कृषि उपज देश की अर्थव्यवस्था का एक अहम हिस्सा होता है. आमतौर पर फलों और सब्जियों जरूरी हिस्सा हैं. अगर लोगों में फलों और सब्जियों का उपभोग बढ़े, तो स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है. भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां फल और सब्जियों का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है. लेकिन, उचित भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी के कारण, हर साल लगभग 20 परसेंट फल और सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं. फल और सब्जियों की बर्बादी से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है.
आपूर्ति कम होने से फल और सब्जियों की कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे आम आदमी प्रभावित होता है. फल और सब्जियों की बर्बादी से देश में पोषण सुरक्षा प्रभावित होती है. फल और सब्जियों की बर्बादी को कम करके, हम किसानों की आय बढ़ा सकते हैं, महंगाई को नियंत्रित कर सकते हैं और देश में पोषण सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं. भारत को दुनिया में फलों और सब्जियों का भंडार माना जाता है. यह फलों और सब्जियों की विशाल किस्मों का गुलदस्ता कहा जात है, लेकिन जल्दी खराब हो जाने के कारण किसानों को उनका उचित लाभ नहीं मिल पाता है.
देश में आलू, टमाटर और प्याज जैसे उत्पादों का अधिक उत्पादन होने के बावजूद, किसानों को अधिकतर समय घाटे का सामना करना पड़ता है. साल 2024-25 में फलों का उत्पादन पिछले साल की तुलना में 2.48 लाख टन बढ़कर 1132.26 लाख टन तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण आम, अंगूर और केले के उत्पादन में बढोतरी है. सब्जियों का उत्पादन 2023-24 के 2072.08 लाख टन से बढ़कर 2024-25 में 2145.63 लाख टन होने की संभावना है. प्याज, आलू, टमाटर, हरी मिर्च, फूलगोभी और मटर के उत्पादन में बढ़ोतरी की की उम्मीद है.
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इसमें विशेष रूप से आलू का उत्पादन 595.72 लाख टन तक पहुंच सकता है, जो पिछले लाल की तुलना में 25.19 लाख टन अधिक होगा. टमाटर का उत्पादन भी 213.23 लाख टन से बढ़कर 215.49 लाख टन होने की संभावना है, लेकिन सब्जियों के भडारण या कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग सुविधा ना होने से हर साल किसानों को अधिक उत्पादन करने के बावजूद भी नुकसान उठाना पड़ता है.
बढ़ते उत्पादन को संरक्षित करना एक बड़ी चुनौती है. भारत की कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए नई उपज को संग्रहित करना जरूरी भी है. भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान बंगलोर के निदेशक डॉ टीके बेहरा ने बताया कि फल और सब्जियां जल्दी खराब होने वाले खाद्य पदार्थ होते हैं, क्योंकि वे वाष्पोत्सर्जन, ऊतक जीर्णता और फंगस संक्रमण के संपर्क में आते हैं. उनके अनुसार फल सब्जियों की कटाई और बाजार पहुंचने तक की कोल्ड स्टोरेज और फूड प्रोसिसिंग की असुविधाओं की कमी के कारण भारत में 15 से 20 फीसदी तक फल और सब्जियां बर्बाद हो जाती हैं.
फल सब्जी क्षेत्र में ताजे खाद्य पदार्थों को सुरक्षित और प्रभावी ढंग से संरक्षित करने के तरीकों की खोज की जानी चाहिए. भारत सब्जियों के उत्पादन में अहम स्थान रखता है. एक शोध के अनुसार, भारत अदरक और भिंडी के उत्पादन में विश्व में शीर्ष स्थान पर है और आलू, प्याज, फूलगोभी, बैंगन और गोभी के उत्पादन में दूसरे स्थान पर है. फलों के मामले में भारत केला, आम और पपीते के उत्पादन में अग्रणी है. जमीन में उगाई जाने वाली सब्जियों जैसे कि आलू और प्याज की बर्बादी 4.6% से 15.9% तक देखी जाती है, जो मुख्य रूप से खुदाई, भंडारण और प्रोसेसिंग में होने वाले नुकसान के कारण होती है.
दिसंबर 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार, देश में कुल 394.17 लाख मीट्रिक टन क्षमता वाले 8,653 कोल्ड स्टोरेज संचालित हो रहे हैं. विशेषज्ञों के अनुसार कम से कम देश में सभी खाद्य उत्पादों के लिए जरूरी कोल्ड स्टोरेज क्षमता 610 लाख मीट्रिक टन से अधिक होनी चाहिए ताकि फलों और सब्जियों के बढ़ते उत्पादन को संरक्षित किया जा सके. आज भारत का अधिकांश कोल्ड चेन इन्फ्रास्ट्रक्चर 1960 के दशक में विकसित किया गया था और यह मुख्य रूप से आलू और आलू के बीजों के भंडारण के लिए उपयोग किया जाता था.
वर्तमान में, कुल कोल्ड स्टोरेज क्षमता का लगभग 75 परसेंट केवल आलू के लिए आरक्षित है. इनमें से अधिकांश सुविधाएं उत्तर प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, पंजाब, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में स्थित हैं. इसमें भी कोल्ड चेन उद्योग में अधिकांश छोटे और असंगठित हैं, जिन्हें भंडारण के सर्वोत्तम तरीकों की जानकारी कम होती है. देश में फल सब्जियों की अब हर सीजन मांग बढ़ रही है क्योंकि लोग अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं.
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सही सप्लाई चेन भंडारण की सुविधा ना होने के कारण किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम नहीं मिल पा रहा है. वहीं, उभोक्ताओं को अधिक दाम देने पड़ रहे हैं. ऐसे में किसानों के हितों की सुरक्षा और ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए अधिक जोर देने की जरूरत है.
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