scorecardresearch
सरकारी अनदेखी से गिरे कपास के दाम! अच्छी कीमतों के लिए तरसे महाराष्ट्र के किसान

सरकारी अनदेखी से गिरे कपास के दाम! अच्छी कीमतों के लिए तरसे महाराष्ट्र के किसान

महाराष्ट्र के किसानों का कहना है कि केंद्र की अनदेखी के चलते उनके कपास के भाव तेजी से गिरे हैं. किसान और विपक्षी पार्टियों का कहना है कि सरकार ने कपास के आयात को मंजूरी दी है जिससे देसी कपास की मांग गिर गई है. ऐसे में किसान अच्छी कीमतों के लिए अपनी उपज को स्टोर कर रहे हैं.

advertisement
महाराष्ट्र के किसानों को नहीं मिल रहे कपास के अच्छे भाव (फोटो साभार-India Today/PTI) महाराष्ट्र के किसानों को नहीं मिल रहे कपास के अच्छे भाव (फोटो साभार-India Today/PTI)

हमारा किसान किसी न किसी संकट से हमेशा जूझता रहता है. कई बार कम उपज तो कई बार अधिक उपज भी किसानों के गले की फांस बन जाती है. इस बार महाराष्ट्र के कई इलाकों में यही देखा जा रहा है. इस बार कपास की हुई बंपर पैदावार किसानों के लिए मुसीबत बन गई है. कपास का उचित दाम न मिलने से किसान अपनी फसल अपने खेत और घर में डंप करने पर मजबूर हो रहे हैं. हालांकि कुछ इलाकों से ऐसी भी खबर है कि किसान औने-पौने दाम पर अपनी उपज को निकाल रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि मॉनसून में कपास खराब हो सकता है और जो कुछ पैसा उन्हें मिलने वाला है, उससे वे हाथ धो बैठेंगे.

आज हम एक ऐसे ही किसान सुरेश गौरकर की बात करेंगे जो नागपुर जिले की हिंगणा तहसील में पिपलधरा गांव के रहने वाले हैं. गौरकर ने इस बार 24 एकड़ में कपास की खेती की है. अपने अधिकांश खेतों में वे कपास की फसल बोते आए हैं. इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया क्योंकि उन्हें पिछली बार की तरह इस साल भी बंपर मुनाफे की उम्मीद थी. पिछली बार महाराष्ट्र में कई जगह कपास का भाव 12000 रुपये क्विंटल तक चला गया था. सो, इस बार भी अच्छे दाम की उम्मीद में उन्होंने बंपर कपास की फसल उगाई. 

आवक बंपर लेकिन दाम कम

लेकिन इस बार मामला कुछ उलटा हो गया. कपास की आवक बंपर तो हुई, लेकिन दाम तेजी से गिर गए. हालत ये हो गई कि पिछले साल जहां 12000 रुपये मिल रहे थे, इस बार दाम छह हजार पर अटक गए. अब गोरकर की तरह सभी कपास किसानों के सामने यही सवाल था कि वे इस दाम में उपज को बेचे या क्या करें. किसानों को चिंता इस बात की रही कि छह हजार रुपये रेट पर कपास बेचने पर लागत भी नहीं निकल पाएगी. 

ऐसे में किसान उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जब कपास के दाम बढ़ेंगे और वे अच्छी कीमतों पर उपज बेचकर कमाई करेंगे. इस उम्मीद में किसानों ने कपास का स्टॉक करना शुरू किया. अभी तक यह स्टॉक चल रहा है. लेकिन हाल में मिल्स एसोसिएशन ने अपील की कि किसान अब उपज स्टॉक करके न रखें क्योंकि बारिश शुरू से उसके खराब होने का खतरा रहेगा. मिल्स एसोसिएशन की इस अपील को महाराष्ट्र के किसान कहां तक मानते हैं और स्टॉक निकालते हैं, यह देखने वाली बात होगी. 

कपास का स्टोरेज जारी

सुरेश गोरकर की तरह ही एक और किसान हैं अवधूत कुकडकर. ये युवा किसान हैं. इनकी नागपुर जिले के हिंगणा तहसील के कान्होलीबारा गांव मे चार एकड़ की खेती है. पिछले साल कपास के अच्छे दाम मिलने से इन्होंने इस साल भी कपास की फसल लगाई. लेकिन उचित दाम न मिलने से इन्होंने अपनी फसल घर पर ही डंप कर दिया है. कुकडकर कहते हैं कि जब तक कपास के अच्छे दाम निकल कर नहीं आएंगे, तब तक वे उपज को अपने घर में ही स्टोर करके रखेंगे. उनका कहना है कि कपास का स्टोरेज ठीक से किया है, इसलिए उसके खराब होने का डर नहीं. जब दाम अच्छे निकलेंगे तो वे बेच लेंगे.

सरकारी अनदेखी का आरोप

पिछले साल अच्छी कीमत मिलने से इस साल किसानों ने महाराष्ट्र में बड़ी मात्रा में कपास की बुवाई की थी. लेकिन किसानों को अच्छे भाव नहीं मिलने से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया. अब कपास की गिरती कीमतों को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है. महाराष्ट्र में विरोधी पार्टी एनसीपी अब केंद्र और राज्य सरकार पर आरोप लगा रही है कि देश में कपड़ा उद्योग को लाभ पहुंचाने के लिए कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) के दबाव में विदेशों से कपास आयात करने के कारण घरेलू कपास की कीमत गिर गई है.

महाराष्ट्र में सन 2021-22 में करीब 39.36 लाख हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी. बीते साल खुले बाजार में कपास का दाम 12,500 रुपये प्रति क्विंटल था. इसके चलते सन 2022-23 सीजन में राज्य में कपास की बुवाई सात फीसद बढ़कर 42.11 लाख हेक्टेयर में की गई. इस साल भी किसानों को पिछले साल के बराबर कीमतें मिलने की उम्मीद थी. लेकिन कपास का भारी मात्रा में आयात होने के कारण देश में कपास की कीमत गिर गई. मौजूदा समय में बाजार में कपास का रेट 6,500 रुपये से 6,800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है. किसानों का कहना है कि इतने कम दाम में तो उत्पादन लागत भी नहीं निकलती. एक एकड़ खेत में कपास की फसल के लिए 10 हजार रुपये खर्च होते हैं. 

इस पूरे मामले पर 'आजतक' ने किसान नेता विजय जावंधिया से बात की. उनका कहना था कि केंद्र सरकार कपास एक्स्पोर्ट पर सब्सिडी दे, अन्यथा किसान की हालत आने वाले समय में और खराब होगी. कपास की बंपर पैदावार होने के बाजवूद उचित दाम नहीं मिलने से किसान अब सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं. विदर्भ में कपास की खेती सबसे अधिक होती है और यह वही इलाका है जहां सबसे ज्यादा किसान अब तक आत्महत्या कर चुके हैं.