बारिश के इस मौसम में महज 45 दिनों की अल्प अवधि में पक कर तैयार होने वाली फसल 'काकुन' एक समय में किसानों की सबसे प्रिय फसल होती थी. बेहद कम संसाधनों में, बहुत कम मेहनत करके, किसान इस फसल को कुदरत के अमूल्य ताेहफे के रूप में उगाते थे. मोटे अनाजों में शुमार काकुन, बारिश की गति के साथ बढ़ने वाली ऐसी फसल थी, जिसमें किसी तरह के नुकसान का कोई जोखिम नहीं था. मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र में सतना के रहने वाले बाबूलाल दाहिया ने काकुन के महत्व को बघेली अंदाज में पेश करते हुए इसके बहुउपयोग को भावी पीढ़ी तक पहुंचाने की पहल की है. दाहिया को Native Seeds की सैकड़ों किस्मों का संरक्षण करने के लिए 2019 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया जा चुका है. Hybrid Seeds की आंधी में भुला दी गई पारंपरिक फसलों के बीजों का संरक्षण करने के साथ 85 वर्षीय दाहिया ने उस जन साहित्य को भी संकलित किया है, जो विंध्य क्षेत्र के लोक कवियों द्वारा काकुन सहित अन्य फसलों को लेकर बघेली साहित्य में सदियों से लिखा जाता रहा है.
काकुन की खूबियों के बारे में दाहिया कहते हैं कि प्रकृति ने काकुन को फसल के रूप में फलने फूलने के लिए मात्र डेढ़ महीने की मियांद दी है. बारिश में बढ़ने की सबसे बड़ी खूबी यही है कि इसकी फसल पर बारिश का कितना भी पानी क्यों न गिरे, इसका पका हुआ दाना कभी खराब नही होता. क्योंकि कुदरत ने काकुन और बारिश को चोली दामन के गठजोड़ में सूत्रबद्ध किया है. हर साल सावन भादों की बरसात में 45 दिन के भीतर ही यह फसल पकती है.
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दाहिया कहते हैं कि बारिश का यौवन ज्यों ही ढलने लगता है, त्यों ही काकुन के पकने का दौर शुरू हो जाता है. आसमान में भौंरे मंडराने लगें और गिरगिट अपना रंग बदल दे, तो समझो काकुन पक गई. यह सब देख परख कर ही किसान इसकी बालों को काट लेते हैं.
बाकी जो पौधा बचा वह भी काकुन की ओर से किसान को खेत की खाद (Organic Compost) के रूप में उसकी विदाई का उपहार होता है. किसान काकुन के पौधों को खेत में जुताई करके खेत की खाद बना लेता है. यह मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने में अहम भूमिका निभाता है. इसके बाद उसी खेत में किसान चना या गेहूं की फसल बो देते हैं.
अब बात काकुन की खूबसूरती की. सावन में बादलों की घिरती घटाओं के साथ ही काकुन के पौधे खेत में लहलहाने लगते हैं. दाहिया बताते हैं कि इसके साथ ही हरे भरे खेत में काकुन के पौधों में दाने दिखना शुरू हो जाते हैं.
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काकुन के छोटे छोटे दानों का झुंड पौधे के साथ समूचे खेत की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं. इन्हें देखकर कवि मन वाले विध्य के किसान अपने भावों को कविता में पिरोने लगते हैं. काकुन में दाने देखकर विंध्य के गांवों में किसान बरबस गुनगुना लगते हैं कि :
काकुन की दिखने लगी, सुघर सलोनी बाल
खा खा कर अब होंयगी, चिड़ियां सब खुशहाल
उन्होंने बताया कि बघेलखंड के लोक साहित्य में काकुन के दानों को चुगने वाली एक चिड़िया की दिल को छू ले वाली बड़ी ही मार्मिक लोक कथा है. इसमें कहा गया है कि एक चिड़िया किसी भांट के खेत में काकुन के दाने चुगने जाती है, मगर भांट के चंगुल में फंस जाती है. जब वह उसे पकड़ कर अपने घर ले जा रहा होता है, तब वह चिडिया रास्ते में मिलने वालों से गुहार लगाते हुए कहती है कि :
ए गइल के चलबइया भइया !
मैं भांट कय खायव काकुन ,
मोहि भांट धरे लइजइया।
गंगा तीर बसेरा,
मोर मरिहैं रोय गदेला।।
रट चूं- चूं।
इस कविता में चिड़िया को अपनी जिंदगी की उतनी चिंता नही थी, जितनी अपने दाने चुग्गे के इंतजार में पाल में बैठे मासूम बच्चों की. रास्ते से घोड़े के सवार, ऊंट के असवार सभी निकले पर किसी ने उसे भांट के चंगुल से नहीं छुड़ाया. अंत में उसी रास्ते से गुजर रहे हाथी पर सवार वहां के राजा निकले. चिड़िया ने उनसे भी गुहार लगाते हुए कहा कि,
ओ हाथी के चढ़बइया भइया !
मैं भांट कय खायव काकुन ,
मोहि भांट धरे लइजइया।
गंगा तीर बसेरा,
मोर मरिहैं रोय गदेला।।
रट चूं- चूं।
यह सुनकर राजा को चिड़िया पर दया आ गई. राजा ने भाँट को कुछ धन देकर उससे चिड़िया ले ली और उसे मुक्त कर दिया. वह काकुन के दाने लेकर अपने गदेलों (बच्चों) के पास चली गई.
काकुन को कांगनी या Foxtail Millet भी कहते हैं. यह एक प्राचीन अनाज है, जो सेहत के लिए बहुत ही उपयोगी माना गया है. इसकी खेती किसानों के लिए हर लिहाज से मुनाफे का सौदा है. क्योंकि इसमें मौसम की मार से लेकर अन्य Natural Disaster का कोई जोखिम नहीं है. लागत के लिहाज से भी यह बेहद किफायती फसल मानी जाती है. खेती के लिए बारिश का मौसम, रिक्त काल माना जाता है, मगर इस अवधि में भी किसानों को महज 45 दिनों में बहुत उपयोगी अनाज देने वाली यह फसल, Farmer's Bonus कहलाती है.
अगर सेहत के लिहाज से बता करें तो काकुन को पोषक तत्वों का खजाना माना गया है. इसमें Protein, Fiber, Vitamins and Minerals पर्याप्त मात्रा में पाए जाते है. यही वजह है कि काकुन शारीरिक रूप से फायदेमंद तो होता ही है, साथ में यह Mental Health के लिए भी बहुत उपयोगी माना गया है.
इसमें फाइबर होने के कारण यह पाचन तंत्र को मजबूत करता है. साथ ही इसका Glycemic Index कम होने के कारण यह शरीर में Sugar Level को संतुलित करता है और वजन नहीं बढ़ने देता है. यही वजह है कि मोटापा कम करने वालों को काकुन का सेवन करने की सलाह दी जाती है.
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