झारखंड- छत्तीसगढ़ के वनों में उगने वाले उत्पादों का तय होगा MSP!

झारखंड- छत्तीसगढ़ के वनों में उगने वाले उत्पादों का तय होगा MSP!

केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री और खूंटी से बीजेपी के लोकसभा संसाद अर्जुन मुंडा ने कहा कि झारखंड और छत्तीसगढ़ के जंगलों में कई उत्पाद हैं. इनमें एक साहिबगंज की बरबरट्टी भी है, ज‍िसे स्ट्रिंग बीन्स भी कहा जाता है.ऐसे उत्पादों को एमएसपी में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है.

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झारखंड- छत्तीसगढ़ के वनों में उगने वाले उत्पादों का तय होगा MSP! सुखाने के लिए रखा गया रागी फोटोः किसान तक

अगले साल देश में आम चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में केंद्र सरकार ने किसानों को अपने पक्ष में करने की कवायद तेज कर दी है. इसी कड़ी में केंद्र सरकार मुख्य रुप से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का दायरा बढ़ाने पर कार्य कर रही है. झारखंड की बात करें तो यहां पर विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. झारखंड वनों का प्रदेश हैं, यहां पर वनों से होने वाली उपज (वनोपज) अधिक हैं. इसलिए सरकार का प्रयास है कि लघु वन उपज में दी जाने वाली एमएसपी को बढ़ावा जाए. तो वहीं मोदी सरकार छत्तीसगढ़ और झारखंड में प्राकृतिक रुप से वनों में उगने वाली उपज को एमएसपी की श्रेणी में शामिल करने का मन बना रही है. इसकी तरफ केंद्रीय जनजात‍ि मंत्री अर्जुन मुंडा ने इशारा क‍िया है. 

असल में आदिवासी क्षेत्र में अधिकांश आबादी वोनपज पर निर्भर है. इसके अलावा कई मोटे अनाज भी ऐसे हैं, जो खुद से उगते हैं. इनमें ऐसे बाजरा हैं, जो प्राकृतिक तौर पर उगते हैं. 

बढ़ेगी आदिवासी परिवारों की आय 

प्राकृतिक रुप से उगने वाले बाजरे को एमएसपी के दायरे  शामिल करने स उन परिवारों की आय बढ़ेगी, जो आजीविका के लिए इस बाजरे पर निर्भर हैं. जनजातीय मामलों के मंत्री और खूंटी से बीजेपी के लोकसभा संसाद अर्जुन मुंडा ने कहा कि ऐसे उत्पाद हैं, जैसे साहिबगंज की बरबरट्टी जिन्हें स्ट्रिंग बीन्स भी कहा जाता है. साथ ही अन्य प्रकार के बाजरा है जन्हें एमएसपी में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है. यहां पर जो बीन्स उगते हैं, उसे बाजरा कहते हैं. हालांकि इसकी बुवाई नहीं की जाती है. अब इसे भी एमएसएपी में शामिल करने पर विचार किया जा रहा है. 

87 उत्पाद शामिल हैं एमएसपी में

वर्तमान में देश में ऐसे उत्पादों की संख्या 87 हैं, जिन्हें एमएसपी के दायरे में लाया गया है. 2013-14 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना में पहचान की गई लघु वन उपज के लिए एमएसपी तय करना शामिल है, जिसे आदिवासियों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों में एकत्र किया जाता है. ये आदिवासी वनोपज को गांव में लगने वाले छोटे हाट बाजारों में बेचते हैं और अगर बाजार मूल्य एमएसपी से नीचे आते हैं, तो राज्य सरकार की एजेंसियां लघु वन उपज की खरीद के लिए आगे बढ़ती हैं. यह आदिवासियों के आर्थिक हितों की रक्षा करने में मदद करता है, जो अक्सर गांव के हाट में नमक और सब्जियों जैसी सामान्य ज़रूरतों के लिए वन उत्पादों के विनिमय का सहारा लेते हैं.

 

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