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बारिश से प्याज में वायरस का अटैक, लागत तो दूर... ढुलाई का खर्च भी नहीं निकाल रहे किसान

बारिश से प्याज में वायरस का अटैक, लागत तो दूर... ढुलाई का खर्च भी नहीं निकाल रहे किसान

मध्य प्रदेश के खंडवा में प्याज किसानों की हालत बहुत खराब है. यहां किसान प्याज की खेती की लागत भी नहीं निकाल पा रहे हैं. किसानों का कहना है कि बरसात की वजह से प्याज में वायरस का अटैक हो गया है. इससे प्याज ऊपर से ठीक दिखता है, लेकिन अंदर से खराब होता है. इससे प्याज का सही भाव नहीं मिल पा रहा है.

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खंडवा में प्याज किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है खंडवा में प्याज किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है

मध्य प्रदेश के खंडवा में कुछ किसानों ने शहर के प्रमुख चौराहे पर मुफ़्त में प्याज़ बांट दिया. इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. ये वो किसान थे जो प्याज के गिरते भाव से तंग आ गए थे. हालत ये हो गई कि किसान लागत और ढुलाई का खर्च भी नहीं निकाल पाए. ऐसे में उन्होंने विरोध जताने के लिए सड़क पर कई क्विंटल प्याज लोगों में मुफ्त बांट दिया. दरअसल, पिछले दिनों हुई बेमौसम बारिश ने प्याज़ की अच्छी पैदावार के बावज़ूद इसे खराब कर दिया. बारिश की मार से प्याज़ खेतों में ही सड़ने लगा. ऐसे में इसका कोई ख़रीदार भी नहीं बचा. मंडी में इस ख़राब प्याज़ को दो रुपये किलो में भी कोई खरीदने को कोई तैयार नहीं हुआ. फिर किसानों ने इसे बेचने की बजाय और वापस ले जाने के वहीं लुटा दिया. 

मध्य प्रदेश में खंडवा जिला एक बड़े प्याज़ उत्पादक क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. यहां से बड़ी तादाद में प्याज़ देश के कई हिस्सों में जाता है जिसकी गुणवत्ता भी बेहतर होती है और स्वाद भी. इसके अलावा आपने प्याज़ की तासीर रूलाने वाली भी सुनी होगी. यही हाल अभी खंडवा के प्याज किसानों का देखा जा रहा है. प्याज का भाव बढ़ता है तो उससे ग्राहकों के आंसू निकलते हैं और जब सही भाव नहीं मिलता तो किसान रोते हैं. 

मुफ्त में बांट दिए प्याज

खंडवा में इस बार प्याज़ की फसल अच्छी थी और भाव भी ठीक थे. लेकिन मौसम की अनिश्चितता ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया. प्याज़ के उत्पादन की लागत ही पांच से छह रुपये किलो आ रही है. प्याज़ ख़राब होने से इसके आधे भाव भी नहीं मिल पा रहे हैं. पिछले दिनों ग्राम भेरुखेड़ा का एक किसान अपनी प्याज़ की फसल लेकर मंडी आया तो वह इसके भाव सुनकर व्यथित हो गया. मंडी में दो से तीन रुपये किलो में भी प्याज़ खरीदने को कोई तैयार नहीं था. इस स्थिति में उसने अपना प्याज़ शहर के बीचोंबीच नगर निगम चौराहे पर रखकर इसे मुफ्त में बांटना ही बेहतर समझा. कुछ ही देर में मुफ़्त में प्याज़ लेने वालों की भीड़ जुट गई. 

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प्याज किसान घनश्याम कहते हैं, मैं 82 कट्टे प्याज़ मंडी में बेचने लाया था. वहां सौ रुपये कट्टे का भाव देखकर मैंने इसे मुफ्त में ही बांटने का सोचा. मंडी से 25 कट्टे लेकर यहां बांट दिए, बाकी प्याज़ भी ऐसे ही बांट देंगे. घनश्याम कहते हैं कि एक एकड़ में 70-80 हजार रुपये की लागत आ रही है और अभी तक एक रुपये का भी प्याज़ नहीं बेच सका हैं. प्याज का उत्पादन 350 कट्टा निकला है, लेकिन बरसात की वजह से उसकी क्वालिटी खराब निकल गई. 

खंडवा में मुफ्त प्याज बांटते किसान

खर्च भी नहीं निकाल पा रहे किसान

प्याज की फसल में प्रति एकड़ 70 से 80 हजार रुपये तक का खर्च आता है. लेकिन, वर्तमान में जो दाम मिल रहे हैं, उससे तो आधी लागत भी नहीं निकल पा रही है. दरअसल प्याज़ के सड़ने से यह स्थिति बनी है. अच्छा प्याज़ अब भी बाज़ार में व्यापारियों को छह-सात रुपये किलो मिल रहा है जिसे छांटकर वे ग्राहकों को इसे बारह से पंद्रह रुपये किलो में बेच रहे हैं. इसलिए बाज़ार में आम ग्राहकों को प्याज़ तो उसी दाम पर मिल रहा है. इससे किसानों और ग्राहकों को कोई फायदा नहीं होता है. 

इधर बड़े व्यापारी जो प्याज़ को देश के अन्य जिलों में भेजते हैं, उन्हें भी ख़राब प्याज़ के कारण नुकसान उठाना पड़ रहा है. उनका कहना है कि प्याज़ में वायरस आ गया है जिससे प्याज़ ऊपर से ठीक दिख रहा है, लेकिन वह भीतर से ख़राब निकल रहा है. यहां से जो प्याज़ ट्रकों से लोड होकर दूसरी जगह गया, वहां पहुंचने से पहले ही ख़राब हो गया. वहां मंडी में व्यापारी प्याज खरीदने से इनकार करता है या फिर औने-पौने भाव बताता है. इस स्थिति के चलते कुछ व्यापारी भी बड़े घाटे में आ गए हैं. 

क्या कहते हैं खंडवा के किसान?

किसानों का कहना है कि बेमौसम बारिश के कारण प्याज ख़राब हो गया है. पूरे प्याज़ में वायरस आ गया है. इसके कारण न किसान को कुछ मिल पा रहा है न व्यापारी को कुछ फायदा हो रहा है. माल जो लोड हो रहा है, वह रास्ते में ही ख़राब हो रहा है. इसलिए प्याज़ फेंकना पड़ रहा है. पचास किलो का कट्टा 70 रुपये में बेचना पड़ रहा है. 

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किसानों को जहां मौसम की मार झेलनी पड़ी है, वहीं उनकी फसलों के नुकसान में न सरकार मदद में आगे आ रही है, न उन्हें फसल बीमा का कोई लाभ मिल पा रहा है. किसानों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है कि उनकी बेहतरी के दावे तो खूब होते हैं, बीज बोने से लेकर फसल तक का बीमा करने की बात सरकार करती है. लेकिन जब भी फसल बर्बाद होती है, बीमा कंपनियां कहीं नज़र नहीं आतीं. किसानों ने सरकार से राहत राशि दिए जाने की मांग की है.