
महाराष्ट्र में अंगूर फसल की तबाहीमहाराष्ट्र के अंगूर बेल्ट—सोलापुर, नासिक, जुन्नर और पुणे—में इस साल तबाही का मंजर है. मई–जून की भयंकर बारिश ने हजारों किसानों की वर्षों की मेहनत और करोड़ों रुपये की फसल को बर्बाद कर दिया है. सबसे ज्यादा मार जुन्नर के किसानों पर पड़ी है, जहां लगभग 1100–1200 किसान पूरी तरह प्रभावित हुए हैं. पूरे राज्य में 60–70 हजार अंगूर किसान संकट में हैं.
'बहुत बुरा हाल है. 10 एकड़ अंगूर की खेती में अभी तक 30 लाख रुपये से ज्यादा का खर्च हो चुका है. मगर 3-4 लाख रुपये भी नहीं निकल पाएगा. अगले साल की फसल भी नहीं आएगी. हम तो अब 2027 सीजन की उम्मीद में बैठे हैं कि क्या होगा...' ये कहना है महाराष्ट्र में जुन्नर के किसान राहुल बनकर का. बनकर महाराष्ट्र के उन 60-70 हजार किसानों में एक हैं जिनकी अंगूर की खेती पूरी तरह से चौपट हो गई है. इसके लिए जिम्मेदार है मई-जून की भयंकर बारिश जिसने पूरे अंगूर बेल्ट को तहस-नहस कर दिया.
सोलापुर, नासिक, जुन्नर, पुणे जैसे इलाके देश-दुनिया में अंगूर की खेती के लिए मशहूर हैं. यहां का अंगूर लोगों की सेहत के साथ स्वाद बढ़ाता है. लेकिन शायद इस बार यह स्वाद थोड़ा फीका रह जाए. किसान राहुल बनकर कहते हैं कि अतिवृष्टि ने जिस तरीके से तबाही मचाई है, उससे समूचे महाराष्ट्र का अंगूर उत्पादन 70 परसेंट तक गिर जाएगा. यानी महाराष्ट्र जैसे विशाल प्रांत से इस बार केवल 30 परसेंट ही अंगूर निकलेगा. इससे अंदाजा लगाना आसान है कि खुले बाजार में अंगूर की कीमतें किस कदर आसमान छूएंगी.
अंगूर की बर्बादी पर किसान बनकर ने कहा, हर साल दो बार अंगूर की प्रूनिंग यानी छंटाई होती है-अप्रैल और अक्तूबर में. इसी प्रूनिंग से अंगूर की पैदावार तय होती है. दोनों प्रूनिंग की अवधि के बीच मौसम साफ रहना चाहिए. मिट्टी गीली न हो और चटख धूप निकले ताकि जड़ों में अधिक पानी जमा न हो. लेकिन इस बार मामला सब उलट गया.
अप्रैल की प्रूनिंग के बाद जहां मौसम साफ रहना चाहिए. वहीं मई और जून भर इतनी बारिश हुई कि खेत तरबतर हो गए. यहां तक कि इन दो महीनों में जहां बारिश शून्य रहनी चाहिए, वहां 330 एमएम तक बारिश हो गई. ये वही समय है जब धूप निकलने पर पौधे में फल आते हैं. बारिश के पानी ने फल आने की संभावनाओं को रौंद दिया. जड़ों में इतना पानी लग गया कि जड़ें सड़ गईं. पौधे सूखने से बच गए क्योंकि दवा का इस्तेमाल किया गया. पौधे तो बच गए, मगर उसके फूल खाली रह गए. एक भी फल नहीं आया.

बनकर की तरह जुन्नर में तकरीबन 1100-1200 किसान हैं जिनके पौधे अंगूर के बिना अधूर बच गए हैं. बस पौधे दिखाई दे रहे हैं, लेकिन उन पर फल का पता नहीं. अभी का दौर फलों के बड़े होने और फरवरी-मार्च तक पकने का होता है. लेकिन इस बार पके फल की कौन कहे, कच्चे फल का नामो निशान तक नहीं है. वे कहते हैं, मार्च तक बाजार में जुन्नर का अंगूर आता है. इस बार 70 परसेंट तक कमी होगी. इससे सप्लाई घटेगी और दाम आसमान छूएंगे.
राहुल बनकर ने बताया कि उन्होंने 37 एकड़ में अंगूर की खेती की है. प्रति एकड़ लगभग 3 लाख रुपये का खर्च आया है. 10 एकड़ का भी हिसाब लेकर चलें तो 30 लाख रुपये का खर्च हो चुका है. मगर कुल कमाई 3-4 लाख रुपये भी नहीं होगी. ऐसी ही हालत जुन्नर के लगभग 1200 किसानों की है. इन किसानों की पूरी जिंदगी दांव पर लग गई है.
वे बताते हैं कि इस साल का नुकसान 2026 में पौधों पर फल नहीं आने देगा. इसलिए हमें 2027 की तैयारी करनी है, वह भी बिना किसी उम्मीद के. नेहरकर कहते हैं कि पौधे भले फल न दें, लेकिन उन्हें बिना देखभाल के नहीं छोड़ सकते. उन पर वैसा ही ध्यान रखना होगा जैसे फल देने वाले पौधों का ध्यान रखते हैं. वरना हमारी आगे की पूरी फसल चौपट हो जाएगी.
राहुल बनकर की तरह एक और किसान हैं गुलाबराव नेहरकर. उन्हें भी लाखों रुपये का नुकसान हुआ है. नेहरकर का अंगूर देश के अलावा कई पश्चिमी देशों और खाड़ी में एक्सपोर्ट होता है. उनके पूरे परिवार में 75 एकड़ में अंगूर की खेती होती है. वे बताते हैं कि अक्तूबर की प्रूनिंग भी हो गई, मगर पौधों पर अभी तक फल नहीं आए हैं. इसके बावजूद वे अपने पौधों को नहीं छोड़ सकते क्योंकि ये पौधे बार-बार नहीं लगाए जाते. अभी उनका पूरा ध्यान इस बात पर है कि बारिश से बर्बाद पौधों को कैसे हेल्दी रखा जाए. पौधे हेल्दी रहेंगे तभी 2027 में फल देंगे. 2026 में फल वैसे भी नहीं आएंगे क्योंकि अक्तूबर की प्रूनिंग के बाद पौधों पर ऐसा कोई संकेत नहीं दिखता है.
नेहरकर ने बताया कि अभी तक प्रति एकड़ ढाई लाख रुपये खर्च हो चुके हैं जिससे क्या मिलेगा, अभी कुछ नहीं पता. लेकिन इन पौधों को अगले सीजन के लिए खाद-पानी आदि पर 3 लाख रुपये अतिरिक्त खर्च करना होगा. इस तरह अंगूर की खेती 6 लाख रुपये प्रति एकड़ के खर्च पर पहुंच गई है. अंगूर की खेती के लिए बैंक से 12 परसेंट के ब्याज पर लोन लिया. अगर यह ब्याज जोड़ें तो वह 6 लाख का खर्च 8 लाख रुपये तक पहुंच गया है. 8 लाख रुपये खर्च होने के बाद भी कोई गारंटी नहीं कि 2027 की फसल कैसी होगी. क्या पता उस साल भी बारिश से फसल चौपट हो जाए.
बर्बादी की यह कहानी केवल राहुल बनकर और गुलाबराव की नहीं है. केवल जुन्नर में ऐसे 1100-1200 किसान हैं जबकि पूरे महाराष्ट्र में 60-70 हजार अंगूर किसान प्रभावित हुए हैं. मौसम की इस मार का असर अंगूर के दाम पर दिखेगा. हालांकि, गुलाबराव ये भी कहते हैं कि देश में चाइनीज अंगूर की भरमार हो जाती है, इसलिए ग्राहकों को ज्यादा न झेलना पड़े, मगर महाराष्ट्र के किसान भारी मुश्किल में हैं और आगे भी अच्छे दिन नहीं दिखते.
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