि फूल आने पर खेत में नमी नहीं होगी, तो फूल और फल झड़ जाएंगे तथा पैदावार कम हो जाएगी. एक तिहाई टिंडे खुलने पर आखिरी सिंचाई कर दें. इसके बाद कोई सिंचाई न करें तथा खेत में बारिश का पानी खड़ा न होने दें.
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कपास के पत्ती लपेटने वाले कीटों की इल्लियां पत्तियों को लपेटकर एक खोल सा बना लेती हैं और अंदर पत्तियों को खाती हैं. इनकी रोकथाम के लिए गर्मियों में गहरी जुताई करें, ताकि प्यूपा धूप से नष्ट हो जाएं, इसके लार्वा को एकत्रित करके नष्ट कर दें और फसल पर पत्ती लपेटने वाले कीट दिखाई देने पर अंडा पैरासिटोइड ट्राइकोग्रामा 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में प्रयोग करना चाहिए. अगस्त में कपास की फसल पर हरा तैला, रोबंदार सुंडी, चित्तीदार सुंडी, कुबड़ा कीट तथा अन्य पत्ती खाने वाले कीट का प्रकोप बढ़ जाता है.
हरा तैला कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही कपास को नुकसान पहुंचाते हैं. ये हरे रंग के होते हैं, जो कि पत्तियों की निचली सतह पर रहते हैं. ये टेढ़े चलते दिखाई देते हैं. इनके आक्रमण से पत्ते किनारों से पीले पड़ जाते हैं और नीचे की ओर मुड़ने लगते हैं. पत्तियां पीली व लाल होकर सूख जाती हैं और जमीन पर गिर जाती हैं. पौधों की बढ़वार रुक जाती है व कलियां, फूल गिरने लगते हैं, जिससे पैदावार कम हो जाती है. हरा तैला जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक हानि पहुंचाता है.
सफेद मक्खी कीट का पिछले कुछ वर्षों से कपास में प्रकोप काफी बढ़ रहा है. यह एक बहुभक्षी कीट है, जो कपास की प्रारंभिक अवस्था से लेकर चुनाई व कटाई तक फसल में रहता है. इस कीट के शिशु और प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों की निचली सतह पर रहकर रस चूसते हैं. ये फसल को दो तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. एक तो रस चूसने की वजह से, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है. दूसरा पत्तियों पर चिपचिपा पदार्थ छोड़ने की वजह से जिस पर काली फफूंर उग जाती है और पौधे के आहार बनाने की प्रक्रिया में बाधा पड़ जाती है.
यदि अगस्त-सितम्बर महीने के दौरान कपास के खेत में सफेद मक्खी कीट का आक्रमण हो जाए तो क्या करें? वैज्ञानिकों ने बताया कि इसके निदान के लिए मैटासिस्टाक्स 25 ईसी व एक लीटर नीम आधारित कीटनाशक या 300 मिली डाइमेथोएट 30 ईसी का बारी-बारी से 250 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
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