तिल की खेती में राजस्थान नंबर वन पर है, लेकिन महाराष्ट्र भी कम नहीं. तिल का उत्पादन साल में तीन बार लिया जा सकता है. किसान इसकी सही तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों कमा सकते हैं. तिल में मोनो-सैचुरेटेड फैटी एसिड होता है जो शरीर से कोलेस्ट्रोल को कम करता है.इसलिए इसकी मांग लगातार बढ़ रही है ऐसे में किसानों के लिए सही समय है तिल की खेती करने का महाराष्ट्र में तिल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है.
इसके अलवा तिल से कई प्रकार की मिठाई, लड्डू आदि बनाए जाते हैं. तिल से तेल भी निकाला जाता है जिसकी बाजार में सबसे अधिक मांग होती है इसे देखते हुए किसानों के लिए तिल की खेती काफी लाभकारी हो सकती है.
कृषि वैज्ञानिक किसानों को सलाह देते हैं कि तिल की फसल दोहरी फसल प्रणाली के लिए उपयुक्त है क्योंकि यह 85-90 दिनों से भी कम समय में उगता है. तिल की खेती किसानों द्वारा अनुपजाऊ जमीन में की जा सकती हैं. हल्की रेतीली, दोमट मिट्टी तिल उत्पादन के लिए सही होती है.इसकी खेती अकेले या सह फसली के रूप में अरहर, मक्का एवं ज्वार के साथ की जा सकती है. इसकी खेती से किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं.
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तिल को अच्छी जल निकासी वाली मध्यम से भारी मिट्टी में उगाया जाना चाहिए.
खेती करने से पहले 2 से 3 बार खेत की जुताई करें, ताकि बुवाई और अंकुरण में सुधार हो.
जुलाई महीने में किसानों के लिए तिल की खेती करना फायदेमंद है. बलुई और दोमट मिट्टी में पर्याप्त नमी होने पर फसल अच्छी होती है. तिलहन की खेती में पानी की तो कम जरूरत पड़ती ही है साथ ही इससे पशुओं के लिए चारा भी उपलब्ध हो जाता है. इसलिए किसान इसकी खेती करना चाहते हैं.
तिल की खेती के लिए खेत की तैयारी करते समय किसान इस बात का ध्यान रखें कि खेत में खरपतवार ना हो.
खरपतवार पूरी तरह से निकालने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें. इसके बाद तीन जुताई कल्टीवेटर या देसी हल से करके खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें. वहीं 80 से 100 क्विंटल सड़ी गोबर की खाद को आखिरी जुताई में मिला दें.इससे बुवाई और मिट्टी अच्छी रहेगी.
खेती से पहले 5 टन अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर या एक टन (4 क्विंटल प्रति एकड़) अरंडी या नीम का पाउडर बुवाई से पहले देना चाहिए. 25 किग्रा एन/हेक्टेयर बुवाई के समय तथा 25 किग्रा एन/हेक्टेयर बुवाई के तीन सप्ताह बाद डालें. मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर बुवाई के समय 20 किलो सल्फर प्रति हेक्टेयर डालें.
जब 75% पत्तियां और तने पीले हो जाए, पत्तियां हरा रंग लिए हुए पीली हो जाएं तब समझना चाहिए कि फसल पक कर तैयार हो गई है. कटाई में लगभग 80 से 95 दिन लगते हैं. जल्दी कटाई तिल के बीज को पतला और बारीक रखकर उनकी उपज कम कर देती है. उपज आम तौर पर प्रति हेक्टेयर 6 से 7 क्विंटल होती है.
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